इस दुनिया का एक बहुत बड़ा सत्य यह है कि जो शुरु होता है, वह एक न एक दिन ख़त्म भी होता है। यह दुनिया भी शायद कभी ख़त्म हो जाए, क्या पता! अंग्रेज़ी में एक कहावत भी है कि "the only thing that is constant is change" (बदलाव ही एकमात्र ऐसी चीज़ है जो स्थायी है)। कैसा घोर विरोधाभास है इस कहावत में ध्यान दीजिए ज़रा। तो दोस्तों, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का सफ़र भी अब ख़्तम हुआ चाहता है। जी हाँ, पिछले करीब तीन सालों से लगातार, बिना किसी रुकावट के चलने के बाद हम यह सुरीला कारवाँ अपनी मंज़िल पर आ पहुँचा है।
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 820/2011/260
सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! दोस्तों, इस दुनिया का एक बहुत बड़ा सत्य यह है कि जो शुरु होता है, वह एक न एक दिन ख़त्म भी होता है। यह दुनिया भी शायद कभी ख़त्म हो जाए, क्या पता! अंग्रेज़ी में एक कहावत भी है कि "the only thing that is constant is change" (बदलाव ही एकमात्र ऐसी चीज़ है जो स्थायी है)। कैसा घोर विरोधाभास है इस कहावत में ध्यान दीजिए ज़रा। तो दोस्तों, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का सफ़र भी अब ख़्तम हुआ चाहता है। जी हाँ, पिछले करीब तीन सालों से लगातार, बिना किसी रुकावट के चलने के बाद हम यह सुरीला कारवाँ अपनी मंज़िल पर आ पहुँचा है। आज ८२०-वीं कड़ी के साथ ही हम इस स्तंभ का समापन घोषित कर रहे हैं। मेरे साथ-साथ सजीव सारथी का भी इस स्तंभ में उल्लेखनीय योगदान रहा है। तकनीकी पक्ष और पहेली प्रतियोगिता का दैनिक रूप से संचालन उन्होंने ही किया। उनके अलावा कृष्णमोहन मिश्र जी, अमित तिवारी जी, पराग सांकला जी का भी असंख्य धन्यवाद जिन्होंने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के आलेख में अपना योगदान दिया। और सबसे ज़्यादा आभारी हम हैं अपने उन तमाम पाठकों के जिन्होंने इस स्तंभ को सफल बनाया, इतना ज़्यादा लोकप्रिय बनाया कि इस स्तंभ का उल्लेख कई पत्र-पत्रिकाओं में और इंटरनेट के अन्य ब्लॉगों में हुआ। आज भले इस स्तंभ को समाप्त करते हुए मुझे थोड़ा सा दुख हो रहा है, पर ख़ुशी इस बात की ज़रूर है कि जो ज़िम्मा सजीव जी नें मुझ पर सौंपा था, जो कॉनसेप्ट उन्होंने सोचा था, उसे मैं कार्यांवित कर सका, उसे हक़ीक़त बना पाया।
दोस्तों, इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है लघु शृंखला 'आओ झूमें गाएं', जिसके हम कुछ जोश, उल्लास, ख़ुशी भरे गीत सुन रहे हैं जिनमें कहीं न कहीं कोई जीवन दर्शन ज़रूर छुपा हुआ है। आज इस स्तम्भ की अंतिम कड़ी के लिए जब मैं किसी विदाई या 'गुड बाई' वाले गीत को याद करने की कोशिश की तो सभी के सभी दर्दीले गीत ही ज़हन में आए। तभी अचानक याद आया कि अनिल बिस्वास के संगीत में इण्डो-रशियन को-प्रोडक्शन वाली फ़िल्म 'परदेसी' में एक गीत था "फिर मिलेंगे जाने वाले यार दसविदानिया"। गीत लिखा अली सरदार जाफ़री और प्रेम धवन नें और गाया मन्ना डे और साथियों नें। अनिल बिस्वास पर केन्द्रित विविध भारती की शृंखला 'रसिकेषु' की अन्तिम कड़ी में इस गीत को