ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 517/2010/217 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! एक दोहे मे कहा गया है कि "दोस (दोष) पराये देख के चला हसन्त हसन्त, अपनी याद ना आवे जिनका आदि ना अंत"। यानी कि हम दूसरों की ग़लतियों को देख कर उनका मज़ाक उड़ाते हैं, लेकिन अपनी ग़लतियों का कोई अहसास नहीं होता। अब आप अगर यह सोच रहे होंगे कि हमें दूसरों की ग़लतियाँ नहीं निकालनी चाहिए, तो ज़रा ठहरिए, क्योंकि कबीरदास के एक अन्य दोहे में यह भी कहा गया है कि "निन्दक नियरे राखिये आँगन कुटि चवाय, बिना पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय"। यानि कि हमें उन लोगों को अपने आस पास ही रखने चाहिए जो हमारी निंदा करते हैं, ताकि इसी बहाने हमें अपनी ख़ामियों और ग़लतियों के बारे में पता चलता रहेगा, जिससे कि हम अपने आप को सुधार सकते हैं। आप समझ रहे होंगे कि हम ये सब बातें किस संदर्भ में कर रहे हैं। जी हाँ, 'गीत गड़बड़ी वले' शृंखला के संदर्भ में। क्या है कि हमें भी अच्छा तो नहीं लग रहा है कि इन महान कलाकारों की ग़लतियों को बार बार उजागर करें, लेकिन अब जब शृंखला शुरु हो ही चुकी है, तो इसे अंजाम भी तो देन...