ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 671/2011/111 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक नई सप्ताह के साथ मैं, सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ आप सब की ख़िदमत में हाज़िर हूँ। दोस्तों, बचपन में हम सभी नें अपने दादा-दादी, नाना-नानी और माँ-बाप से बहुत सारी किस्से कहानियाँ सुनी हैं, है न? उस उम्र में ये कहानियाँ हमें कभी परियों के साम्राज्य में ले जाते थे तो कभी राजा-रानी की रूप-कथाओं में। कभी भूत-प्रेत की कहानियाँ सुन कर रात को बाथरूम जाने में डर भी लगा होगा आपको। और हम जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं, हमारी कहानियाँ भी उम्र और रुचि के साथ साथ बदलती चली जाती है। कहानी-वाचन भी एक तरह की कला है। एक अच्छा कहानी-वाचक सुनने वालों को बाकी सब कुछ भूला कर कहानी में मग्न कर देता है, और कहानी के साथ जैसे वो बहता चला जाता है। हमारी फ़िल्में भी कहानी कहने का एक ज़रिया है। और फ़िल्मों के गीत भी ज़्यादातर समय फ़िल्म की कहानी को ही आगे बढ़ाते हैं। लेकिन कई बार ऐसा भी हुआ है कि कोई फ़िल्मी गीत भी अपने आप में कोई कहानी कहता है। कुछ ऐसे ही गीतों को लेकर, जिनमें छुपी है कोई कहानी, हम आज से एक नई शृंखला की शुरुआत कर ...