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शब्दों के चाक पर - 18

" आओ घोटाला करें " और " आवाज़ दे, कहाँ है " काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में उतरा है रामराज विधायक निवास में पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में जनता के पास एक ही चारा है बगावत यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में दोस्तों, आज की कड़ी में हमारे दो विषय हैं - " आओ घोटाला करें " और " आवाज़ दे, कहाँ है " है। जीवन के इन दो अलग-अलग पहलुओंकी कहानियाँ पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है अभिषेक ओझा ओर  अनुराग शर्मा  ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का, व सहयोग है वन्दना गुप्ता का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ... (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें) या फिर यहाँ से डाउनलोड करें "शब्दों के चाक पर" हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते हो...

शब्दों के चाक पर - 17

"तुम कहाँ हो " और " मेरे सपनों का ताजमहल " दीप की लौ अभी ऊँची, अभी नीची पवन की घन वेदना, रुक आँख मीची अन्धकार अवंध, हो हल्का कि गहरा मुक्त कारागार में हूं, तुम कहाँ हो मैं मगन मझधार में हूं, तुम कहाँ हो ! दोस्तों, आज की कड़ी में हमारे दो विषय हैं - " तुम कहाँ हो " और " मेरे सपनों का ताजमहल " है। जीवन के इन दो अलग-अलग पहलुओंकी कहानियाँ पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है अभिषेक ओझा ओर शैफाली गुप्ता ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का, व सहयोग है वन्दना गुप्ता का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ... (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें) या फिर यहाँ से डाउनलोड करें "शब्दों के चाक पर" हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने  के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता ...