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जगजीत सिंह जी मेरा सीखना आज भी ज़ारी है || Tauseef Akhtar || Ghazal Singer and Composer || Sajeev Sarathie

  एक मुलाकात जरूरी है के 29 वें एपिसोड में आज मिलिये मशहूर ग़ज़ल गायक तौसीफ अख्तर साहब से, जो जगजीत सिंह जी के शागिर्द रह चुके हैं, और 90 के दशक के बादशाह संगीत जोड़ी नदीम श्रवण के प्रमुख संगीत सहायक भी, नदीम श्रवण के संगीत निर्देशन में कुछ बेहतरीन गीत भी हैं इनकी आवाज में। मिलिये इस मुक्कमल फनकार से आज की जरूरी मूलकात में। होस्ट हैं सजीव सारथी  Technical Support Sangya Tandon  सुनिए  YouTube  पर  Spotify Amazon music   Google Podcasts Apple Podcasts Gaana JioSaavn हम से जुड़ सकते हैं - facebook  instagram  YouTube  To Join the Ek Mulkaat Zaroori Hai  team, please write to sajeevsarathie@gmail.com  Hope you like this initiative, give us your feedback on radioplaybackdotin@gmail.com  

तुम बोलो कुछ तो बात बने....जगजीत-चित्रा की दिली ख़्वाहिश आज ’कहकशाँ’ में

कहकशाँ - 12 जगजीत-चित्रा की दिली ख़्वाहिश   "आइये चराग़-ए-दिल आज ही जलाएँ हम..." ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। हर दौर में शायरों ने, गुलुकारों ने, क़व्वालों ने इस अदबी रवायत को बरकरार रखने की पूरी कोशिशें की हैं। और यही वजह है कि आज हमारे पास एक बेश-कीमती ख़ज़ाना है इन सुरीले फ़नकारों के फ़न का। यह वह कहकशाँ है जिसके सितारों की चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ती और ता-उम्र इनकी रोशनी इस दुनिया के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ को सुकून पहुँचाती चली आ रही है। पर वक्त की रफ़्तार के साथ बहुत से ऐसे नगीने मिट्टी-तले दब जाते हैं। बेशक़ उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए इस ख़ज़ाने में से हम चुन कर लाएँगे आपके लिए कुछ कीमती नगीने हर हफ़्ते और बताएँगे कुछ दिलचस्प बातें इन फ़नकारों के बारे में। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वालियों की एक अदबी महफ़िल, कहकशाँ। 

आज की महफ़िल में सुनिये क्या कहते हैं गुलज़ार साहब त्रिवेणियों के बारे में!

महफ़िल ए कहकशां   6 दो स्तों सुजोय और विश्व दीपक द्वारा संचालित "कहकशां" और "महफिले ग़ज़ल" का ऑडियो स्वरुप लेकर हम हाज़िर हैं, "महफिल ए कहकशां" के रूप में पूजा अनिल और रीतेश खरे  के साथ।  अदब और शायरी की इस महफ़िल में आज सुनिए गुलज़ार साहब की त्रिवेणी की व्याख्या  और जगजीत सिंह द्वारा उनकी त्रिवेणियों को आवाज़ देना. मुख्य स्वर - पूजा अनिल एवं रीतेश खरे  स्क्रिप्ट - विश्व दीपक एवं सुजॉय चटर्जी

जगजीत सिंह और राग : SWARGOSHTHI – 242 : JAGJEET SINGH AND RAGAS

स्वरगोष्ठी – 242 में आज संगीत के शिखर पर – 3 : जगजीत सिंह के गजल, गीत और भजन जगजीत सिंह के बेमिसाल मगर कमचर्चित राग प्रयोग की एक झलक 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी सुरीली श्रृंखला – ‘संगीत के शिखर पर’ की तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का एक बार पुनः स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत की विभिन्न विधाओं में शिखर पर विराजमान व्यक्तित्व और उनकी प्रस्तुतियों की चर्चा करेंगे। संगीत गायन और वादन की विविध लोकप्रिय शैलियों में किसी एक शीर्षस्थ कलासाधक का चुनाव कर हम उनके व्यक्तित्व का उल्लेख और उनकी कृतियों के उदाहरण प्रस्तुत करेंगे। आज श्रृंखला की दूसरी कड़ी में हमारा विषय है, गजल गायकी और इस विधा में अत्यन्त लोकप्रिय रहे गायक जगजीत सिंह और उनकी गजल, गीत और भजन की राग आधारित प्रस्तुतियाँ। आज के अंक में हम जगजीत सिंह द्वारा प्रस्तुत राग दरबारी कान्हड़ा में निबद्ध एक द्रुत रचना, राग भैरवी में ठुमरियाँ और राग दरबारी कान्हड़ा के स्वरों में एक कीर्तन सुनवाएँगे।