बजाते हुए अनिल दा नें कहा था, "आज हम विदा ले रहे हैं, लेकिन हम फिर मिल बैठेंगे अगर समय इजाज़त दे तो। मुझे एक बात कहनी है, रशिया में "अलविदा, फिर मिलेंगे" के लिए एक रशियन शब्द है "दसविदानिया", मैंने इसको परदेसी में इस्तमाल किया था, इसका मतलब ही है कि "फिर मिलेंगे जाने वाले यार दसविदानिया", यहाँ कहेंगे "फिर मिलेंगे सुनने वालों यार दसविदानिया"।" और दोस्तों, मैं भी यही कहता हूँ कि "फिर मिलेंगे श्रोता पाठकों यार दसविदानिया"। सच ही तो है, यह स्तम्भ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' यहाँ समाप्त हो रहा है, पर नए साल में मैं दो नए साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से आपसे मिलता रहूंगा और फ़िल्म-संगीत का यह कारवाँ यूंही चलता रहेगा। तो इसी वादे के साथ कि नए साल में नए अंदाज़ में फिर आपसे भेंट होगी, तब तक के लिए 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की पूरी टीम की तरफ़ से आप सभी को असंख्य धन्यवाद देते हुए मैं इस स्तम्भ का समापन घोषित करता हूँ। ३१ दिसंबर को 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेषांक' में फिर मुलाक़ात होगी, नमस्कार!
मित्रों, ये आपके इस प्रिय कार्यक्रम "ओल्ड इस गोल्ड" की अंतिम शृंखला है, ८०० से भी अधिक एपिसोडों तक चले इस यादगार सफर में हमें आप सबका जी भर प्यार मिला, सच कहें तो आपका ये प्यार ही हमारी प्रेरणा बना और हम इस मुश्किल काम को इस अंजाम तक पहुंचा पाये. बहुत सी ऐसी बातें हैं जिन्हें हम सदा अपनी यादों में सहेज कर रखेंगें. पहले एपिसोड्स से लेकर अब तक कई साथी हमसे जुड़े कुछ बिछड़े भी पर कारवाँ कभी नहीं रुका, पहेलियाँ भी चली और कभी ऐसा नहीं हुआ कि हमें विजेता नहीं मिला हो. इस अंतिम शृंखला में हम अपने सभी नए पुराने साथियों से ये गुजारिश करेंगें कि वो भी इस श्रृखला से जुडी अपनी कुछ यादें हम सब के साथ शेयर करें....हमें वास्तव में अच्छा लगेगा, आप सब के लिखे हुए एक एक शब्द हम संभाल संभाल कर रखेंगें, ये वादा है.
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें admin@radioplaybackindia.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें +91-9811036346 (सजीव सारथी) या +91-9878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
सबसे जुड़ती गई.पाबला भैया जैसा शख्स तो इसी ओल्ड इज गोल्ड के कारण मिला.एक परिवार सा बनाया उस ने.खेर..........अंत तो होना ही था.अंत जो नयी शुरुआत का परिचायक है.पर....मन भारी है.कितने अनमोल मधुर ,भूले हुए गीत मिले मुझे यहाँ.
अरे! फिर मिल रहे हैं ना एक नए प्रोग्राम के साथ हा हा हा
आप सबकी मेहनत लगन को प्रणाम.
नायक का भारत छोड़कर जाना और पीछे आती इस गाने की ध्वनि मेरे कानों मे गूंजती है अब भी.
बालमन तब रुसी नायक के वापस लौट आने के लिए दुआ मांगता रहा...............वो नही आया........उसके एक बार पलटकर देखने की ख्वाहिश करता रहा.
मुझे कहाँ से कहाँ ले जाने की ताकत रखता है यह ........आपकी पोस्ट .
जानते हो?नही जानोगे कभी.बचपन के आंगन से जवानी के सपने और......... खट्टी मीठी यादों तक.हा हा हा