Skip to main content

Posts

Showing posts with the label n dutta

मैं जब भी अकेली होती हूँ...जब नुक्ते में नुक्स कर बैठी महान आशा जी भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 517/2010/217 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! एक दोहे मे कहा गया है कि "दोस (दोष) पराये देख के चला हसन्त हसन्त, अपनी याद ना आवे जिनका आदि ना अंत"। यानी कि हम दूसरों की ग़लतियों को देख कर उनका मज़ाक उड़ाते हैं, लेकिन अपनी ग़लतियों का कोई अहसास नहीं होता। अब आप अगर यह सोच रहे होंगे कि हमें दूसरों की ग़लतियाँ नहीं निकालनी चाहिए, तो ज़रा ठहरिए, क्योंकि कबीरदास के एक अन्य दोहे में यह भी कहा गया है कि "निन्दक नियरे राखिये आँगन कुटि चवाय, बिना पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय"। यानि कि हमें उन लोगों को अपने आस पास ही रखने चाहिए जो हमारी निंदा करते हैं, ताकि इसी बहाने हमें अपनी ख़ामियों और ग़लतियों के बारे में पता चलता रहेगा, जिससे कि हम अपने आप को सुधार सकते हैं। आप समझ रहे होंगे कि हम ये सब बातें किस संदर्भ में कर रहे हैं। जी हाँ, 'गीत गड़बड़ी वले' शृंखला के संदर्भ में। क्या है कि हमें भी अच्छा तो नहीं लग रहा है कि इन महान कलाकारों की ग़लतियों को बार बार उजागर करें, लेकिन अब जब शृंखला शुरु हो ही चुकी है, तो इसे अंजाम भी तो देन...

नन्ही नन्ही बुंदिया जिया लहराए बादल घिर आए...बरसात के मौसम में आनंद लीजिए लता के इस बेहद दुर्लभ गीत का भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 482/2010/182 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर कल से हमने शुरु की है इस सदी की आवाज़ लता मंगेशकर के गाए कुछ बेहद दुर्लभ और भूले बिसरे गीतों से सजी लघु शृंखला 'लता के दुर्लभ दस'। कल की कड़ी में आपने १९४८ की फ़िल्म 'हीर रांझा' का एक पारम्परिक विदाई गीत सुना था, आइए आज १९४८ की ही एक और फ़िल्म का गीत सुना जाए। यह फ़िल्म है 'मेरी कहानी'। इस फ़िल्म का निर्माण किया था एस. टी. पी प्रोडक्शन्स के बैनर ने, फ़िल्म के निर्देशक थे केकी मिस्त्री। सुरेन्द्र, मुनव्वर सुल्ताना, प्रतिमा देवी, मुराद और लीला कुमारी अभिनीत इस फ़िल्म के संगीतकार थे दत्ता कोरेगाँवकर, जिन्हें हम के. दत्ता के नाम से भी जानते हैं। फ़िल्म में दो गीतकारों ने गीत लिखे - नक्शब जराचवी, यानी कि जे. नक्शब, और अंजुम पीलीभीती। इस फ़िल्म के मुख्य गायक गायिका के रूप में सुरेन्द्र और गीता रॊय को ही लिया गया था। लेकिन उपलब्ध जानकारी के अनुसार लता मंगेशकर से इस फ़िल्म में दो गीत गवाए गए थे, जिनमें से एक तो आज का प्रस्तुत गीत है "नन्ही नन्ही बुंदिया जिया लहराए बादल घिर आए", और दूसरे गीत के ब...

ये वो दौर था जब फ़िल्में एक खास उद्देश्य से बनती थी, जाहिर है संगीत पर भी खूब मेहनत होती थी

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ३८ बी. आर चोपड़ा हिंदी सिनेमा के एक महत्वपूर्ण स्तंभ रहे हैं। उनकी हर फ़िल्म हमें कुछ ना कुछ ज़रूर संदेश देती है। आज उन्ही की फ़िल्म 'धूल का फूल' से एक युगल गीत, जिसे फ़िल्म के लिए लता मंगेशकर और महेन्द्र कपूर ने गाया था। साहिर लुधियानवी के बोल और एन. दत्ता का संगीत। जब बी. आर. चोपड़ा साहब का नाम आ ही गया है तो क्यों ना उन्ही के द्वारा प्रस्तुत विविध भारती के जयमाला कार्यक्रम से एक अंश यहाँ पर पेश कर दिया जाए। "मेरा नाम बी. आर. चोपड़ा, पूरा नाम बलदेव राज चोपड़ा, पूरी फ़िल्म लाइन में एक ही शख़्स है जो मुझे बलदेव के नाम से पुअकारता है, और वो हैं दादामुनि अशोक कुमार। एक दिन बलदेव ने एक बदमाशी की, और एक अंग्रेज़ी फ़िल्म देखी। आर्य समाज के जलसे में जाने का बहाना कर के गया था। वापस लौटे तो देर हो चुकी थी। पिताजी ने पूछा कि कहाँ से आ रहे हो भाई? आर्य समाज के उसूलों पर चलनेवाले बलदेव से झूठ ना बोला गया। पिताजी सच से ख़ुश हो गए, मगर आइंदा फ़िल्में देखने पर पाबंदी लगा दी। कॊलेज में लिखने का शौक पैदा हो गया। पढ़ाई के साथ साथ मैगज़िन्स में ख़ूब लिखे। कभी कहा...

