ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 701/2011/141 "ओ ल्ड इज गोल्ड" पर आज से आरम्भ हो रही नई श्रृंखला में अपने पाठकों-श्रोताओं का मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार फिर स्वागत करता हूँ| दोस्तों; आज का यह अंक हम सब के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण है| पिछली श्रृंखला के समापन अंक से "ओल्ड इज गोल्ड" ने सात सौ अंकों का आँकड़ा पार कर लिया है| आज हम सब आठवें शतक के पहले अंक में प्रवेश कर रहें हैं| "ओल्ड इज गोल्ड" की श्रृंखलाओं को यह ऐतिहासिक उपलब्धि दिलाने में आप सभी पाठकों-श्रोताओं का ही योगदान है| "आवाज़" के सम्पादक सजीव सारथी तथा "ओल्ड इज गोल्ड" श्रृंखलाओं के संवाहक सुजॉय चटर्जी ने एक बार पुनः मुझे एक नई श्रृंखला का दायित्व दिया, इसके लिए मैं इनके साथ-साथ अपने पाठकों-श्रोताओं के प्रति भी आभार प्रकट करता हूँ| दोस्तों; इन दिनों आप प्रकृति के अद्भुत वरदान- वर्षा ऋतु का आनन्द ले रहें हैं| आपके चारो ओर परिवेश ने हरियाली की चादर ओढ़ रखी है| तप्त-शुष्क मिट्टी पर वर्षा की फुहारें पड़ने पर जो सुगन्ध फैलती है वह अवर्णनीय है| ऐसे ही मनभावन परिवेश में आपके उल्लास और उमंग को द्विग...