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इस दुनिया में जीना हो तो...क्या करें सुने इस गीत में



फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह की थी कि एक नाइट क्लब में साथ-साथ नृत्य कर सात युवाओं की एक टीम (जिसमे पाँच पुरुष और दो महिलाएँ थीं) नें उस डान्स कम्पीटिशन को जीता, और इनाम के रूप में उन्हें एक प्राइवेट विमान से 'प्राइज़ हॉलिडे' में भेजे जाने का ऐलान हुआ। लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था।।


ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 811/2011/251

'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, साल २०११ अब अलविदा कहने को तैयार हो रहा है। साल के इन अन्तिम दिनों में दुनिया भर में छुट्टी का माहौल होता है, पश्चिमी देशों में तो क्रिसमस से लेकर नववर्ष तक औपचारिक छुट्टियाँ भी होती हैं। हमारे देश में छुट्टियाँ भले न हों, पर माहौल तो हल्का-फुल्का और उत्साहपूर्ण ही रहता है। घूमने फिरने के लिए भी यह समय अच्छा होता है, मौसम भी ख़ुशगवार होता है। तो फिर क्यों न हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में भी कुछ ऐसे आशावादी गीत सुनें जो दार्शनिक तो हैं ही, पर उनमें ख़ुशियाँ भी हैं, थिरकन भी है, जो आपके दिलों में एक पॉज़िटिव फ़ीलिंग् तो जगाएंगे ही, साथ ही आपके क़दमों को भी कुछ देर के लिए थिरका जाएंगे। तो आइए, प्रस्तुत है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक और लघु शृंखला 'आओ झूमें गायें'। आज इसकी पहली कड़ी में सुनिए लता मंगेशकर की आवाज़ में 1965 की फ़िल्म 'गुमनाम' से हसरत जयपुरी का लिखा और शंकर-जयकिशन का स्वरबद्ध किया गीत "इस दुनिया में जीना हो तो सुन लो मेरी बात, ग़म छोड़ के मनाओ रंगरेली, और मान लो जो कहे किट्टी केली"।

फ़िल्म 'गुमनाम' एक सस्पेन्स थ्रिलर फ़िल्म थी जिसे ख़ूब सफलता भी मिली थी। कहानी इतनी दिलचस्प थी कि फ़िल्म के अन्त तक पता नहीं चलता कि असली क़ातिल आख़िर है कौन। राजा नवाथे निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे मनोज कुमार, नन्दा, प्राण, हेलेन, महमूद, मदन पुरी, प्रमुख। फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह की थी कि एक नाइट क्लब में साथ-साथ नृत्य कर सात युवाओं की एक टीम (जिसमे पाँच पुरुष और दो महिलाएँ थीं) नें उस डान्स कम्पीटिशन को जीता, और इनाम के रूप में उन्हें एक प्राइवेट विमान से 'प्राइज़ हॉलिडे' में भेजे जाने का ऐलान हुआ। लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। विमान में गड़बड़ी की वजह से वो सभी लोग एक छोटे से द्वीप में जा उतरते हैं। आवास की तलाश में उन्हें एक हवेली मिल तो जाती है, पर जब वो अन्दर जाते हैं तो वहाँ मौजूद चौकीदार को उन सब के बारे में पूरी मालूमात है और जैसे कि वो उन्हीं लोगों का इन्तज़ार भी कर रहा था। कहानी यहीं ख़त्म नहीं हो जाती, शुरु होता है क़त्लों का सिलसिला। एक एक कर मौत के घाट उतार दिया जाता है। कौन है ख़ूनी? कौन-कौन बच निकलेगा उस ख़ूनी हवेली और ख़ूनी द्वीप से? यही थी 'गुमनाम' की कहानी। अगर आपने यह फ़िल्म अभी तक नहीं देखी है, तो ज़रूर देखिएगा कभी, बहुत अच्छा सस्पेन्स है इस फ़िल्म में। फ़िल्हाल सुनते हैं हेलेन पर फ़िल्माया आज का प्रस्तुत गीत। हेलेन नें मिस किट्टी केली की भूमिका निभाई थी, और देखिए हसरत साहब नें किस चालाकी से इस गीत में "रंगरेली" के साथ "किट्टी केली" का इस्तेमाल कर तुक मिलाया है।



