गज-तंत्र वाद्यों में वर्तमान भारतीय वाद्य सारंगी, सर्वाधिक प्राचीन है। शास्त्रीय मंचों पर प्रचलित सारंगी, विविध रूपों और विविध नामों से लोक संगीत से भी जुड़ी है। प्राचीन ग्रन्थों में यह उल्लेख मिलता है कि लंका के राजा रावण का यह सर्वप्रिय वाद्य था। ऐसी मान्यता है कि रावण ने ही इस वाद्य का आविष्कार किया था। इसी कारण इसका एक प्राचीन नाम ‘रावण हत्था’ का उल्लेख भी मिलता है। आज के अंक में हम सारंगी और इस वाद्य के अप्रतिम वादक पण्डित रामनारायण के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा करेंगे।
सुर संगम- 49 : पण्डित रामनारायन की संगीत-साधना
‘सुर संगम’ के ४९वें अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, समस्त संगीत-प्रेमियों का ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज २५ दिसम्बर है और आज का दिन कई कारणों से विशेष महत्त्वपूर्ण है। भारतीय संगीत जगत के लिए आज का दिन इसलिए उल्लेखनीय है कि आज के दिन ही वर्ष १९२७ में उदयपुर, राजस्थान के एक सांगीतिक परिवार में एक ऐसे प्रतिभावान बालक का जन्म हुआ, जिसे आज हम सब विख्यात सारंगी वादक पण्डित रामनारायण के रूप में जानते हैं। भारतीय संगीत जगत में इस महान संगीतज्ञ का योगदान कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। आज के अंक में हम उनके इस योगदान पर चर्चा करेंगे।
सारंगी एक ऐसा वाद्य है जो मानव कण्ठ के सर्वाधिक निकट है। एक कुशल सारंगी वादक गले की शत-प्रतिशत विशेषताओं को अपने वाद्य पर बजा सकता है। सम्भवतः इसीलिए इस वाद्य को सौ-रंगी अर्थात सारंगी कहा गया। फरवरी, १९९४ में मुझे पण्डित रामनारायण जी से एक लम्बे साक्षात्कार का सुअवसर मिला था। उस बातचीत के कुछ अंश हम आपके लिए इस अंक में भी प्रस्तुत करेंगे, किन्तु उससे पहले आपको सुनवाते हैं, पण्डित रामनारायण का बजाया उनका सर्वप्रिय राग मारवा में मनमोहक आलाप।
सारंगी वादन : पण्डित रामनारायण : राग – मारवा : आलाप
पण्डित राम नारायण के प्रपितामह दानजी वियावत उदयपुर महाराणा के दरबारी गायक थे। पितामह हरिलाल वियावत भी उच्चकोटि के गायक थे, जबकि पिता नाथूजी वियावत ने दिलरुबा वाद्य को अपनाया। छः वर्ष की आयु में रामनारायण जी के हाथ एक सारंगी लगी और इसी वाद्य पर पिता की देख-रेख में अभ्यास आरम्भ हो गया। १० वर्ष की आयु में उन्होने उस्ताद अल्लाबंदे और उस्ताद जाकिरुद्दीन डागर से ध्रुवपद की शिक्षा ग्रहण की। इसके साथ ही जयपुर के सुविख्यात सारंगी वादक उस्ताद महबूब खाँ से भी मार्गदर्शन प्राप्त किया। १९४४ में रामनारायण जी की नियुक्ति सारंगी संगतिकार के रूप रेडियो लाहौर में हुई, जहाँ तत्कालीन जाने-माने गायक-वादकों के साथ उन्होने सारंगी की संगति कर कम आयु में ही ख्याति अर्जित की। १९४७ में देश विभाजन के समय उन्हें लाहौर से दिल्ली केन्द्र पर स्थानान्तरित किया गया। अब तक रामनारायण के सारंगी वादन में इतनी परिपक्वता आ गई कि तत्कालीन सारंगी वादकों में उनकी एक अलग शैली के रूप में पहचानी जाने लगी। इसके बावजूद उनका मन इस बात से हमेशा खिन्न रहा करता था कि संगीत के मंच पर संगतिकारों को वह दर्जा नहीं मिलता था, जिसके वो अधिकारी थे। मुख्य गायक कलाकारों के साथ, इसी बात पर प्रायः नोक-झोंक हो जाती थी। उनका मानना था कि संगतिकारों को भी प्रदर्शन के दौरान अपनी बात कहने का अवसर मिलना चाहिए। आइए यहाँ थोड़ा रुक कर पण्डित रामनारायण जी का सारंगी पर बजाया राग दरबारी में एक मनमोहक गत।