एक आवाज़ जिसने गज़ल को दिए नए मायने

म खमली आवाज़ की रूहानी महक और ग़ज़ल के बादशाह जगजीत सिंह को हमसे विदा हुए लगभग २ साल बीत चुके हैं, बीती १० तारिख को उनकी दूसरी बरसी के दिन, उनकी पत्नी चित्रा सिंह ने उनके करोड़ों मुरीदों को एक अनूठी संगीत सी डी का लाजवाब तोहफा दिया. "द वोईस बियोंड' के नाम से जारी इस नायब एल्बम में जगजीत के ७ अप्रकाशित ग़ज़लें सम्मिलित हैं, जी हाँ आपने सही पढ़ा -अप्रकाशित. शायद ये जगजीत की गाई ओरिजिनल ग़ज़लों का अंतिम संस्करण होगा, पर उनकी मृत्यु के पश्चात ऐसी कोई एल्बम नसीब होगी ऐसी उम्मीद भी आखिर किसे थी ?  खुद चित्रा सिंह ने जो खुद भी एक बेमिसाल गज़ल गायिका रहीं हैं, ने इस एल्बम को श्रोताओं के लिए जारी किया यूनिवर्सल मुय्सिक के साथ मिलकर. जगजीत खुद में गज़ल की एक परंपरा हैं और उनकी जगह खुद उनके अलावा और कोई नहीं भर सकता. जगजीत की इस एल्बम में आप क्या क्या सुन सकते हैं आईये देखें.  निदा फाजली के पारंपरिक अंदाज़ में लिखा गया एक भजन है. धडकन धडकन धड़क रहा है बस एक तेरो नाम ...  जगजीत के स्वरों में इसे सुनते हुए आप खुद को ईश्वर के बेहद करीब पायेंगें. नन्हों की भोली बातों में उजली उजल

"वो काग़ज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी" - हर कोई अपना बचपन देखता है इस नज़्म में

कुछ गीत, कुछ ग़ज़लें, कुछ नज़्में ऐसी होती हैं जो हमारी ज़िन्दगियों से, हमारी बचपन की यादों से इस तरह से जुड़ी होती हैं कि उन्हें सुनते ही वह गुज़रा ज़माना आँखों के सामने आ जाता है। जगजीत सिंह के जन्मदिवस पर उनकी गाई सुदर्शन फ़ाकिर की इस नज़्म की चर्चा आज 'एक गीत सौ कहानियाँ' में सुजॉय चटर्जी के साथ... एक गीत सौ कहानियाँ # 6 बचपन एक ऐसा समय है जिसकी अहमियत उसके गुज़र जाने के बाद ही समझ आती है। बचपन में ऐसा लगता है कि न जाने कब बड़े होंगे, कब इस पढ़ाई-लिखाई से छुटकारा मिलेगा? पर बड़े होने पर यह अहसास होता है कि टूटे दिल से कहीं बेहतर हुआ करते थे टूटे घुटने, इस तनाव भरी ज़िन्दगी से कई गुणा अच्छा था वह बेफ़िक्री का ज़माना। पर अब पछताने से क्या फ़ायदा, गुज़रा वक़्त तो वापस नहीं आ सकता, बस यादें शेष हैं उस हसीन ज़िन्दगी की, उन बेहतरीन लम्हों की। बस एक फ़रियाद ही कर सकते हैं उपरवाले से कि ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो काग़ज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी। और यही इल्तिजा शायर सुदर्शन फ़ाकिर नें भी की थी अपने इ

हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चाँद... राही मासूम रज़ा, जगजीत-चित्रा एवं आबिदा परवीन के साथ

