Skip to main content

Posts

Showing posts with the label Anita Kumar

आपको देख कर देखता रह गया...- जगजीत की गायिकी को शिशिर का सलाम

अभी कुछ दिनों पहले हमने आपको सुनवाया था शिशिर पारखी की रेशमी आवाज़ में जिगर मुरादाबादी का कलाम. जैसा कि हमने आपको बताया था कि शिशिर इन दिनों अपने अफ्रीका दौरे पर हैं जहाँ वो अपनी ग़ज़लों से श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध कर रहे हैं. पर वहां भी वो प्रतिदिन आवाज़ को पढना नहीं भूलते. बीते सप्ताह नारोबी (दक्षिण अफ्रीका) में हुए एक कंसर्ट में उन्होंने जगजीत सिंह साहब की एक खूबसूरत ग़ज़ल को अपनी आवाज़ दी जिसकी रिकॉर्डिंग आज हम आपके लिए लेकर आये हैं. जगजीत की ये ग़ज़ल अपने समय में बेहद मशहूर हुई थी और आज भी इसे सुनकर मन मचल उठता है. कुछ शेर तो इस ग़ज़ल में वाकई जोरदार हैं. बानगी देखिये - उसकी आँखों से कैसे छलकने लगा, मेरे होंठों पे जो माज़रा रह गया.... और ऐसे बिछडे सभी रात के मोड़ पर, आखिरी हमसफ़र रास्ता रह गया... गौरतलब है कि अभी पिछले सप्ताह ही आवाज़ पर अनीता कुमार ने जगजीत सिंह पर दो विशेष आलेख प्रस्तुत किये थे, आज सुनिए शिशिर पारखी की आवाज़ में मूल रूप से जगजीत की गाई ये ग़ज़ल -

एक सम्मोहन का नाम है जगजीत सिंह

पुरुस्कार और म्युजिक थैरेपी इसके अलावा भी उनकी और एलबम आयी जैसे कहकशां, चिराग जो बहुत लोकप्रिय हुईं। कुछ आलोचकों ने ( जी हां कुछ आलोचक अब भी बचे हुए थे) दबी जबान में कहना शुरु किया कि हांSSSSS , जगजीत सिंह सिर्फ़ सेमी क्लासिकल गजल ही गा सकते हैं उनके पास वेरायटी नहीं है। इस का जवाब दिया जगजीत जी ने पंजाबी गाने गा कर जो एकदम फ़ास्ट, जिंदा दिली से भरे हुए गाने थे जिन्हें सुनते ही आप के कदम अपने आप थिरकने लगें। साथ ही उन्हों ने गाये भजन जो मन को इतनी शांती देते हैं कि आप मेडिटेशन कर सकते हैं। सबसे ऊंची प्रेम सगाई और अब सुनिए एक पंजाबी गाना और आज भी जगजीत जी गायकी के क्षेत्र में नये नये प्रयोग कर रहे हैं । लोग कहते हैं कि नब्बे के दशक से उनकी आवाज में, उनकी गायकी में और निखार आ गया है। मानव मन का ऐसा कोई एहसास नहीं जिसे जगजीत जी अपनी गजलों में न उतार सकते हों। इसी कारण अनेकों बार उन्हें अलग अलग सरकारों से सम्मान मिला है। उनके पिता जो साठ के दशक में उनके संगीत में अपना भविष्य बनाने के निश्चय से चिंतित थे आज गर्व से फ़ूले नहीं समाते। लेकिन सबसे बड़ा पुरुस्कार तो जगजीत जी की गायकी को तब मि...

जगजीत सिंह ‘The Pied Piper’

रेडियो पर जगजीत सिंह की गजल बज रही है और मुझे याद आ रहा है, वो नब्बे का दशक जब हमारी उम्र रही होगी तीस के ऊपर(कितनी ऊपर हम नहीं बताने वाले…:)) पतिदेव काम के सिलसिले में अक्सर शहर से बाहर रहते थे। जब जब वो बाहर जाते दिन तो रोज की दिनचर्या में गुजर जाता लेकिन रातों को हमें अकेले डर के मारे नींद न आती। अब क्या करते? ऐसे में पूरी पूरी रात जगजीत सिंह की आवाज हमारा सहारा बनती। मेरी पंसद के एक दो गीत हो जाएं,क्या कहते हैं आप ? परेशां रात सारी हैं सितारों तुम तो सो जाओ.. . मेरी तन्हाइयों तुम भी लगा लो मुझको सीने से कि मैं घबरा गया हूँ इस तरह रो रो के जीने से आप कहेगें नब्बे का दशक? लेकिन जगजीत सिंह और चित्रा सिंह( उनकी धर्मपत्नी) की जोड़ी तो 1976 में ही अपनी पहली एलबम “The Unforgettables” से ही लोकप्रिय हो गये थे। जी हां जानते हैं, जानते हैं, हम भी उसी युवा वर्ग से थे जो उनकी पहली एल्बम से ही उनकी आवाज का दिवाना हो गया था, इसी लिए तो अपने संगीत के खजाने में से सिर्फ़ उनके ही कैसेट निकाल कर सुने जाते थे। भई तब सी डी का रिवाज नहीं था न्। अब जब कोई आप को इतना प्रभावित करे तो उसके बारे में सब कु...

दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे.... बेगम अख्तर

( पहले अंक से आगे..) अख्तर बेगम जितनी अच्छी फ़नकार थीं उतनी ही खूबसूरत भी थीं। कई राजे महाराजे उनका साथ पाने के लिए उनके आगे पीछे घूमते थे लेकिन वो टस से मस न होतीं। अकेलेपन के साथी थे- कोकीन,सिगरेट, शराब और गायकी। इन सब के बावजूद उनकी आवाज पर कभी कोई असर नहीं दीखा। अल्लाह की नेमत कौन छीन सकता था। 1945 में जब उनकी शौहरत अपनी चरम सीमा पर थी उन्हें शायद सच्चा प्यार मिला और उन्हों ने इश्तिआक अहमद अब्बासी, जो पेशे से वकील थे, से निकाह कर लिया और अख्तरी बाई फ़ैजाबादी से बेगम अख्तर बन गयीं। गायकी छोड़ दी और पर्दानशीं हो गयीं। बहुत से लोगों ने उनके गायकी छोड़ देने पर छींटाकशी की,"सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली" लेकिन उन्हों ने अपना घर ऐसे बसाया मानों यही उनकी इबादत हो। पांच साल तक उन्हों ने बाहर की दुनिया में झांक कर भी न देखा। लेकिन जो तकदीर वो लिखा कर लायी थीं उससे कैसे लड़ सकती थीं। वो बिमार रहने लगीं और डाक्टरों ने बताया कि उनकी बिमारी की एक ही वजह है कि वो अपने पहले प्यार, यानी की गायकी से दूर हैं। मानो कहती हों - इतना तो ज़िन्दगी में किसी के खलल पड़े... उनके शौहर की शह पर 1949 में...

मल्लिका-ए-गजल - बेगम अख्तर

सुना है तानसेन जब दीपक राग गाते थे तो दीप जल उठते थे और जब मेघ मल्हार की तान छेड़ते थे तो मेघ अपनी गठरी खोलने को मजबूर हो जाते थे। पीछे मुड़ कर देखें तो न जाने कितने ही ऐसे फ़नकार वक्त की चादर में लिपटे मिल जाते हैं जो इतिहास का हिस्सा बन कर भी आज भी हमारे दिलो जान पर छाये हुए हैं, आज भी उनका संगीत आदमी तो आदमी, पशु पक्षियों, वृक्षों और सारी कायनात को अपने जादू से बांधे हुए है। आइए ऐसी ही एक जादूगरनी से आप को मिलवाते हैं जो बेगम अख्तर के नाम से मशहूर हैं। आज से लगभग एक सदी पहले जब रंगीन मिजाज, संगीत पुजारी अवधी नवाबों का जमाना था, लखनऊ से कोई 80 किलोमीटर दूर फ़ैजाबाद में एक प्रेम कहानी जन्मी। पेशे से वकील, युवा असगर हुसैन को मुश्तरी से इश्क हो गया। हुसैन साहब पहले से शादी शुदा थे पर इश्क का जादू ऐसा चढ़ा कि उन्हों ने मुश्तरी को अपनी दूसरी बेगम का दर्जा दे दिया। लेकिन हर प्रेम कहानी का अंत सुखद नहीं होता, दूसरे की आहों पर परवान चढ़े इश्क का अंत तो बुरा होना ही था। मुशतरी के दो बेटियों के मां बनते बनते हुसैन साहब के सर से इश्क का भूत उतर गया और उन्हों ने न सिर्फ़ मुश्तरी से सब रिश्ते तोड़ लिए बल...

