Skip to main content

Posts

Showing posts with the label thaath

५ थाट और राग असवारी - एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट २०  नमस्कार दोस्तों, आज की महफ़िल में आपकी होस्ट संज्ञा टंडन लेकर आयीं हैं एक बार फिर जानकारी थाठों की. आज जिक्र है थाट मारवा, काफी, तोड़ी, भैरवी, और असवारी की. साथ ही चर्चा है राग असवारी पर आधारित फ़िल्मी गीतों की, तो आनंद लीजिए इस अनूठे ब्रोडकास्ट का.  प्रस्तुति - संज्ञा टंडन  स्क्रिप्ट - कृष्णमोहन मिश्र 

राग भैरव और थाठों की जानकारी संज्ञा टंडन के साथ

   प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट - १९ प्रस्तुति - संज्ञा टंडन स्क्रिप्ट - कृष्णमोहन मिश्र 

चली गोरी पी के मिलन को चली...राग भैरवी में पी को ढूंढती हेमन्त दा की आवाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 750/2011/190 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड’ पर चल रही श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की समापन कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला के आरम्भ में हमने आपसे स्पष्ट किया था कि शास्त्रीय संगीत से सम्बन्धित इस प्रकार की लघु श्रृंखलाओं का उद्देश्य पाठकों को कलाकार बनाना नहीं है, बल्कि संगीत का अच्छा श्रोता बनाना है। प्रायः लोग कहते मिल जाते हैं कि शास्त्रीय संगीत बहुत जटिल है और सिर के ऊपर से गुज़र जाता है। परन्तु यह जटिलता और क्लिष्टता तो प्रस्तुतकर्त्ता यानी कलाकार के लिए है, साधारण श्रोता के लिए नहीं। संगीत की थोड़ी प्रारम्भिक जानकारी पाकर भी आप अच्छे श्रोता बन सकते हैं। ऐसी श्रृंखलाएँ प्रस्तुत करने के पीछे हमारा यही उद्देश्य है। श्रृंखला की कल की कड़ी तक हमने संगीत के नौ थाटों और उनके आश्रय रागों का परिचय प्राप्त किया। आज हम ‘भैरवी’ थाट और राग के बारे में चर्चा करेंगे। परन्तु इससे पहले आइए, थाट और राग के अन्तर को समझने का प्रयास किया जाए। दरअसल थाट केवल ढाँचा है और राग एक व्यक्तित्व है। थाट-निर्माण के लिए सप्तक के

जागो रे जागो प्रभात आया...मन और जीवन के अंधेरों को प्रकाशित करता एक गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 749/2011/189 रा गदारी संगीत में प्रचलित थाट प्रणाली पर परिचयात्मक श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की नौवीं कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आपका स्वागत करता हूँ। आज बारी है थाट ‘तोड़ी’ से परिचय प्राप्त करने की। श्रृंखला की अभी तक की कड़ियों में हमने उत्तर भारतीय संगीत में प्रचलित थाट प्रणाली को रेखांकित करने का प्रयास किया है। आज की कड़ी में हम दक्षिण भारतीय संगीत में प्रचलित प्राचीन थाट व्यवस्था पर चर्चा करेंगे। दक्षिण भारतीय संगीत पद्यति के विद्वान पण्डित व्यंकटमखी ने थाटों की संख्या निश्चित करने के लिए गणित को आधार बनाया और पूर्णरूप से गणना कर थाटों की कुल संख्या ७२ निर्धारित की। इनमें से उन्होने १९ व्यावहारिक थाटों का चयन किया। व्यंकटमखी की थाट संख्या को दक्षिण भारतीय संगीतज्ञों ने तो अपनाया, किन्तु उत्तर भारत के संगीत पर इसका विशेष प्रभाव नहीं हुआ। उत्तर भारतीय संगीत के विद्वान पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे ने रागों के वर्गीकरण के लिए १० थाट प्रणाली को अपनाया और रागों का वर्गीकरण किया, जो आज तक प्रचलित है। थाट का उद्देश्य मात्र राग के शुद्ध और

