स्वरगोष्ठी – 150 में आज      रागों में भक्तिरस – 18      कृष्ण की लौकिक बाललीला का अलौकिक चित्रण    ‘मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो...’          ‘ रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर  जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की अठारहवीं कड़ी के साथ मैं  कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-रसिकों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ।  मित्रों, इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपके लिए भारतीय संगीत के कुछ भक्तिरस  प्रधान राग और कुछ प्रमुख भक्तिरस कवियों की रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं।  साथ ही उस भक्ति रचना के फिल्म में किये गए प्रयोग भी आपको सुनवा रहे हैं।  श्रृंखला की पिछली दो कड़ियों में हमने आपसे पन्द्रहवीं शताब्दी के सन्त कवि  कबीर के व्यक्तित्व और उनके एक पद- ‘चदरिया झीनी रे बीनी...’ पर चर्चा की  थी। आज के अंक में हम सोलहवीं शताब्दी के कृष्णभक्त कवि सूरदास के एक  लोकप्रिय पद- ‘मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो...’ पर सांगीतिक चर्चा करेंगे।  सूरदास के इस पद को भारतीय संगीत के अनेकानेक शीर्षस्थ कलासाधकों स्वर  दिया है, परन्तु ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के इस अंक में हम आपको यह ...
