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चित्रकथा - 36: हाल के फ़िल्मी गीतों में शास्त्रीय संगीत की छाया

अंक - 36 हाल के फ़िल्मी गीतों में शास्त्रीय संगीत की छाया "साजन आयो रे, सावन लायो रे..."  एक ज़माना था जब हिन्दी फ़िल्मी गीतों में शास्त्रीय रागों का समावेश होता था। राग आधारित रचनाओं ने उन फ़िल्मों के ऐल्बमों के स्तर को ही केवल उपर नहीं उठाया बल्कि सुनने वालों को भी मंत्रमुग्ध कर दिया। फिर धीरे धीरे बदलते समय के साथ-साथ फ़िल्मी गीतों का चदल बदला; पाश्चात्य संगीत उस पर हावी होने लगा और 80 के दशक के आते-आते जैसे शास्त्रीय संगीत फ़िल्मी गीतों से पूरी तरह से ग़ायब ही हो गया। फिर भी समय-समय पर फ़िल्म की कहानी, चरित्र और ज़रूरत के हिसाब से भारतीय शास्त्रीय संगीत आधारित रचनाएँ हमारी फ़िल्मों में आती रही हैं। आज के दौर की फ़िल्मों में भी कई गीत शास्त्रीय संगीत की छाया लिए होते हैं। भले इनमें रागों का शुद्ध रूप से प्रयोग ना हो, लेकिन एक छाया उनमें ज़रूर होती है। आज ’चित्रकथा’ के इस अंक में हम नज़र डालेंगे हाल के कुछ बरसों में बनने वाली फ़िल्मों के उन गीतों पर जिनमें भारतीय शास्त्रीय संगीत की छाया दिखाई देती है। इस लेख को तैयार करने में कृष्णमोहन मिश्र जी का विशेष योग