स्वरगोष्ठी – ५७ में आज ‘छम छम नाचत आई बहार...’ बसन्त ऋतु में गाये-बजाये जाने वाले कुछ मुख्य रागों की चर्चा का यह सिलसिला हमने गत सप्ताह से आरम्भ किया है। इस श्रृंखला की अगली कड़ी में आज हम आपसे राग बहार पर चर्चा करेंगे। राग बहार एक प्राचीन राग है, जिसमें शास्त्रीय, उपशास्त्रीय, सुगम और लोक संगीत की रचनाएँ भरपूर मिलतीं हैं। इस राग के स्वर-समूह प्रकृतिक परिवेश रचने में पूर्ण समर्थ हैं। ‘स्व रगोष्ठी’ के ५७ वें अंक में आप सभी संगीत-प्रेमियों का, मैं कृष्णमोहन मिश्र, हार्दिक स्वागत करता हूँ। पिछले अंक में हमने आपसे राग बसन्त के बारे में चर्चा की थी। ऋतुओं पर आधारित रागों की श्रृंखला में आज बारी है, राग बहार की। बसन्त ऋतु के परिवेश को चित्रित करने में राग बहार के स्वर पूर्ण सक्षम हैं। इस राग पर चर्चा का आरम्भ हम अतीत के सुनहरे दौर के एक फिल्मी गीत से करेंगे। १९४३ में रणजीत स्टुडियो द्वारा एक उल्लेखनीय फिल्म ‘तानसेन’ का प्रदर्शन हुआ था। इस फिल्म में गायक-अभिनेता कुन्दनलाल सहगल तानसेन की भूमिका में और अभिनेत्री-गायिका खुर्शीद, तानसेन की प्रेमिका की भूमिका में थीं। संगीतकार खेमचन्