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दो युवा प्रेमियों के प्रेम तो कभी प्रेम त्रिकोण को आधार बना कर लिखी गयी बहुत सी फ़िल्में, और अनेकों गीत भी

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ४३ रा ज कपूर कैम्प की एक मज़बूत स्तम्भ रहीं हैं लता मंगेशकर। दो एक फ़िल्मों को छोड़कर राज साहब की सभी फ़िल्मों की नायिका की आवाज़ बनीं लताजी। राज कपूर और लताजी के संबंध भी बहुत अच्छे थे। इसी सफल फ़िल्मकार-गायिका जोड़ी के नाम आज के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह शाम! दोस्तों, २ जुन १९८८ को राज कपूर इस दुनिया को हमेशा के लिए छोड़ गये थे। इसके कुछ ही दिन पहले लताजी का एक कॊन्‍सर्ट लंदन मे आयोजित हुआ था जिसका नाम था 'लता - लाइव इन इंगलैंड'। इस कॊन्‍सर्ट की रिकार्डिंग् मेरे पास उपलब्ध है दोस्तों, और उसी मे लताजी ने राज कपूर की दीर्घायु कामना करते हुए जनता से क्या कहा था वो मैं आपके लिए यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ - "भाइयों और बहनों, हमारी फ़िल्म इंडस्ट्री के प्रोड्युसर, डायरेक्टर, हीरो, और किसी हद तक मैं कहूँगी म्युज़िक डायरेक्टर भी, राज कपूर साहब बहुत बीमार हैं दिल्ली में, मैं आप लोगों से यह प्रार्थना करूँगी कि आप लोग उनके लिए ईश्वर से प्रार्थना करें कि उनकी तबीयत ठीक हो जायें। हम लोगों ने कम से कम ४० साल एक साथ काम किया है, और हमारा मन वही है, रोज़ ही

फिल्म में गीत लिखना एक अलग ही किस्म की चुनौती है जिसे बेहद सफलता पूर्वक निभाया बीते दौर के गीतकारों ने

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ३६ १९५५ में निर्माता निर्देशक ए. आर. कारदार ने किशोर कुमार और चांद उसमानी को लेकर बनायी फ़िल्म 'बाप रे बाप'। १९५२ तक नौशाद साहब ही कारदार साहब की फ़िल्मों में संगीत दे रहे थे। उसके बाद ग़ुलाम मोहम्मद, मदन मोहन और रोशन जैसे संगीतकार उनके साथ जुड़े। और 'बाप रे बाप' के लिए कारदार साहब ने चुना ओ.पी. नय्यर साहब को। और गीतकार चुना गया जाँनिसार अख़्तर को। जाँनिसार अख़्तर, जो जावेद अख़्तर साहब के पिता हैं, उन्होने नय्यर साहब के साथ कई फ़िल्मों में काम किया। जाँनिसार साहब ने भले ही बहुत सारी फ़िल्मों के लिए गानें लिखे, लेकिन उन्हे दूसरे गीतकारों की तुलना में कुछ कम ही याद किया जाता है। जाने क्यों! दोस्तों, अभी हाल में आइ.बी.एन-७ चैनल पर लता जी का एक इंटरव्यू लिया गया था और जावेद अख़्तर साहब उसमें लता जी से बातचीत कर रहे थे। तो जब जावेद साहब ने लता जी से पूछा कि कोई एक ऐसा गाना वो बताएँ जो सब से ज़्यादा उन्हे पसंद रहा है, तो पहले तो लता जी हिचकिचाई यह कहते हुए कि किसी एक गीत को चुनना नामुमकिन है। फिर भी जावेद साहब के ज़िद करने पर उन्होने युंही कह दिया क

पुराने नायाब गीतों की सफलता में उन अदाकारों का अभिनय भी एक अहम घटक रहा जिन्होंने इन गीतों को परदे पर जीया

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ३२ रा ग अहिरीभैरव में रचा सचिन देव बर्मन का एक उत्कृष्ट रचना के साथ 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' की आज की कड़ी में हम उपस्थित हुए हैं। फ़िल्म 'मेरी सूरत तेरी आँखें' में मन्ना डे साहब ने शैलेन्द्र के लिखे इस गीत को पुर्णता तक पहुँचाया था। "पूछो ना कैसे मैंने रैन बिताई"। मन्ना डे एक ऐसे गायक रहे हैं जिन्होने फ़िल्मों में सब से ज़्यादा इस तरह की रचनाएँ गाए हैं। या फिर युं कहिए कि इस तरह की शास्त्रीय रचनाओं के लिए उनसे बेहतर नाम कोई नहीं था उस ज़माने में और ना आज है। यह ज़रूर अफ़सोस की बात रही है कि मन्ना दा को नायकों के लिए बहुत ज़्यादा पार्श्वगायन का मौका नहीं मिला, लेकिन जब भी शास्त्रीय रंग में ढला कोई "मुश्किल" गीत गाने की बारी आती थी तो हर संगीतकार को सब से पहले इन्ही की याद आती थी। शास्त्रीय संगीत पर उनकी मज़बूत पकड़ और उनकी सुर साधना को सभी स्वीकारते हैं और फ़िल्म संगीत जगत में उनका नाम आज भी बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है। जहाँ तक प्रस्तुत गीत के संगीत की बात है तो बर्मन दादा अपने इस गीत को अपनी सर्वोत्तम रचना मानते हैं,

मल्टी स्टारर फिल्मों में सुनाई दिए कुछ अनूठे यादगार मल्टी सिंगर गीत भी

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # १४ आ ज 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' पर हम एक ऐसा गीत लेकर आए हैं जिसे ऒरिजिनली चार महान गायकों ने गाया था। इतना ही नहीं, इन चारों गायकों का एक साथ में गाया हुआ यह एकमात्र गीत भी है। इसीलिए यह गीत फ़िल्म संगीत के इतिहास का एक बेहद महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय गीत बन जाता है। जी हाँ, फ़िल्म 'अमर अकबर ऐंथनी' का वही मशहूर गीत "हमको तुमसे हो गया है प्यार क्या करें", जिसे आवाज़ दी थी लता मंगेशकर, किशोर कुमार, मोहम्मद रफ़ी और मुकेश ने। फ़िल्म के परदे पर लता जी ने तीनों नायिकाओं का पार्श्वगायन किया था - परवीन बाबी, नीतू सिंह और शबाना आज़मी; किशोर दा बनें अमिताभ बच्चन की आवाज़; रफ़ी साहब ने प्लेबैक दिया ऋषी कपूर को तथा विनोद खन्ना के लिए गाया मुकेश ने। आज इस गीत का जो रिवाइव्ड वर्ज़न हम सुनेंगे उसे भी चार आवाज़ों ने गाए हैं, जिनके बारे में आपको अभी थोड़ी देर में पता चल जाएगा। इस गीत को लिखा है आनंद बक्शी और संगीत दिया लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने। इसी फ़िल्म में एक अन्य गीत है किशोर दा और अमिताभ साहब का गाया हुआ "माइ नेम इज़ ऐंथनी गोनज़ल्वेस"। त