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१८ फरवरी - आज का गाना

गाना:  ओह रे ताल मिले नदी के जल में चित्रपट: अनोखी रात संगीतकार: रोशन गीतकार: इंदीवर गायक: मुकेश ओह रे ताल मिले नदी के जल में नदी मिले सागर में सागर मिले कौन से जल में कोई जाने ना ओह रे ताल मिले नदी के जल में ... अन्जाने होंठों पर ये (पहचाने गीत हैं - २) कल तक जो बेगाने थे जनमों के मीत हैं ओ मितवा रे ए ए ए कल तक ... क्या होगा कौन से पल में कोई जाने ना ओह रे ताल मिले नदी के जल में ... सूरज को धरती तरसे (धरती को चंद्रमा - २) पानी में सीप जैसे प्यासी हर आतमा ओ मितवा रे ए ए ए ए पानी में ... बूंद छुपी किस बादल में कोई जाने ना ओह रे ताल मिले नदी के जल में ...

सागर मिले कौन से जल में....जीवन की तमाम सच्चाइयां समेटे है ये छोटा सा गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 85 जी वन दर्शन पर आधारित गीतों की जब बात चलती है तो गीतकार इंदीवर का नाम झट से ज़हन में आ जाता है। यूँ तो संगीतकार जोड़ी कल्याणजी - आनंदजी के साथ इन्होने बहुत सारे ऐसे गीत लिखे हैं, लेकिन आज हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में उनके लिखे जिस दार्शनिक गीत को आप तक पहुँचा रहे हैं वो संगीतकार रोशन की धुन पर लिखा गया था। मुकेश और साथियों की आवाज़ों में यह गीत है फ़िल्म 'अनोखी रात' का - "ताल मिले नदी के जल में, नदी मिले सागर में, सागर मिले कौन से जल में कोई जाने ना". १९६८ में प्रदर्शित यह फ़िल्म रोशन की अंतिम फ़िल्म थी। इसी फ़िल्म के गीतों के साथ रोशन की संगीत यात्रा और साथ ही उनकी जीवन यात्रा भी अचानक समाप्त हो गई थी १९६७, १६ नवंबर के दिन। अचानक दिल का दौरा पड़ने से उनका अकाल निधन हो गया। इसे भाग्य का परिहास ही कहिए या फिर काल की क्रूरता कि जीवन की इसी क्षणभंगुरता को साकार किया था रोशन साहब के इस गीत ने, और यही गीत उनकी आख़िरी गीत बनकर रह गया. ऐसा लगा जैसे उनका यह गीत उन्होने अपने आप पर ही सच साबित करके दिखाया। इंदीवर ने जो भाव इस गीत में साकार किया है...