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‘प्रेम जोगन बन के...’ : SWARGOSHTHI – 195 : RAG SOHANI

स्वरगोष्ठी – 195 में आज शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत – 4 : राग सोहनी एक बड़े मानदेय के एवज में उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ ने रचे मुगल-ए-आजम के मनोहारी गीत ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी है, हमारी लघु श्रृंखला, ‘शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत’। फिल्म संगीत के क्षेत्र में चौथे से लेकर आठवें दशक के बीच शास्त्रीय संगीत के कई विद्वानों और विदुषियों ने अपना योगदान किया है। इस श्रृंखला में हमने कुछ ऐसे ही फिल्मी गीतों का चुनाव किया है, जिन्हें रागदारी संगीत के प्रयोक्ताओं और विशेषज्ञों ने रचा है। इन रचनाओं में राग के स्पष्ट स्वरूप की उपस्थिति मिलती है। श्रृंखला के चौथे अंक में आज हम आपसे 1956 में प्रदर्शित, भारतीय फिल्म जगत की उल्लेखनीय फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ के एक गीत- ‘प्रेम जोगन बन के...’ पर चर्चा करेंगे। फिल्म के इस गीत में राग सोहनी के स्वरों का भावपूर्ण उपयोग किया गया है। भारतीय संगीत के शीर्षस्थ साधक उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ ने इस गीत को स्वर दिया था। खाँ साहब ने अपने पूरे सांगीतिक जीवनकाल में एकमात्र फिल्म ...

भोर की लाली का आह्वान करते आठवें प्रहर के राग

स्वरगोष्ठी – 110 में आज राग और प्रहर – 8 / समापन कड़ी ‘देख वेख मन ललचाय...’ : सोहनी, भटियार, ललित और कलिंगड़ा रागों के रंग आज एक बार फिर मैं कृष्णमोहन मिश्र ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ संगीत-प्रेमियों की इस गोष्ठी में उपस्थित हूँ। पिछली सात कड़ियों में हमने दिन और रात के सात प्रहरों में गाये-बजाये जाने वाले रागों पर चर्चा की है। आज इस श्रृंखला की समापन कड़ी है और इस कड़ी में हम आपसे आठवें प्रहर अर्थात रात्रि के चौथे प्रहर के कुछ रागों की चर्चा करेंगे। आठवाँ प्रहर रात्रि के लगभग तीन बजे से लेकर सूर्योदय की लाली फूटने तक की अवधि को माना जाता है। इस अवधि में प्रस्तुत किये जाने वाले रागों में उजाले का आह्वान, रात की कालिमा व्यतीत होने की कामना और कुछ अलसाए भावों की अभिव्यक्ति होती है। श्रृंखला की समापन कड़ी में आज हम आपसे राग सोहनी, भटियार, ललित और कलिंगड़ा की संक्षिप्त चर्चा करेंगे और इन रागों में कुछ चुनी हुई रचनाएँ भी प्रस्तुत करेंगे।  आ ठवें प्रहर अर्थात रात्रि के अन्तिम प्रहर में गाये-बजाये जाने वाले रागों में आज सबसे पहले हम आप...