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झुकी आई रे बदरिया सवान की...जब पियानो के सुर छिड़े तो बने ढेरों फ़िल्मी गीत....

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 591/2010/291 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक और तरो-ताज़ा सप्ताह के साथ हम उपस्थित हैं और आप सभी का स्वागत करते हैं इस महफ़िल में। साज़ों की अगर बात छेड़ें तो दुनिया भर के सभी देशों को मिलाकार फ़ेहरिस्त शायद हज़ारों में पहुँच जाए। लेकिन एक साज़ जिसे साज़ों का राजा कहलाने का गौरव प्राप्त है, वह है पियानो। और यह इसलिए साज़ों का राजा है क्योंकि पियानो ऒर्केस्ट्रा के किसी साज़ का सम्पूर्ण स्पेक्ट्रम कवर कर लेता है; डबल बसून के सब से नीचे के नोट से लेकर पिकोलो के सब से ऊँचे नोट तक। पियानो की मेलडी उत्पन्न करने की क्षमता, उसकी विस्तृत डायनामिक रेंज, तथा आकार में भी सब से बड़ा होना पियानो को साज़ों में सब से उपर का स्थान देता है। सब से ज़्यादा वर्सेटाइल और सब से मज़ेदार है यह साज़। जहाँ तक हिंदी फ़िल्म संगीतकारों की बात है, तो लगभग सभी दिग्गज संगीतकारों ने समय समय पर कहानी, सिचुएशन और मूड के मुताबिक़ फ़िल्मी रचनाओं में पियानो का इस्तेमाल किया। ज़्यादातर गीतों में पियानो के छोटे मोटे पीसेस सुनने को मिले, लेकिन बहुत से गानें ऐसे भी थे जिनमें मुख्य साज़ ही पियानो