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Showing posts with the label Kishor Kumar

"गाता रहे मेरा दिल...", क्यों फ़िल्म के बन जाने के बाद इस गीत को जोड़ा गया?

एक गीत सौ कहानियाँ - 81   ' गाता रहे मेरा दिल... '   रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 81-वीं कड़ी में आज जानिए 1966 की मशहूर फ़िल्म ’गाइड’ के मशहूर गीत "गाता रहे मेरा दिल..." के बारे में जिसे किशोर

"सदियों से दुनिया में यही तो क़िस्सा है....", इस गीत के बनने की कहानी से श्रद्धांजलि स्वर्गीय निदा फ़ाज़ली को!

एक गीत सौ कहानियाँ - 76   'सदियों से दुनिया में यही तो क़िस्सा है...'   रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 76-वीं कड़ी में आज श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं जानेमाने शायर और फ़िल्मी गीतकार निदा फ़ाज़ली को जिनका 8 फ़रवरी 2

राग श्यामकल्याण : SWARGOSHTHI – 256 : RAG SHYAM KALYAN

स्वरगोष्ठी – 256 में आज दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 4 : राग श्यामकल्याण उस्ताद अमजद अली खाँ और किशोर कुमार से सुनिए श्यामकल्याण की प्रस्तुतियाँ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला – ‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग’ की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-रसिकों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों की चर्चा कर रहे हैं, जिनमें दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। संगीत के सात स्वरों में ‘मध्यम’ एक महत्त्वपूर्ण स्वर होता है। हमारे संगीत में मध्यम स्वर के दो रूप प्रयोग किये जाते हैं। स्वर का पहला रूप शुद्ध मध्यम कहलाता है। 22 श्रुतियों में दसवाँ श्रुति स्थान शुद्ध मध्यम का होता है। मध्यम का दूसरा रूप तीव्र या विकृत मध्यम कहलाता है, जिसका स्थान बारहवीं श्रुति पर होता है। शास्त्रकारों ने रागों के समय-निर्धारण के लिए कुछ सिद्धान्त निश्चित किये हैं। इन्हीं में से एक सिद्धान्त है, “अध्वदर्शक स्वर”। इस सिद्धान्त के अनुसार राग का मध्यम स्वर महत्त्वपूर्ण हो जाता

"हर कोई चाहता है एक मुट्ठी आसमाँ..." - जानिये, किस भागमभाग में रेकॉर्ड हुआ था यह गाना

एक गीत सौ कहानियाँ - 52   ‘ हर कोई चाहता है एक मुट्ठी आसमाँ ... ’ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ- 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 5 2 वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'एक मुट्ठी आसमाँ' के शीर्षक गीत "हर कोई चाहता है एक मुट्ठी आसमाँ..." के बारे में जिसे किशोर कुमार ने

‘छेड़ दिये मेरे दिल के तार क्यों...’ : SWARGOSHTHI – 197 : RAG KAMOD

स्वरगोष्ठी – 197 में आज शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत – 6 : राग कामोद पार्श्वगायक किशोर कुमार के लिए जब उस्ताद अमानत अली खाँ ने स्वर दिया ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी है, हमारी लघु श्रृंखला, ‘शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत’। फिल्म संगीत के क्षेत्र में चौथे से लेकर आठवें दशक के बीच शास्त्रीय संगीत के कई विद्वानों और विदुषियों ने अपना योगदान किया है। छठें दशक के फिल्म संगीत में इस प्रकार के गीतों की संख्या अधिक थी। इस श्रृंखला में हमने कुछ ऐसे ही फिल्मी गीतों का चुनाव किया है, जिन्हें रागदारी संगीत के प्रयोक्ताओं और विशेषज्ञों ने रचा है। इन रचनाओं में राग के स्पष्ट स्वरूप की उपस्थिति मिलती है। श्रृंखला के छठें अंक में आज हम आपसे 1958 में प्रदर्शित नृत्य प्रधान फिल्म ‘रागिनी’ के एक गीत पर चर्चा करेंगे। फिल्म का यह गीत राग कामोद के स्वरों में गूँथा गया है। पटियाला घराने के युगल गायक उस्ताद अमानत अली खाँ और फतेह अली खाँ ने इस गीत को स्वर दिया है। फिल्म के संगीतकार ओ.पी. नैयर ने इस गीत का प्

किशोर कुमार को याद करती हुईं फ़िल्म-जगत की तीन देवियाँ

स्मृतियों के स्वर - 11 किशोर कुमार को याद करती हुईं फ़िल्म-जगत की तीन देवियाँ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, एक ज़माना था जब घर बैठे प्राप्त होने वाले मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो हुआ करता था। गीत-संगीत सुनने के साथ-साथ बहुत से कार्यक्रम ऐसे हुआ करते थे जिनमें कलाकारों के साक्षात्कार प्रस्तुत किये जाते थे, जिनके ज़रिये फ़िल्म और संगीत जगत की तमाम हस्तियों की कलात्मक ज़िन्दगी से जुड़ी बहुत सी बातें जानने को मिलती थी। गुज़रे ज़माने के इन अमर फ़नकारों की आवाज़ें आज केवल आकाशवाणी और दूरदर्शन के संग्रहालय में ही सुरक्षित हैं। मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि शौकिया तौर पर मैंने पिछले बीस वर्षों में बहुत से ऐसे कार्यक्रमों को लिपिबद्ध कर अपने पास एक ख़ज़ाने के रूप में समेट रखा है। 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर, महीने के हर दूसरे और चौथे शनिवार को इसी ख़ज़ाने में से मैं निकाल लाता हूँ कुछ अनमोल मोतियाँ हमारे इस स्तम्भ के लिए, जिसका शीर्षक है - स्मृतियों के स्वर। इस स्तम्भ में हम और आप, साथ मिल कर गुज़रते हैं स्

"बजाओ रे बजाओ, इमानदारी से बजाओ, पचास हज़ार खर्च कर दिये..."

एक गीत सौ कहानियाँ - 27   ‘ जय जय शिवशंकर, काँटा लगे न कंकड़ ...’ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कप्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारी ज़िन्दगियों से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह साप्ताहिक स्तंभ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 27-वीं कड़ी में आज हम आपके लिए लेकर आये हैं फ़िल्म 'आपकी कसम' के मशहूर गीत "जय जय शिवशंकर, काँटा लगे न कंकड़" से संबंधित कुछ दिलचस्प तथ्यों की जानकारियाँ