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दिल तोड़ने वाले तुझे दिल ढूंढ रहा है....महबूब खान ने दिल तो नहीं तोडा मगर दिल उन्हें ढूंढ रहा है आज भी शायद

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 540/2010/240 'हिं दी सिनेमा के लौह स्तंभ'। इस शृंखला के दूसरे खण्ड में इन दिनों आप सुन रहे हैं फ़िल्मकार महबूब ख़ान के फ़िल्मों के गानें और महबूब साहब के फ़िल्मी यात्रा का संक्षिप्त विवरण। आज हम आ पहुँचे हैं इस खण्ड की अंतिम कड़ी पर। कल हमारी चर्चा आकर रुकी थी महबूब साहब की सब से मशहूर फ़िल्म 'मदर इण्डिया' पे आकर। आइए 'मदर इण्डिया' फ़िल्म से जुड़े कुछ और रोचक तथ्य आपको बताएं। फ़िल्म के ओपेनिंग् सीक्वेन्स में एक हथोड़ा और कटारी दिखाया जाता है, जो कि महबूब साहब की कंपनी का लोगो था। लेकिन क्योंकि इस फ़िल्म को ऒस्कर में शामिल किया जा रहा था और ऐण्टि-कम्युनिस्ट का दौर था, इसलिए इस सीक्वेन्स को फ़िल्म से हटा दिया गया था। शुरु शुरु में सुनिल दत्त द्वारा निभाया गया बिरजु का किरदार साबू द्वारा निभाया जाना था, जो कि भारतीय मूल के एक मशहूर हॊलीवूड ऐक्टर थे। शूटिंग के दौरान एक अग्निकांड के सीक्वेन्स में नरगिस आग के घेरे में आ गईं थीं और आग बेकाबू हो गयी था। ऐसे में ख़ुद सुनिल दत्त ने एक कम्बल के सहारे नरगिस को आग से बाहर निकाला था। और यहीं से दोनों म...

आज की ताजा खबर... बरसों पुराना यह गीत आज के मीडिया राज में कहीं अधिक सार्थक है.

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 47 अ गर मैं आप से यह पूछूँ कि क्या आप ने "नन्हा मुन्ना राही हूँ, देश का सिपाही हूँ" गीत सुना है या नहीं, तो शायद ही आप में से किसी का जवाब नहीं में होगा. लेकिन अगर मैं आप से इस गीत की गायिका का नाम पूछूँ तो शायद आप में से कुछ लोग इनका नाम ना बता पाएँ. इस कालजयी देश भक्ति गीत को गाया था बाल गायिका शांति माथुर ने, और यह "सन ऑफ इंडिया" फिल्म का गाना है. ज़रा सोचिए कि केवल एक देशभक्ति गीत गाकर ही उन्होने अपनी ऐसी छाप छोडी है कि आज वो गीत ही उनकी पहचान बनकर रह गया है. आज हम 'ओल्ड इस गोल्ड' में यह गाना तो नहीं, लेकिन इसी फिल्म से शांति माथुर का ही गाया हुआ एक दूसरा गीत सुनवा रहे हैं. शांति माथुर का शुमार बेहद कमचर्चित गायिकाओं में होता है और उनके बारे में बहुत कम सुना और कहा गया है. दरअसल दो एक फिल्मों के अलावा इन्होने किसी फिल्म में नहीं गाया है और ना ही बडी होने के बाद फिल्मी गायन के क्षेत्र में वापस आईं हैं. अगर हम यह मानकर चलें कि 1962 की फिल्म सन ऑफ इंडिया के वक़्त उनकी उम्र 10 साल रही होगी, तो आज वो अपने 50 के दशक में होंगीं और हम उन...

भूलने वाले याद न आ...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 23 न मस्ते दोस्तों, 'ओल्ड इस गोल्ड' की एक और सुरीली शाम के साथ हम हाज़िर हैं. दोस्तों, अब तक इस शृंखला में हमने आपको जितने भी गाने सुनवाए हैं वो 50 और 60 के दशकों के फिल्मों से चुने गये थे. लेकिन आज हम झाँक रहे हैं 40 के दशक में. इस दशक को हालाँकि कुछ लोग फिल्म संगीत का सुनहरा दौर नहीं मानते हैं, लेकिन इस दशक के आखिर के दो-तीन सालों में फिल्म संगीत में बहुत से परिवर्तन आए. देश के बँटवारे के बाद उस ज़माने के कई कलाकार पाकिस्तान चले गये, वहाँ के कई कलाकार यहाँ आ गये. नये गीतकार, संगीतकार और गायक गायिकाओं ने इस क्षेत्र में कदम रखा. फिल्म संगीत की धारा और लोगों की रूचि बदलने लगी. नये फनकारों के नये नये अंदाज़ जनता को रास आने लगा और यह फनकार तेज़ी से कामयाबी की सीढियाँ चढ़ने लगे. ऐसे ही एक संगीतकार थे नौशाद. नौशाद साहब ने अपनी पारी की शुरुआत 1942 में करने के बाद 1944 की फिल्म "रत्तन" में उन्हे पहली बड़ी कामयाबी नसीब हुई. इसके बाद उन्हे पीछे मुड्कर देखने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई. सन् 1948 में उन्ही के संगीत से सजी एक फिल्म आई थी "अनोखी अदा...