मित्रों, ये आपके इस प्रिय कार्यक्रम "ओल्ड इस गोल्ड" की अंतिम शृंखला है, ८०० से भी अधिक एपिसोडों तक चले इस यादगार सफर में हमें आप सबका जी भर प्यार मिला, सच कहें तो आपका ये प्यार ही हमारी प्रेरणा बना और हम इस मुश्किल काम को इस अंजाम तक पहुंचा पाये. बहुत सी ऐसी बातें हैं जिन्हें हम सदा अपनी यादों में सहेज कर रखेंगें. पहले एपिसोड्स से लेकर अब तक कई साथी हमसे जुड़े कुछ बिछड़े भी पर कारवाँ कभी नहीं रुका, पहेलियाँ भी चली और कभी ऐसा नहीं हुआ कि हमें विजेता नहीं मिला हो. इस अंतिम शृंखला में हम अपने सभी नए पुराने साथियों से ये गुजारिश करेंगें कि वो भी इस श्रृखला से जुडी अपनी कुछ यादें हम सब के साथ शेयर करें....हमें वास्तव में अच्छा लगेगा, आप सब के लिखे हुए एक एक शब्द हम संभाल संभाल कर रखेंगें, ये वादा है.

खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें admin@radioplaybackindia.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें +91-9811036346 (सजीव सारथी) या +91-9878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

इस फिल्म का कथानक सुप्रसिद्ध लेखिका अगाथा क्रिस्टी की एक रचना ‘थ्री ब्लाइंड माउस’ या ‘माउस ट्रेप’ पर आधारित है। छठें दशक से लंदन के एम्बेसेडर थिएटर में शुरू हुए इस नाटक का मंचन लगातार तीन दशक तक होता रहा और इसे कभी भी दर्शकों की कमी का सामना नहीं करना पड़ा।
vishvjeet aur mnoj kumar ji ने शायद सबसे ज्यादा सस्पेंस फिल्मो मे काम किया था उन दिनों .मुझे बहुत मजा आता था ऐसी फिल्म्स देखने मे.इन फिल्म्स मे गाने बहुत मधुर होते थे
गुमनाम मे प्राण साहब का रोल सबसे ज्यादा पसंद आया था मुझे.हर सम्वाद के साथ वो हवा मे अंगुली से अल्फाबेट बनाते थे शायद इसी फिल्म मे.
इसका एक गाना 'हम काले है तो क्या हुआ दिल वाले हैं' उन दिनों हर सांवले सलोने व्यक्ति का प्रिय था.उनके रंग पर कटाक्ष करने पर अक्सर वे इस गाने की पंक्तियाँ गाते थे. हा हा हा कितनी भूली बाते याद दिला दी आपके इस आलेख ने. गाना भी अच्छा चुना है जी.
१ हाय तबस्सुम तेरा(निशान)
२ हाय रे तेरे चंचल नैनवा(ऊंचे लोग )
३ तेरे प्यार ने मुझे गम दिया (छैला बाबु B/W)
४ अगर मुझ से मोहब्बत है (शायद आपकी परछाइयाँ नाम है फिल्म का )
५ तेरे बिना ऑ सजना (मजबूर)
६ बस एक चुप सी लगी है
७ चली आ दिल कि महफिल मे (पहली लाइन याद नही आ रही)चंगेज खां
८जीवन डोर तुम ही संग बाँधी (सती सावित्री)
९ ऑ मतवाले साजना(दारा सिंह मुमताज़ की फिल्म थी )
१० आया रे मेरा जाने बहाराँ आया(इन्साफ दारासिंह जी)

सुना चुके? तो लिंक दीजियेगा.गानों से सम्बंधित आर्टिकल बहुत अच्छे लिखते हैं आप और...जाने क्यों अधिकांश गाने मेरे पास होने के बावजूद मुझे अब यहीं गाने सुनना अच्छा लगने लगा है हा हा हा

क्या करू?ऐसिच हूँ .......
बाप रे!नही बोलूंगी. अब तो मार पड़ने ही वाली है मुझ को हा हा हा
और हाँ यदि इन्हें नही सुनाया है तो........ देख लीजियेगा.अपनी साईट/ब्लॉग के लेवल के लगे तो सबको सुनाना.
AVADH said…
प्रसंगवश बताना चाहूँगा कि फिल्म गुमनाम की कहानी प्रसिद्ध ब्रिटिश रहस्य साहित्य लेखिका अगाथा क्रिस्टी की मशहूर कृति "And Then There Were None" पर आधारित थी.
अवध लाल

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