"मेरे बिना किस हाल में होगा, कैसा होगा चाँद" - बस इस पंक्ति से हीं राही साहब ने अपने चाँद के दु:ख का पारावार खड़ कर दिया है। चाँद शायरों और कवियों के लिए वैसे हीं हमेशा प्रिय रहा है और इस एक चाँद को हर कलमकार ने अलग-अलग तरीके से पेश किया है। अधिकतर जगहों पर चाँद एक महबूबा है और शायद(?) यहाँ भी वही है।

कहाँ तुम चले गए ...बस यही दोहराते रह गए जगजीत के दीवाने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 780/2011/220 ज गजीत सिंह को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'जहाँ तुम चले गए' की अंतिम कड़ी में आप सभी का स्वागत है। दोस्तों, जगजीत सिंह का पंजाबी भाषा और पंजाबी काव्य को लोकप्रिय बनाने और दूर दूर तक फैलाने में भी उल्लेखनीय योगदान रहा है। शिव कुमार बटालवी की कविताओं को जनसाधारण तक पहुँचाने में उनका ऐल्बम 'बिरहा दा सुल्तान' उल्लेखनीय है। "माय नी माय मैं इक शिकरा यार बनाइया", "रोग बन के रह गिया है पियार तेरे शहर दा", "यारियां राब करके मैनुं पाएं बिरहन दे पीड़े वे", "एह मेरा गीत किसी नी गाना" इसी ऐल्बम के कुछ लोकप्रिय गीत हैं। १० मई २००७ को संसद के युग्म अधिवेषन में ऐतिहासिक केन्द्रीय हॉल में जगजीत सिंह नें बहादुर शाह ज़फ़र की ग़ज़ल "लगता नहीं है दिल मेरा" गा कर भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (१८५७) के १५० वर्ष पूर्ति पर आयोजित कार्यक्रम को चार चाँद लगाया। राष्ट्रपति अब्दुल कलाम, प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह, उप-राष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत, लोक-सभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी, और कांग्रेस अध्

ये तेरा घर ये मेरा घर....आम आदमी की संकल्पनाओं को शब्द दिए जावेद अख्तर ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 779/2011/219 ज गजीत सिंह को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'जहाँ तुम चले गए' में एक बार फिर से मैं, सुजॉय चटर्जी, आपका स्वागत करता हूँ। कल की कड़ी में हमनें आपको जगजीत और चित्रा सिंह के कुछ ऐल्बमों के बारे में बताया। उनके बाद जगजीत जी के कई एकल ऐल्बम आये जिनमें शामिल थे Hope, In Search, Insight, Mirage, Visions, कहकशाँ, Love Is Blind, चिराग, और सजदा। मिर्ज़ा ग़ालिब, फ़िराक़ गोरखपुरी, कतील शिफ़ई, शाहीद कबीर, अमीर मीनाई, कफ़ील आज़ेर, सुदर्शन फ़ाकिर, निदा फ़ाज़ली, ज़का सिद्दीक़ी, नाज़िर बकरी, फ़ैज़ रतलामी और राजेश रेड्डी जैसे शायरों के ग़ज़लों को उन्होंने अपनी आवाज़ दी। जगजीत जी के शुरुआती ग़ज़लें जहाँ हल्के-फुल्के और ख़ुशमिज़ाजी हुआ करते थे, बाद के सालों में उन्होंने संजीदे ग़ज़लें ज़्यादा गाई, शायद अपनी ज़िन्दगी के अनुभवों का यह असर था। ऐसे ऐल्बमों में शामिल थे Face To Face, आईना, Cry For Cry. जगजीत जी के ज़्यादातर ऐल्बमों के नाम अंग्रेज़ी होते रहे, और कईयों में उर्दू शब्दों का प्रयोग हुआ जैसे कि 'सजदा', 'सहर', 'मुन्तज़िर', 'मारासिम' और &

