Skip to main content

Posts

Showing posts with the label shabdon ke chaak par

शब्दों के चाक पर - अंक 22

जब तुम्हारे दिल में मेरे लिए प्यार उमड़ आये, और वो तुम्हारी आँखो से छलक सा जाए मुझसे अपनी दिल के बातें सुनने को यह दिल तुम्हारा मचल सा जाए तब एक आवाज़ दे कर मुझको बुलाना दिया है जो प्यार का वचन सजन, तुम अपनी इस प्रीत की रीत को निभाना ~ रंजु भाटिया दोस्तों, कविता पाठ के इस साप्ताहिक कार्यक्रम की आज की कड़ी में हमारा विषय है - "प्रीत की रीत निभाये" एवं "उस पार और एक आवाज़ "। हमने शुरूआत प्यार से की और सफर खत्म पर किया यादों पर। दोनों विषयों पर हमें एक से बढकर कविताएँ पढने को मिलीं और हमने पूरी कोशिश की कि उनमें से कुछ कविताएँ आपको सुनवा दें। उम्मीद करते हैं कि हम इस प्रयास में सफल हुए होंगे। कविताएं पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है शेफाली गुप्ता ओर अनुराग शर्मा ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ... (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)  या फिर यहाँ से डाउनलोड करें (राईट क्लिक करके 'सेव ऐज़ चुनें') &

शब्दों के चाक पर - 21

कुछ मौसम मैंने संभाल रखे हैं मन की बगिया में उतार रखे हैं जो रंगीन तितलियों से उड़ते हैं टिटियाती चिड़ियों के सुरों में मधुर गीत भी बुन के रखे हैं जो दिन भर मंजीरों से बजते हैं रंगीन रिश्तो के आइनों के भी रंग किर्चों से निकाल रखें हैं बिखरे पंख यादों के पाखी के मन - किताबों में संभाल रखें हैं दोस्तों, आज की कड़ी में हमारा विषय है - " कुछ बचा लो " और " बेसूझ साया "। हमने शुरूआत यादों से की और सफर खत्म प्यार पर किया। इस तरह देखा और तौला जाए तो सफर का नाम कुछ और नहीं "ज़िंदगी" निकलता है। कविताएं पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है शेफाली गुप्ता ओर अनुराग शर्मा ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का, व सहयोग है वन्दना गुप्ता का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ... (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)  या फिर यहाँ से डाउनलोड करें (राईट क्लिक करके 'सेव ऐज़ चुनें') "शब्दों के चाक पर" हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती

शब्दों के चाक पर - २०

" ज्योति कलश छलके " साल की सबसे अंधेरी रात में दीप इक जलता हुआ बस हाथ में लेकर चलें करने धरा ज्योतिर्मयी। दीपावली का पर्व प्रकाश का उत्सव है। ज्ञान का प्रकाश, उपहार, उल्लास, और प्रेम के इस पावन पर्व पर "शब्दों के चाक पर" की एक ज्योतिर्मयी प्रस्तुति हमारे श्रोताओं की सेवा में समर्पित है। नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल, उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले, लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी, निशा की गली में तिमिर राह भूले, खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग, ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। दोस्तों, आज की कड़ी में हमारा विषय है - " ज्योति का पर्व "। जीवन में प्रकाश और तमस की निरंतर चल रही कशमकश की कविताएं पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है अभिषेक ओझा ओर अनुराग शर्मा ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का, व सहयोग है वन्दना गुप्ता का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ... (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)

शब्दों के चाक पर - १९

" दुर्गा की अराधना " और " नदी हूँ, फिर भी प्यासी " पर्वतों से निकली या धरा से फूटी कभी गंगा बन शिव जटा से छूटी मैं जल की धारा ले के बह निकली निस्वार्थ निशचल निर्विकार निर्मल कभी मौन कभी चंचल कहीं बंजर सींचे कहीं पाप धोये सीने पे अपने जाने कितने बांध ढोये दोस्तों, आज की कड़ी में हमारे दो विषय हैं - " दुर्गा की अराधना " और " नदी हूँ, फिर भी प्यासी " है। जीवन के इन दो अलग-अलग पहलुओं की कहानियाँ पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है अभिषेक ओझा ओर  शेफाली गुप्ता  ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का, व सहयोग है वन्दना गुप्ता का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ... (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)  या फिर यहाँ से डाउनलोड करें (राईट क्लिक करके 'सेव ऐज़ चुनें') "शब्दों के चाक पर" हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और

