महफ़िल-ए-ग़ज़ल #७३ ला जिम था कि देखो मेरा रस्ता कोई दिन और, तनहा गये क्यों अब रहो तनहा कोई दिन और। ग़ालिब की ज़िंदगी बड़ी हीं तकलीफ़ में गुजरी और इस तकलीफ़ का कारण महज़ आर्थिक नहीं था। हाँ आर्थिक भी कई कारण थे, जिनका ज़िक्र हम आगे की कड़ियों में करेंगे। आज हम उस दु:ख की बात करने जा रहे हैं, जो किसी भी पिता की कमर तोड़ने के लिए काफ़ी होता है। ग़ालिब पर चिट्ठा(ब्लाग) चला रहे अनिल कान्त इस बारे में लिखते हैं: ग़ालिब के सात बच्चे हुए पर कोई भी पंद्रह महीने से ज्यादा जीवित न रहा. पत्नी से भी वह हार्दिक सौख्य न मिला जो जीवन में मिलने वाली तमाम परेशानियों में एक बल प्रदान करे. इनकी पत्नी उमराव बेगम नवाब इलाहीबख्शखाँ 'मारुफ़’ की छोटी बेटी थीं. ग़ालिब की पत्नी की बड़ी बहन को दो बच्चे हुए जिनमें से एक ज़ैनुल आब्दीनखाँ को ग़ालिब ने गोद ले लिया था. वह बहुत अच्छे कवि थे और 'आरिफ' उपनाम रखते थे. ग़ालिब उन्हें बहुत प्यार करते थे और उन्हें 'राहते-रूहे-नातवाँ' (दुर्बल आत्मा की शांति) कहते थे. दुर्भाग्य से वह भी भरी जवानी(३६ साल की उम्र) में मर गये. ग़ालिब के दिल पर ऐसी चोट लगी कि ...