नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' शनिवार विशेष की २२ वीं कड़ी में आप सभी का स्वागत है। आप सभी को क्रिस्मस की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। इस साप्ताहिक विशेषांक में अधिकतर समय हमने 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' पेश किया, जिसमें आप ही के भेजे हुए ईमेल शामिल हुए और कई बार हमने नामचीन फ़नकारों से संपर्क स्थापित कर फ़िल्म संगीत के किसी ना किसी पहलु का ज़िक्र किया। आज हम आ पहुँचे हैं इस साप्ताहिक शृंखला की २०१० वर्ष की अंतिम कड़ी पर। तो आज हम अपने जिस दोस्त के ईमेल से इस शृंखला में शामिल कर रहे हैं, वो हैं ख़ानसाब ख़ान। हर बार की तरह इस बार भी उन्होंने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की तारीफ़ की है और हमारा हौसला अफ़ज़ाई की है। लीजिए ख़ानसाब का ईमेल पढ़िए... ****************************** आदाब, नौ रसों की 'रस माधुरी' शृंखला बहुत पसंद आई। आपने केवल इन रसों का बखान फ़िल्मी गीतों के लिए ही नहीं किया, बल्कि हमारी ज़िंदगी से जोड़ कर भी आप ने इनको पूरे विस्तार से बताया, जिससे हमें हमारी ज़िंदगी से जुड़े पहलुओं को भी जानने को मिला। और हमें ज्ञात हुआ कि हमारे मन की इन मुद्राओं को भी फ़िल्मी गी...