शब्दों के चाक पर - 18

" आओ घोटाला करें " और " आवाज़ दे, कहाँ है " काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में उतरा है रामराज विधायक निवास में पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में जनता के पास एक ही चारा है बगावत यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में दोस्तों, आज की कड़ी में हमारे दो विषय हैं - " आओ घोटाला करें " और " आवाज़ दे, कहाँ है " है। जीवन के इन दो अलग-अलग पहलुओंकी कहानियाँ पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है अभिषेक ओझा ओर  अनुराग शर्मा  ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का, व सहयोग है वन्दना गुप्ता का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ... (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें) या फिर यहाँ से डाउनलोड करें "शब्दों के चाक पर" हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते हो

शब्दों के चाक पर - 17

"तुम कहाँ हो " और " मेरे सपनों का ताजमहल " दीप की लौ अभी ऊँची, अभी नीची पवन की घन वेदना, रुक आँख मीची अन्धकार अवंध, हो हल्का कि गहरा मुक्त कारागार में हूं, तुम कहाँ हो मैं मगन मझधार में हूं, तुम कहाँ हो ! दोस्तों, आज की कड़ी में हमारे दो विषय हैं - " तुम कहाँ हो " और " मेरे सपनों का ताजमहल " है। जीवन के इन दो अलग-अलग पहलुओंकी कहानियाँ पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है अभिषेक ओझा ओर शैफाली गुप्ता ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का, व सहयोग है वन्दना गुप्ता का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ... (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें) या फिर यहाँ से डाउनलोड करें "शब्दों के चाक पर" हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने  के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता

"मेंहदी लगे हाथ" और "उस बीज की तलाश है"

शब्दों के चाक पर - 16 पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड, झरती रस की धारा अखण्ड, मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार। जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं। दोस्तों, आज की कड़ी में हमारे दो विषय हैं - " मेंहदी लगे हाथ " और " उस बीज की तलाश है "। जीवन के इन दो अलग-अलग पहलुओंकी कहानियाँ पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र: सरस्वती माथुर, शशि पुरवार, राजेश कुमारी, गुंजन श्रीवास्तव, अमित आनंद पांडे, पूनम जैन कासलीवाल, रिया लव, हर्षवर्धन वर्मा,मुकेश कुमार सिन्हा एवम् कई अन्य कविगण। पॉडकास्ट को स्वर दिया है अभिषेक ओझा ओर शैफाली गुप्ता ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का, व सहयोग है वन्दना गुप्ता का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ... (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)   या फिर  यहाँ   से डाउनलोड करें  "शब्दों के चाक पर" हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने  के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और

शब्दों के चाक पर -जीवन चक्र के अभिमन्यु

जीवन चक्र के अभिमन्यु  दोस्तों, ये जीवन भी तो किसी रण से कम नहीं है. यहाँ कोई अर्जुन है तो कोई दुशासन, कोई धोखे से छला गया करण है तो कोई चक्रव्यूह में फंसा अकेला लड़ता अभिमन्यु. जीवन चक्र के इसी महाभारत को दिन प्रतिदिन भोग रहे अभिमन्युओं की कहानियाँ बयां कर रहे हैं आज हमारे कवि मित्र. पोडकास्ट को आवाज़ दी है अभिषेक ओझा ओर शैफाली गुप्ता ने. स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने ओर संयोजन सहयोग है वंदना गुप्ता, अनुराग शर्मा ओर सजीव सारथी का, तो सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये. (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)   या फिर  यहाँ   से डाउनलोड करें  "शब्दों के चाक पर" हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने  के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता घुमड़ता मेघ समूह जो जब आवाज़ में ढलकर बरसता है तो ह्रदय की सूक्ष्म इन्द्रियों को ठडक से भर जाता है. तो दोस्तों, इससे पहले कि  हम पिछले हफ

शब्दों के चाक पर - अंक 14- कहानी माटी की...

माटी सभी की कहानी कहेगी अगर मिट्टी अपनी कहानी कहने बैठे तो इसकी कहानी में इंसानों की कई पीढियाँ निकल जाएँगी। अनगिनत इंसानों की अनगिनत जीवन-गाथएँ सिमट जाएँगी इसकी एक कहानी में ... और यकीन मानिए मिट्टी हर एक कहानी कहेगी. कुछ ऐसे ही भाव सजा कर लाये हैं हमारे कवि मित्र आज अपने शब्दों में. जिसे आवाज़ दी है अभिषेक ओझा ओर शैफाली गुप्ता ने. स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने ओर संयोजन सहयोग है वंदना गुप्ता, अनुराग शर्मा ओर सजीव सारथी का, तो सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये. (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)   या फिर  यहाँ   से डाउनलोड करें  "शब्दों के चाक पर" हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने  के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता घुमड़ता मेघ समूह जो जब आवाज़ में ढलकर बरसता है तो ह्रदय की सूक्ष्म इन्द्रियों को ठडक से भर जाता है. तो दोस्तों, इससे पहले कि  हम पिछले हफ्ते की