बाबुल मोरा नैहर छूटो जाए...पारंपरिक बोलों पर जगजीत चित्रा के स्वरों की महक

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 778/2011/218 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों का स्वागत है इस स्तंभ में जारी शृंखला 'जहाँ तुम चले गए' की आठवीं कड़ी में। आपको याद दिला दें कि यह शृंखला समर्पित है ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह को जिनका हाल में निधन हो गया। ७० के दशक में ग़ज़ल गायकी पर जिन कलाकारों का दबदबा था वो थे नूरजहाँ, मल्लिका पुखराज, बेगम अख़्तर, तलत महमूद, और महदी हसन। इन महारथियों के होने के बावजूद जगजीत सिंह नें अपनी पहचान बना ही ली। १९७६ में उनका पहला एल.पी रेकॉर्ड बाज़ार में आया 'The Unforgetables' के शीर्षक से। इस ऐल्बम की ख़ास बात यह थी कि उन दिनों ग़ज़ल गायकी शास्त्रीय संगीत आधारित हुआ करता था, पर जगजीत सिंह नें हल्के-फुल्के अंदाज़ में ग़ज़लों को गाया और बहुत लोकप्रिय हुईं ये ग़ज़लें। ग़ज़ल के रेकॉर्डों की बिक्री के सारे रेकॉर्ड तोड़ दिए उनकी गाई ग़ज़लों नें। १९६७ में जगजीत सिंह की मुलाक़ात चित्रा से हुई थी जो ख़ुद भी एक गायिका थीं। दो साल बाद दोनों नें शादी कर ली और उनकी यह जोड़ी पहली पति-पत्नी की जोड़ी थी जो गायक-गायिका के रूप में साथ में पर्फ़ॉर्म किया करते। ग़ज़ल जगत को समृद्ध करने

इश्क़ से गहरा कोई न दरिया....सुदर्शन फाकिर और जगजीत का मेल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 777/2011/217 'ज हाँ तुम चले गए' - इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है जगजीत सिंह को श्रद्धांजली स्वरूप यह लघु शृंखला। कल हमारी बात आकर रुकी थी जगजीत जी के नामकरण पर। आइए आज उनके संगीत की कुछ बातें बताई जाएं। बचपन से ही जगजीत का संगीत से नाता रहा है। श्रीगंगानगर में उन्होंने पण्डित शगनलाल शर्मा से दो साल संगीत सीखा, और उसके बाद छह साल शास्त्रीय संगीत के तीन विधा - ख़याल, ठुमरी और ध्रुपद की शिक्षा ग्रहण की। इसमें उनके गुरु थे उस्ताद जमाल ख़ाँ जो सैनिआ घराने से ताल्लुख़ रखते थे। ख़ाँ साहब महदी हसन के दूर के रिश्तेदार भी थे। पंजाब यूनिवर्सिटी और कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के वाइस चान्सलर स्व: प्रोफ़ सूरज भान नें जगजीत सिंह को संगीत की तरफ़ प्रोत्साहित किया। १९६१ में जगजीत बम्बई आए एक संगीतकार और गायक के रूप में क़िस्मत आज़माने। उस समय एक से एक बड़े संगीतकार और गायक फ़िल्म इंडस्ट्री पर राज कर रहे थे। ऐसे में किसी भी नए गायक को अपनी जगह बनाना आसान काम नहीं था। जगजीत सिंह को भी इन्तज़ार करना पड़ा। वो एक पेयिंग् गेस्ट बन कर रहा करते थे और शुरुआती दिनों में

ये जो घर आँगन है...जगजीत व्यावसायिक सिनेमा के दांव पेचों में कुछ मधुरता तलाश लेते थे

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 776/2011/216 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के इस नए सप्ताह में आप सभी का एक बार फिर से मैं, सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ स्वागत करता हूँ। इन दिनों इस स्तंभ में जारी है ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह पर केन्द्रित लघु शृंखला 'जहाँ तुम चले गए'। इस शृंखला में हमारी कोशिश यही है कि जगजीत जी की आवाज़ के साथ साथ ज़्यादातर उन फ़िल्मों के गीत शामिल किए जाएँ जिनका संगीत भी उन्होंने ही तैयार किया है। पाँच गीत आपनें सुनें जो लिए गए थे 'अर्थ', 'कानून की आवाज़', 'राही', 'प्रेम गीत' और 'आज' फ़िल्मों से। आज के अंक के लिए हमने जिस गीत को चुना है, वह है फ़िल्म 'बिल्लू बादशाह' का। यह १९८९ की फ़िल्म थी जिसका निर्माण सुरेश सिंहा नें किया था और निर्देशक थे शिशिर मिश्र। शीर्षक चरित्र में थे गोविंदा, और साथ में थे शत्रुघ्न सिंहा, अनीता राज, नीलम और कादर ख़ान। जगजीत सिंह फ़िल्म के संगीतकार थे और गीत लिखे निदा फ़ाज़ली और मनोज दर्पण नें। इस फ़िल्म में गोविंदा का ही गाया "जवाँ जवाँ" गीत ख़ूब मशहूर हुआ था जो हसन जहांगीर के ग़ैर फ़िल्मी ग