मुझे गले से लगा लो....उदासी के एहसास को प्यार का मरहम लगाता एक नग्मा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 748/2011/188 व र्तमान भारतीय संगीत में रागों के वर्गीकरण के लिए ‘थाट’ प्रणाली का प्रचलन है। ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ पर जारी वर्तमान श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के अन्तर्गत अब तक हमने सात थाटों का परिचय प्राप्त किया है। आज बारी है, आठवें थाट अर्थात ‘आसावरी’ की। इस थाट का परिचय प्राप्त करने से पहले आइए प्राचीन काल में प्रचलित थाट प्रणाली की कुछ चर्चा करते हैं। सत्रहवीं शताब्दी में थाटों के अन्तर्गत रागों का वर्गीकरण प्रचलन में आ चुका था, जो उस समय के ग्रन्थ ‘संगीत-पारिजात’ और ‘राग-विबोध’ से स्पष्ट है। इसी काल में मेल की परिभाष देते हुए श्रीनिवास ने बताया है कि राग की उत्पत्ति थाट से होती है और थाट के तीन रूप हो सकते हैं- औडव (पाँच स्वर), षाड़व (छह स्वर), और सम्पूर्ण (सात स्वर)। सत्रहवीं शताब्दी के अन्त तक थाटों की संख्या के विषय में विद्वानों में मतभेद भी रहा है। ‘राग-विबोध’ के रचयिता ने थाटों की संख्या २३ वर्णित की है, तो ‘स्वर-मेल कलानिधि’ के प्रणेता २० और ‘चतुर्दंडि-प्रकाशिका’ के लेखक ने १९ थाटों की चर्चा की है। आज हमारी चर्चा का थाट है- ‘आसावरी’। इस थाट के स्

काली घोड़ी द्वारे खड़ी...काली बाईक का जिक्र और थाट काफ़ी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 747/2011/187 ‘ओ ल्ड इज गोल्ड’ पर जारी भारतीय संगीत के आधुनिक काल में प्रचलित थाटों की श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की आज की कड़ी में हम ‘काफी’ थाट का परिचय प्राप्त करेंगे और इस थाट के आश्रय राग ‘काफी’ पर आधारित एक फिल्मी गीत का आनन्द भी लेंगे। परन्तु उससे पहले प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में की गई थाट विषयक चर्चा की कुछ जानकारी आपसे बाँटेंगे। संगीत की परिभाषा में थाट को संस्कृत ग्रन्थों में मेल अर्थात स्वरों का मिलाना या इकट्ठा करना कहते हैं। इन ग्रन्थों में थाट अथवा मेल के विषय में जो व्याख्या की गई है, उसके अनुसार ‘वह स्वर-समूह थाट कहलाता है, जो राग-निर्मिति में सक्षम हो’। पं॰ सोमनाथ अपने ‘राग-विवोध’ के तीसरे अध्याय में मेलों को परिभाषित करते हुए लिखा है- ‘थाट इति भाषायाम’ अर्थात, मेल को भाषा में थाट कहते हैं। ‘राग-विवोध’ आज से लगभग चार सौ वर्ष पूर्व की रचना है। यह ग्रन्थ ‘थाट’ का प्राचीन आधार भी है। आज हम आपसे थाट ‘काफी’ के विषय में कुछ चर्चा करेंगे।काफी थाट के स्वर हैं- सा, रे, ग॒, म, प, ध, नि॒। इस थाट में गान्धार और निषाद कोमल और शेष स्वर शुद्ध प्रयोग कि

पायलिया बांवरी मोरी....सूने महल में नाचती रक्कासा के स्वरों में राग मारवा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 746/2011/186 ‘ओ ल्ड इज़ गोल्ड‘ पर जारी श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के नए सप्ताह में सभी रसिकों का मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार फिर हार्दिक स्वागत करता हूँ। आधुनिक उत्तर भारतीय संगीत में राग-वर्गीकरण के लिए प्रचलित दस थाट प्रणाली पर केन्द्रित इस श्रृंखला में अब तक आप कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव और पूर्वी थाट का परिचय प्राप्त कर चुके हैं। आज की कड़ी में हम ‘मारवा’ थाट पर चर्चा करेंगे। हमारा भारतीय संगीत एक सुदृढ़ और समृद्ध आधार पर विकसित हुआ है। समय-समय पर इसका वैज्ञानिक दृष्टि से मूल्यांकन होता रहा है। यह परिवर्द्धन वर्तमान थाट प्रणाली पर भी लागू है। आधुनिक संगीत में प्राचीन मुर्च्छनाओं के स्थान पर मेल अथवा थाट प्रणाली का उपयोग किया जाता है। सभी छोटे-बड़े अन्तराल, जो रागों के लिए आवश्यक हैं, सप्तक की सीमाओं के अन्तर्गत रखे गए और मुर्च्छना की प्राचीन प्रणाली का परित्याग किया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि यह परिवर्तन चार-पाँच सौ वर्ष पूर्व हुआ। आज ऋषभ, गांधार, मध्यम, धैवत और निषाद स्वरों के प्रत्येक स्वर की एक या दो श्रुतियों को ग्रहण कर नवीन थाट का निर्माण करते

