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मुझे फिर वही याद आने लगे हैं.... महफ़िल-ए-बेकरार और "हरि" का "खुमार"

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #१६ आ ज हम जिन दो शख्सियतों की बात करने जा रहे हैं,उनमें से एक को अपना नाम साबित करने में पूरे १८ साल लगे तो दूसरे नामचीन होने के बावजूद मुशाअरों तक हीं सिमटकर रह गए। जहाँ पहला नाम अब सबकी जुबान पर काबिज रहता है, वहीं दूसरा नाम मुमकिन है कि किसी को भी मालूम न हो(आश्चर्य की बात है ना कि एक नामचीन इंसान भी गुमनाम हो सकता है) । यूँ तो मैं चाहता तो आज का पूरा अंक पहले फ़नकार को हीं नज़र कर देता,लेकिन दूसरे फ़नकार में ऐसी कुछ बात है कि जब से मैने उन्हें पढा,सुना और देखा है(युट्युब पर)है, तब से उनका क़ायल हो गया हूँ और इसीलिए चाहता हूँ कि आज की गज़ल के "गज़लगो" भी दुनिया के सामने उसी ओहदे के साथ आएँ जिस ओहदे और जिस कद के साथ आज की गज़ल के "संगीतकार" और "गायक" को पेश किया जाना है। तो चलिए पहले फ़नकार से हीं बात की शुरूआत करते हैं। आपको शायद याद हो कि जब हम "छाया गांगुली" और उनकी एक प्यारी गज़ल की बात कर रहे थे तो इसी दरम्यान "गमन" की बात उभर आई थी। "गमन"- वही मुज़फ़्फ़र अली की एक संजीदा फिल्म, जिसके गानों को संगीत से स