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अच्छा कलाकार एक प्रकार का चोर होता है

भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी पर विशेष "I accept this honour on behalf of all Hindustani vocalists who have dedicated their life to music" ये कथन थे पंडित भीमसेन जोशी जी के जब उन्हें उनके बेटे श्रीनिवास जोशी ने फ़ोन कर बताया कि भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान "भारत रत्न" के लिए चुना है. पिछले ७ दशकों से भारतीय संगीत को समृद्ध कर रहे शास्त्रीय गायन में किवदंती बन चुके पंडितजी को यह सम्मान देकर दरअसल भारत सरकार ने संगीत का ही सम्मान किया है, यह मात्र पुरस्कार नही, करोड़ों संगीत प्रेमियों का प्रेम है, जिन्हें पंडित जी ने अपनी गायकी से भाव विभोर किया है. उस्ताद अब्दुल करीम खान साहब के शिष्य रहे सवाई गन्धर्व ने जो पंडित जी के गुरु रहे, अब्दुल वहीद खान साहब के साथ मिलकर जिस "किराना घराने" की नींव डाली, उसे पंडित जी ने पहचान दी. १९ वर्ष की आयु में अपनी पहली प्रस्तुति देने वाले भीम सेन जोशी जी संगीत का एक लंबा सफर तय किया. हम अपने आवाज़ के श्रोताओं के लिए लाये हैं भारती अचरेकर द्वारा लिया गया उनका एक दुर्लभ इंटरव्यू जिसमें पंडित जी ने अपने इसी सफर के कुछ

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब का एक अनमोल इंटरव्यू और शहनाई वादन

"अमा तुम गाली दो बेशक पर सुर में तो दो....गुस्सा आता है बस उस पर जो बेसुरी बात करता है.....पैसा खर्च करोगे तो खत्म हो जायेगा पर सुर को खर्च करके देखिये महाराज...कभी खत्म नही होगा...." मिलिए शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान से, मशहूर कार्टूनिस्ट इरफान को दिए गए एक ख़ास इंटरव्यू के माध्यम से और सुनिए शहनाई के अलौकिक स्वरों में राग ललित २१ मार्च १९१६ में जन्में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का नाम उनके अम्मा वलीद ने कमरुद्दीन रखा था, पर जब उनके दादा ने नवजात को देखा तो दुआ में हाथ उठाकर बस यही कहा - बिस्मिल्लाह. शायद उनकी छठी इंद्री ने ये इशारा दे दिया था कि उनके घर एक कोहेनूर जन्मा है. उनके वलीद पैगम्बर खान उन दिनों भोजपुर के राजदरबार में शहनाई वादक थे. ३ साल की उम्र में जब वो बनारस अपने मामा के घर गए तो पहली बार अपने मामा और पहले गुरु अली बक्स विलायतु को वाराणसी के काशी विश्वनाथ मन्दिर में शहनाई वादन करते देख बालक हैरान रह गया. नन्हे भांजे में विलायतु साहब को जैसे उनका सबसे प्रिये शिष्य मिल गया था. १९३० से लेकर १९४० के बीच उन्होंने उस्ताद विलायतु के साथ बहुत से मंचों पर संगत की. १४