चलो, एक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों

मशहूर पार्श्व गायक महेन्द्र कपूर को अनिता कुमार की श्रद्धाँजलि दोस्तो, जन्म- ९ जनवरी १९३४ मूल- अमृतसर, पंजाब मृत्यु- २७ सितम्बर, २००८ अभी-अभी खबर आयी कि शाम साढ़े सात बजे महेंद्र कपूर सदा के लिए रुखसत हो लिए। सुनते ही दिल धक्क से रह गया। अभी कल ही तो हेमंत दा की बरसी थी और वो बहुत याद आये, और आज महेंद्र कपूर चल दिये। कानों में गूंजती उनकी आवाज के साथ साथ अपने बचपन की यादें भी लौट रही हैं। 1950 के दशक में जब महोम्मद रफ़ी, तलत महमूद, मन्ना डे, हेमंत दा, मुकेश और कालांतर में किशोर दा की तूती बोलती थी ऐसे में भी महेंद्र कपूर साहब ने अपना एक अलग मुकाम बना लिया था। एक ऐसी आवाज जो बरबस अपनी ओर खींच लेती थी। यूं तो उन्होंने उस जमाने के सभी सफ़ल नायकों को अपनी आवाज से नवाजा लेकिन मनोज कुमार भारत कुमार न होते अगर महेंद्र कपूर जी की आवाज ने उनका साथ न दिया होता। महेंद्र कपूर जी का नाम आते ही जहन में 'पूरब और पश्चिम' के गाने गूंजते लगते हैं "है प्रीत की रीत जहां की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूँ, भारत का रहने वाला हूँ भारत की बात सुनाता हूँ" आज भी इस गीत को सुनते-सुनते कौन भार...

बेकरार कर के हमें यूँ न जाइए, आप को हमारी कसम लौट आइए

हेमंत कुमार की 19वीं बरसी पर अनिता कुमार की ख़ास पेशकश आज 26 सितम्बर, हेमंत दा की 19वीं पुण्यतिथि। बचपन की यादों के झरोंखों से उनकी सुरीली मदमाती आवाज जहन में आ-आ कर दस्तक दे रही है। पचासवें दशक के किस बच्चे ने 'गंगा-जमुना' फ़िल्म का उनका गाया ये गीत कभी न कभी न गाया होगा! "इंसाफ़ की डगर पे बच्चों दिखाओ चल के, ये देश है तुम्हारा"। हेमंत कुमार हेमंत कुमार मुखोपाध्य जिन्हें हम हेमंत दा के नाम से जानते हैं, 16 जून 1920 को वाराणसी के साधारण से परिवार में जन्में लेकिन बचपन में ही बंगाल में स्थानातरित हो लिए। उनके बड़े भाई कहानीकार थे, माता पिता ने सपना देखा कि कम से कम हेमंत इंजीनियर बनेगें। लेकिन नियति ने तो उनकी तकदीर में कुछ और ही लिखा था। औजारों की टंकार उनके कवि हृदय को कहां बाँध पाती, कॉलेज में आते न आते वो समझ गये थे कि संगीत ही उनकी नियति है और महज तेरह वर्ष की आयु में 1933 में ऑल इंडिया रेडियो के लिए अपना पहला गीत गा कर उन्होंने गीतों की दुनिया में अपना पहला कदम रखा और पहला फ़िल्मी गीत गाया एक बंगाली फ़िल्म 'निमयी संयास' के लिए। 1943 में आये बंग अकाल ने ...

पॉडकास्ट कवि सम्मेलन का आमंत्रण अंक

दोस्तो, जैसाकि हमने वादा किया था कि महीने के अंतिम रविवार को पॉडकास्ट सम्मेलन का प्रसारण करेंगे। इंटरनेट की गति हर एक प्रयोक्ता के पास अलग-अलग है, इसलिए हम एक समान गुणवत्ता नहीं तो रख पाये हैं, मगर फिर भी एक सम्मिलित प्रयास किया है। आशा है आप सभी को पसंद आयेगा। नीचे के प्लेयर से सुनें। प्रतिभागी कवि रंजना भाटिया, दिव्य प्रकाश दुबे, मनुज मेहता, नरेश राणा, शोभा महेन्द्रू, शिवानी सिंह, अनिता कुमार, अभिषेक पाटनी संचालक- हरिहर झा उप-संचालक- शैलेश भारतवासी हमें हरिहर झा, ब्रह्मनाथ त्रिपाठी अंजान और पीयूष पण्डया की भी रिकॉर्डिंग प्राप्त हुई थी, लेकिन उन्हें आसानी से सुन पाना सम्भव नहीं था। इसलिए हम उनका इस्तेमाल नहीं कर सके। यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल तीन अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें) VBR MP3 64Kbps MP3 Ogg Vorbis हम सभी कवियों से यह गुज़ारिश करते हैं कि अपनी आवाज़ में अपनी कविता/कविताएँ रिकॉर्ड करके podcast.hindyugm@gmail.com पर भेजें। आपकी ऑनलाइन न रहने की स्थिति में भी हम आपकी आवाज़ का समु...