करुणा सुनो श्याम मोरी...जब वाणी जयराम बनी मीरा की आवाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 745/2011/185 आ धुनिक भारतीय संगीत में प्रचलित थाट पद्धति पर केन्द्रित श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की पाँचवीं कड़ी में आपका हार्दिक स्वागत है। इस श्रृंखला में हम पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे द्वारा प्रवर्तित उन दस थाटों की चर्चा कर रहे हैं, जिनके माध्यम से रागों का वर्गीकरण किया जाता है। उत्तर और दक्षिण भारतीय संगीत की दोनों पद्धतियों में संगीत के सात शुद्ध, तीन कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल बारह स्वरों के प्रयोग में समानता है। दक्षिण भारत के ग्रन्थकार पण्डित व्यंकटमखी ने सप्तक में १२ स्वरों को आधार मान कर ७२ थाटों की रचना गणित के सिद्धान्तों पर की थी। भातखण्डे जी ने इन ७२ थाटों में से केवल उतने ही थाट चुन लिये, जिनमें उत्तर भारतीय संगीत के प्रचलित सभी रागों का वर्गीकरण होना सम्भव हो। इस विधि से वर्तमान उत्तर भारतीय संगीत को उन्होने पक्की नींव पर प्रतिस्थापित किया। साथ ही उन सभी विशेषताओं को भी, जिनके आधार पर दक्षिण और उत्तर भारतीय संगीत पद्धति पृथक होती है, उन्होने कायम किया। भातखण्डे जी ने पं॰ व्यंकटमखी के ७२ थाटों में से १० थाट चुन कर प्रचलित सभी रागों

जागो मोहन प्यारे...राग भैरव पर आधारित ये अमर गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 744/2011/184 ‘द स थाट, दस राग और दस गीत’ श्रृंखला की चौथी कड़ी में आपका पुनः स्वागत है। आपको मालूम ही है कि इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत के दस थाटों पर चर्चा कर रहे हैं। पिछले अंकों में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि वर्तमान में प्रचलित थाट पद्यति पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे द्वारा प्रवर्तित है। पं॰ भातखण्डे ने गम्भीर अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि तत्कालीन प्रचलित राग-वर्गीकरण की जितनी भी पद्धतियाँ उत्तर भारतीय संगीत में प्रचार में आईं और उनके काल में अस्तित्व में थीं, उनके रागों का वर्गीकरण आज के रागों पर लागू नहीं हो सकता। गत कुछ शताब्दियों में सभी रागों में परिवर्तन एवं परिवर्द्धन हुए हैं, अतः उनके पुराने और नए स्वरूपों में कोई समानता नहीं है। भातखण्डे जी ने तत्कालीन राग-रागिनी प्रणाली का परित्याग किया और इसके स्थान पर जनक मेल और जन्य प्रणाली को राग वर्गीकरण की अधिक उचित प्रणाली माना। उन्हें इस वर्गीकरण का आधार न केवल दक्षिण में, बल्कि उत्तर में ‘राग-तरंगिणी’, ‘राग-विबोध’, ‘हृदय-कौतुक’, और ‘हृदय-प्रकाश’ जैसे ग्रन्थों में मिला। आज हमारी चर्चा का थाट है

