ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 283 "मे रे गीत मेरे संग सहारे, कोई ना मेरा संसार में, दिल के ये टुकड़े कैसे बेच दूँ दुनिया के बाज़ार में, मन के ये मोती रखियो तू संभाले, चरणों में तेरे"। शैलेन्द्र के लिखे ये शब्द जैसे उन्ही के दिल का आइना है। गीत लेखन शैलेन्द्र का पेशा ज़रूर था, पर सिर्फ़ पैसा कमाने के लिए नहीं। फ़िल्मी गीतों का स्तर उन्होने ऊँचाई तक ही नहीं पहुँचाया बल्कि उन्हे गरीमा भी प्रदान की। और यही वजह है कि उनके जाने के ४० वर्ष बाद भी आज उनके लिखे गानें ऐसे चाव से सुने जाते हैं जैसे कल ही बनकर बाहर आए हों। "शैलेन्द्र- आर.के.फ़िल्म्स के इतर भी" शृंखला की तीसरी कड़ी में आज प्रस्तुत है मोहम्मद रफ़ी साहब की आवाज़ में फ़िल्म 'बसंत बहार' से एक भक्ति रचना, शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में। "दुनिया ना भाए मोहे अब तो बुला ले, चरणों में तेरे"। राग तोड़ी पर आधारित यह भजन फ़िल्म-संगीत के धरोहर का एक अनमोल नगीना है। इसी तरह के गीतों से ही तो फ़िल्म संगीत का स्तर हमेशा उपर रखा है शैलेन्द्र जैसे गीतकारों ने। 'बसंत बहार' फ़िल्म का एक गीत आप सुन चुके हैं ...