नज़रे करम फरमाओ...जगजीत सिंह के बेमिसाल मगर कमचर्चित शास्त्रीय गायन की एक झलक

सुर संगम- 41 – गायक जगजीत सिंह की संगीत-साधना को नमन ‘ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी गीत-संगीत प्रेमियों का, मैं कृष्णमोहन मिश्र आज ‘सुर संगम’ के नए अंक में स्वागत करता हूँ। पिछले दिनों १० अक्तूबर को विख्यात गीत, ग़ज़ल, भजन और लोक संगीत के गायक और साधक जगजीत सिंह के मखमली स्वर मौन हो गए। सुगम संगीत के इन सभी क्षेत्रों में जगजीत सिंह न केवल भारतीय उपमहाद्वीप में बल्कि पूरे विश्व में लोकप्रिय थे। ‘सुर संगम’ के आज के अंक में हम भारतीय संगीत में उनके प्रयोगधर्मी कार्यों पर चर्चा करेंगे। जगजीत सिंह का जन्म ८ फरवरी, १९४१ को राजस्थान के गंगानगर में हुआ था। पिता सरदार अमर सिंह धमानी सरकारी कर्मचारी थे। जगजीत सिंह का परिवार मूलतः पंजाब के रोपड़ ज़िले के दल्ला गाँव का रहने वाला है। उनकी प्रारम्म्भिक शिक्षा गंगानगर के खालसा स्कूल में हुई और बाद में माध्यमिक शिक्षा के लिए जालन्धर आ गए। डी.ए.वी. कॉलेज से स्नातक की और इसके बाद कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की। जगजीत सिंह को बचपन मे अपने पिता से संगीत विरासत में मिला था। गंगानगर मे ही पण्डित छगनलाल शर्मा से दो साल

रिश्ता ये कैसा है....जिस रिश्ते से बंधे हैं जगजीत और उनके चाहने वाले

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 775/2011/215 न मस्कार! 'जहाँ तुम चले गए', इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है गायक और संगीतकार जगजीत सिंह को श्रद्धांजली स्वरूप यह लघु शृंखला में जिसमें हम उनके गाये और स्वरबद्ध गीत सुन रहे हैं। अब तक हमने इस शृंखला में चार गीत सुनें जगजीत जी द्वारा स्वरबद्ध किए हुए, जिनमें से दो उन्हीं के गाये हुए थे, तथा एक एक गीत लता जी और आशा जी की आवाज़ में थे। आज जो गीत हम लेकर आये हैं, उसे भी जगजीत जी नें ही कम्पोज़ किया है, पर गाया है उनकी पत्नी और गायिका चित्रा सिंह नें। यह गीत है फ़िल्म 'आज' का "रिश्ता ये कैसा है, नाता ये कैसा है"। यह १९९० की फ़िल्म थी महेश भट्ट द्वारा निर्देशित। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे राज किरण, कुमार गौरव, अनामिका पाल, स्मिता पाटिल और मार्क ज़ुबेर। फ़िल्म के तमाम गीत जगजीत और चित्रा सिंह नें गाये। फ़िल्म का शीर्षक गीत जगजीत जी का गाया हुआ था। फ़िल्म 'राही' के उसी गीत की तरह यह भी एक आशावादी दार्शनिक गीत था "फिर आज मुझे रुमको बस इतना बताना है, हँसना ही जीवन है, हँसते ही जाना है"। आज का प्रस्तुत गी