अब क्या मिसाल दूं...वाकई बेमिसाल है ये गीत और इस गीत में रफ़ी साहब की आवाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 743/2011/183 शृं खला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की तीसरी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र सभी संगीत अनुरागियों का स्वागत करता हूँ। इन दिनों हम भारतीय संगीत के दस थाटों पर चर्चा कर रहे हैं। पिछले अंकों में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि संगीत के रागों के वर्गीकरण के लिए थाट प्रणाली को अपनाया गया। थाट और राग के विषय में कभी-कभी यह भ्रम हो जाता है कि पहले थाट और फिर उससे राग की उत्पत्ति हुई होगी। दरअसल ऐसा है नहीं। रागों की संरचना अत्यन्त प्राचीन है। रागों में प्रयुक्त स्वरों के अनुकूल मिलते स्वर जिस थाट के स्वरों में मौजूद होते हैं, राग को उस थाट विशेष से उत्पन्न माना गया है। मध्य काल में राग-रागिनी पद्यति प्रचलन में थी। बाद में इस पद्यति की अवैज्ञानिकता सिद्ध हो जाने पर थाट-वर्गीकरण के अन्तर्गत समस्त रागों को विभाजित किया गया। हमारे शास्त्रकारों ने थाट के नामकरण के लिए ऐसे रागों का चयन किया, जिसके स्वर थाट के स्वरों से मेल खाते हों। थाट के नामकरण के उपरान्त सम्बन्धित राग को उस थाट का आश्रय राग कहा गया। खमाज थाट के स्वर होते हैं- सा, रे ग, म, प ध, नि॒। इस थाट का आश्रय र

मीठी मीठी बातों से बचना ज़रा....एक हिदायत जिसमें है ढेर सारी सीख भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 742/2011/182 भा रतीय संगीत के दस थाटों की परिचय श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की दूसरी कड़ी में आपका स्वागत है। इस श्रृंखला में हम आपको भारतीय संगीत के दस थाटों का परिचय करा रहे हैं। क्रमानुसार सात स्वरों के समूह को थाट कहते हैं। सात शुद्ध स्वरों, चार कोमल और एक तीव्र स्वरों अर्थात कुल बारह स्वरों में से कोई सात स्वर एक थाट में प्रयोग किये जाते हैं। संगीत के प्राचीन ग्रन्थ ‘अभिनव राग मंजरी’ के अनुसार थाट उस स्वर समूह को कहते हैं, जिससे राग उत्पन्न हो सके। नाद से स्वर, स्वर से सप्तक और सप्तक से थाट बनता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्यति में थाट को मेल नाम से सम्बोधित किया जाता है। उत्तर भारतीय संगीत में पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे की दस थाट विभाजन व्यवस्था का प्रचलन है। इस श्रृंखला की पहली कड़ी में हमने आपको ‘कल्याण’ थाट का परिचय दिया था। आज दूसरा थाट है- ‘बिलावल’। इस थाट में प्रयोग होने वाले स्वर हैं- सा, रे, ग, म, प, ध, नि अर्थात सभी शुद्ध स्वर का प्रयोग होता है। पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे कृत ‘क्रमिक पुस्तक मालिका’ (भाग-1) के अनुसार ‘बिलावल’ थाट का आश्

नवकल्पना नव रूप से...हम कर रहे हैं एक नई शृंखला का आरंभ शम्भू सेन के इस गीत से

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 741/2011/181 'ओ ल्ड इज गोल्ड’ के समस्त संगीत-प्रेमी पाठकों-श्रोताओं का एक बार पुनः मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक नई श्रृंखला में हार्दिक स्वागत करता हूँ। दोस्तों, अपने देश में संगीत की हजारों वर्ष पुरानी समृद्ध परम्परा है। आज नई पीढ़ी के सामने संगीत के अनेक विकल्प हैं। इस पीढ़ी ने नए विकल्पों को सहर्ष अपनाया है। नवीन विकल्पों को समझने का प्रयास करना अच्छी बात है, परन्तु प्राचीन समृद्ध संगीत परम्परा की उपेक्षा उचित नहीं है। आपने ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ पर परम्परागत भारतीय संगीत पर आधारित कुछ श्रृंखलाओं का आनन्द लिया है और इन्हें सराहा भी है। ऐसी श्रृंखलाओं को प्रस्तुत करने का हमारा उद्येश्य आपको संगीत का विद्वान बनाना कदापि नहीं है। हमारी अपेक्षा है कि आप संगीत के एक अच्छे श्रोता बनें और उसकी सराहना कर सकें। आज से आरम्भ हो रही श्रृंखला- ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ में भी हमारा यही प्रयास रहेगा कि शास्त्रीय संगीत आपके लिए अनबूझ पहेली बन कर न रह जाय। यह तो आप जानते ही हैं कि भारतीय संगीत के सबसे प्रमुख तत्त्व सात स्वर और इन स्वरों से बनने वाले राग होते हैं। संगीत के प्रचलित,