बात १९९१ की है। तमिल फिल्म इंडस्ट्री के बेहतरीन निर्देशक मणिरत्नम और बेहतरीन संगीतकार इल्लैया राजा की वर्षों पुरानी जोड़ी टूट चुकी थी। मणिरत्नम एक नए और फ्रेश संगीतकार की खोज में थे। हर साल की तरह उस साल भी मणिरत्नम का एक जानेमाने अवार्ड फंक्शन में जाना हुआ। समारोह शुरू होने से पहले वहाँ कुछ ऎड जिंगल्स (ad jingles) प्ले हो रहे थे। मणिरत्नम धुनों से काफी प्रभावित हुए। उन्होंने उस संगीतकार के कुछ और गानों की फरमाईश की। धुनों का असर बढता गया। समारोह के बाद मणिरत्नम उस संगीतकार के म्युजिक रिकार्डिंग स्टुडियो भी गए। उस गुमनाम संगीतकार ने अपना एक पुराना गीत मणिरत्नम को सुनाया, जिसे उसने बरसों पहले "कावेरी विवाद" के सिलसिले में तैयार किया था। मणिरत्नम ने तनिक भी देर न करते हुए, अपनी नई फिल्म के लिए इस गीत की माँग कर दी और साथ हीं साथ इस नए-से संगीतकार को साईन भी कर लिया। वह मकबूल फिल्म थी "बालचंदर्स कवितालय" की "रोज़ा", वह गाना था " तमिज़ा तमिज़ा ", जो हिंदी में अनुवादित होकर हुआ "भारत हमको जान से प्यारा है" और वह अनजाना सा संगीत-दिग्दर्शक था ...