सारंगी वादन : पण्डित रामनारायण : राग – दरबारी : गत
सारंगी वादन की अपनी एक अलग शैली विकसित करते हुए पण्डित रामनारायण का मन स्वतंत्र सारंगी वादन के लिए बेचैन होने लगा। रेडियो की नौकरी में रहते हुए उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो पा रही थी, अतः १९४९ में उन्होने रेडियो की नौकरी छोड़ कर दिल्ली से मुम्बई (तत्कालीन बम्बई) पहुँच गये। मुम्बई में स्वयं को स्थापित करने की लालसा ने उन्हें फिल्म-जगत में पहुँचा दिया। उस दौर के फिल्म संगीतकारों ने पण्डित रामनारायण को सर-आँखों पर बिठाया। सारंगी के सुरों से सजी उनकी कुछ प्रमुख फिल्में हैं- हमदर्द (१९५३), अदालत (१९५८), मुगल-ए-आजम (१९६०), गंगा जमुना (१९६१), कश्मीर की कली (१९६४), मिलन और नूरजहाँ (१९६७)। संगीतकार ओ.पी. नैयर के तो वे सर्वप्रिय रहे। हमदर्द, अदालत, गंगा जमुना और मिलन फिल्म में तो उन्होने कई गीतों की धुनें भी बनाई। यहाँ हम आपको उनकी फिल्मों के दो गीत सुनवाएँगे। पहला गीत १९५३ की फिल्म ‘हमदर्द’ से लिया गया है, इस गीत के दो अन्तरे हैं। पहला अन्तरा राग जोगिया और दूसरा राग बहार के सुरों में निबद्ध है। दूसरा गीत हमने ओ.पी. नैयर की संगीतबद्ध फिल्म ‘कश्मीर की कली’ से लिया है। इस गीत के आरम्भिक संगीत और अन्तराल संगीत में रामनारायण जी की सारंगी प्रमुख रूप से बजी है। आइए सुनते हैं, दोनों गीत-
फिल्म – हमदर्द : ‘पी बिन सब सूना...’ : संगीत – अनिल विश्वास
फिल्म – कश्मीर की कली : ‘दीवाना हुआ बादल..’ : संगीत – ओ.पी. नैयर
१९५६ में पण्डित रामनारायण ने मुम्बई के एक संगीत समारोह में एकल सारंगी वादन किया। संगीत-प्रेमियों के लिए यह एक दुर्लभ क्षण था। किसी शास्त्रीय मंच पर पहली बार सदियों से उपेक्षित सारंगी को सम्मान प्राप्त हुआ था। संगीत के सुनहरे पृष्ठों पर पण्डित रामनारायन का नाम सारंगी को प्रतिष्ठित करने में दर्ज़ हो चुका था।
कृष्णमोहन मिश्र
सुर संगम ५० की पहेली :
‘सुर संगम’ का यह ४९वाँ अंक था। आपको मालूम ही है कि हमने अपने इस स्तम्भ का लक्ष्य ५० अंकों का निर्धारित किया था। हमारा अगला अंक स्वर्ण जयन्ती अंक होगा। इस विशेष अंक के लिए हम आपसे पहेली का कोई प्रश्न नहीं पुछेंगे। अगले विशेष अंक में ही हम अब तक की पहेली के विजेता का नाम की घोषणा करेंगे।
झरोखा अगले अंक काहमारा अगला विशेष अंक पाठकों की प्रतिक्रियाओं पर आधारित होगा। इसके साथ-साथ पिछले अंकों में अपने प्रिय पाठकों द्वारा प्रस्तुत शंकाओं का समाधान भी करेंगे। अब समय आ चला है आज के 'सुर-संगम' के अंक को यहीं पर विराम देने का। आशा है आपको यह प्रस्तुति पसन्द आई होगी। हमें बताइये कि किस प्रकार हम इस स्तम्भ को और रोचक बना सकते हैं! आप अपने विचार व सुझाव हमें लिख भेजिए admin@radioplaybackindia.com के ई-मेल पते पर। अगले रविवार को प्रातः ९-१५ बजे हम आपसे http://radioplaybackindia.com/ पर फिर मिलेंगे।
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