तेरे गीतों की मैं दीवानी ओ दिलबरजानी...फिल्म संगीत की शोखियों से भी वाकिफ़ थे जगजीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 774/2011/214 न नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक और कड़ी में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, चारों तरफ़ दीवाली की धूम है, ख़ुशियों भरा आलम है, पर इस बार दीवाली मनाने को जी नहीं करता। ग़ज़लों के शहदाई ग़मगीन हैं ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह के आकस्मिक निधन से। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों जारी है स्वर्गीय जगजीत सिंह को श्रद्धांजली स्वरूप उन्हें समर्पित लघु शृंखला 'जहाँ तुम चले गए'। इसमें हम न केवल उनके गाये फ़िल्मी गीत सुनवा रहे हैं, बल्कि ज़्यादा से ज़्यादा कोशिश यही है कि उनके द्वारा स्वरबद्ध फ़िल्मों के गीत शामिल किए जाएँ। आज हमनें जिस गीत को चुना है, उसे जगजीत सिंह नें स्वरबद्ध किया है और गाया है आशा भोसले नें। गीत के बारे में बताने से पहले ये रहा आशा जी का शोक संदेश - "जगजीत जी की ग़ज़लें मन को शान्ति देती है, उनकी ग़ज़लों को सुनना एक सूदिंग् एक्स्पीरियन्स होता है। अगर किसी को दैनन्दिन तनाव से बाहर निकलना चाहता है तो सबसे अच्छा साधन है जगजीत सिंह का कोई रेकॉर्ड बजाना। मुझे चित्रा के लिए बहुत अफ़सोस है। उन्होंने पहले अपने बेटे को ख

ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो....आशा के स्वर जगजीत के सुरों में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 773/2011/213 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में इन दिनों हम श्रद्धांजली अर्पित कर रहे हैं ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह को, जिनका पिछले १० अक्टूबर को देहावसान हो गया। 'जहाँ तुम चले गए' शृंखला की कल की कड़ी में हमने लता जी का शोक-संदेश आप तक पहुंचाया था, आइए आज कुछ और शोक-संदेश पढ़ें। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नें कहा कि जगजीत सिंह अपने गोल्डन वायस के लिए हमेशा याद किए जायेंगे। उनके शब्दों में - " by making ghazals accessible to everyone, he gave joy and pleasure to millions of music lovers in India and abroad....he was blessed with a golden voice. The ghazal maestro’s music legacy will continue to “enchant and entertain” the people. " गीतकार जावेद अख़्तर बताते हैं, " जगजीत सिंह की मृत्यु नें हिन्दी फ़िल्म और म्युज़िक इंडस्ट्री को कभी न पूरी होने वाले क्षति पहुँचाई है। मैंने उनको पहली बार स्कूल में रहते हुए सुना था जब मैं IIT Kanpur के एक कार्यक्रम में गया था, वह था 'Music Night by Jagjit Singh and Chitra'। " शास्त्रीय गायिका शुभा

सिंदूर की होय लम्बी उमरिया...जगजीत और लता जी की पहली भेंट

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 772/2011/212 न नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में कल से हमने शुरु की है मशहूर ग़ज़ल गायक व संगीतकार स्वर्गीय जगजीत सिंह को श्रद्धांजली स्वरूप हमारी ख़ास शृंखला 'जहाँ तुम चले गए'। उनका जाना ग़ज़ल-जगत के लिए एक विराट क्षति है जिसकी कभी भरपाई नहीं हो सकती। स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर नें अपने शोक संदेश में एक निजी न्यूज़ चैनल को बताया, "इस बात का मुझे बहुत दुख है, बहुत ही ज़्यादा दुख है कि जगजीत जी आज हमारे बीच नहीं रहे। मैंने उनके साथ काम किया है, और एक ही रेकॉर्ड किया था, और वो उस वक़्त बहुत चला था। और मुझे वो सब बातें याद आती हैं कि कैसे उन्होंने वह गाना रेकॉर्ड किया था, कैसे वो मुझे सिखाते थे, क्या क्या बातें होती थीं, सब। पहले तो वो मुझे गानें पढ़ के सुनाये, ग़ज़लें जो थीं, फिर कहा कि जो पसन्द नहीं आती हैं, वो मत गाइए। मैंने कहा कि नहीं ऐसी बात नहीं है, सभी ग़ज़लें अच्छी हैं। और जब उन्होंने रिहर्सल्स शुरु किए तो एक चीज़ वो बताते थे कि ऐसा नहीं वैसा होना चाहिए, इस तरह से नहीं इस तरह से गाना चाहिए, मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं एक नई सिंगर आई हू