मैंने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी....गुड्डो दादी की पसंद आज ओल्ड इस गोल्ड पर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 401/2010/101 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में सभी श्रोताओं व पाठकों का फिर एक बार स्वागत है। पिछले दिनों हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिए एक नए ई-मेल पते की शुरुआत की थी जिस पर हम आप से आपकी पसंद और सुझावों का स्वागत किया करते हैं। हमें बेहद ख़ुशी है कि आप में से कई 'आवाज़' के चाहनेवाले इस पते पर ना केवल अपनी पसंद लिख कर भेज रहे हैं, बल्कि साथ ही साथ सुझाव भी भेज रहे हैं और हमारी ग़लतियों को भी सुधार रहे हैं। हम पूरी कोशिश करते हैं कि आलेखों में लिखे जाने वाले तथ्य १००% सही हो, लेकिन कभी कभी ग़लतियाँ हो ही जाती हैं। इसलिए हम आप से फिर एक बार निवेदन करते हैं कि जब भी कभी आपको लगे कि दी जाने वाली जानकारी ग़लत है, तो हमें ज़रूर सूचित करें। और अब हम आते हैं आपकी पसंद पर। हमारा मतलब है, उन फ़रमाइशों पर जिन्हे आप ने की है हम से। जी हाँ, पिछले दिनों हमें आप की तरफ़ से जिन जिन गीतों को सुनवाने की फ़रमाइशें प्राप्त हुई हैं, उन्ही गीतों को लेकर हम आज से शुरु कर रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नई लघु शृंखला 'पसंद अपनी अपनी'। हमारे ई-मेल पते प...

यादों का सहारा न होता हम छोड के दुनिया चल देते....और चले ही तो गए तलत साहब

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 359/2010/59 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोताओं व पाठकों को हमारी तरफ़ से होली की हार्दिक शुभकामनाएँ। इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है तलत महमूद पर केन्द्रित शृंखला 'दस महकती ग़ज़लें और एक मख़मली आवाज़'। जैसा कि हमने आप से पहली ही कहा था कि तलत महमूद की गाई ग़ज़लों की इस ख़ास शृंखला के दस में से नौ ग़ज़लें फ़िल्मों से चुनी हुई होगी और आख़िरी ग़ज़ल हम आपको ग़ैर फ़िल्मी सुनवाएँगे। तो आज बारी है आख़िरी फ़िल्मी ग़ज़ल की। ६० के दशक के आख़िर के सालों में फ़िल्म संगीत पर पाश्चात्य संगीत इस क़दर हावी हो गया कि गीतों से नाज़ुकी और मासूमियत कम होने लगी। ऐसे में वो कलाकार जो इस बदलाव के साथ अपने आप को बदल नहीं सके, वो धीरे धीरे फ़िल्मों से दूर होते चले गए। इनमें कई कलाकार अपनी स्वेच्छा से पीछे हो लिए तो बहुत सारे अपने आप को इस परिवर्तन में ढाल नहीं सके। तलत महमूद उन कलाकारों में से थे जो स्वेच्छा से ही इस जगत को त्याग दिया और ग़ैर फ़िल्म संगीत जगत में अपने आप को व्यस्त कर लिया। आज हमने एक ऐसी ग़ज़ल चुनी है जो बनी थी सन‍ १९६९ में। फ़िल्म 'पत्थ...

बचना ज़रा ज़माना है बुरा...रफी और गीता दत्त में खट्टी मीठी नोंक झोंक

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 117 ज हाँ तक मोहम्मद रफ़ी और गीता दत्त के गाये युगल गीतों की बात है, हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में कई बार ऐसे गीत बजाये हैं। और वो सभी के सभी नय्यर साहब के संगीत निर्देशन में थे। आज भी एक रफ़ी-गीता डुएट लेकर हम ज़रूर आये हैं लेकिन ओ. पी. नय्यर के संगीत में नहीं, बल्कि एन. दत्ता के संगीत निर्देशन में। जी हाँ, यह गीत है फ़िल्म 'मिलाप' का। वही देव आनंद - गीता बाली वाली 'मिलाप' जो बनी थी सन् १९५५ में और जिसमें एन. दत्ता ने पहली बार बतौर स्वतंत्र संगीतकार संगीत दिया था। केवल एन. दत्ता का ही नहीं, बल्कि फ़िल्म के निर्देशक राज खोंसला का भी यह पहला निर्देशन था। इससे पहले उन्होने गुरु दत्त के सहायक निर्देशक के रूप में फ़िल्म 'बाज़ी' ('५१), 'जाल' ('५२), 'बाज़' ('५३) और 'आर पार' (१९५४) काम कर चुके थे। इसलिए एक अच्छे फ़िल्म निर्देशक बनने के सारे गुण उनमे समा चुके थे। जिस तरह से इस फ़िल्म में उन्होने नायिका गीता बाली की 'एन्ट्री' करवाई है "हमसे भी कर लो कभी कभी तो" गीत में, यह हमें याद दिलाती ...