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पतवार पहन जाना... ये आग का दरिया है....गीत संगीत के माध्यम से चेता रहे हैं विशाल और गुलज़ार.

ताजा सुर ताल (16) ता जा सुर ताल में आज पेश है फिल्म "कमीने" का एक थीम आधारित गीत. सजीव - मैं सजीव स्वागत करता हूँ ताजा सुर ताल के इस नए अंक में अपने साथी सुजॉय के साथ आप सब का... सुजॉय - सजीव क्या आप जानते हैं कि संगीतकार विशाल भारद्वाज के पिता राम भारद्वाज किसी समय गीतकार हुआ करते थे। जुर्म और सज़ा, ज़िंदगी और तूफ़ान, जैसी फ़िल्मों में उन्होने गानें लिखे थे.. सजीव - अच्छा...आश्चर्य हुआ सुनकर.... सुजॉय - हाँ और सुनिए... विशाल का ज़िंदगी में सब से बड़ा सपना था एक क्रिकेटर बनने का। उन्होप्ने 'अंडर-१९' में अपने राज्य को रीप्रेज़ेंट भी किया था। हालाँकि उनके पिता चाहते थे कि विशाल एक संगीतकार बने, उन्होने अपने बेटे को क्रिकेट खेलने से नहीं रोका। सजीव - ठीक है सुजॉय मैं समझ गया कि आज आप विशाल की ताजा फिल्म "कमीने" से कोई गीत श्रोताओं को सुनायेंगें, तभी आप उनके बारे में गूगली सवाल कर रहे हैं मुझसे....चलिए इसी बहाने हमारे श्रोता भी अपने इस प्रिय संगीतकार को करीब से जान पायेंगें...आप और बताएं ... सुजॉय - जी सजीव, जाने माने गायक और सुर साधक सुरेश वाडकर ने विशाल

ये बरकत उन हज़रत की है....मोहित चौहान ने किया कबूल गुलज़ार के शब्दों में

ताजा सुर ताल (14) स जीव - नमस्कार दोस्तों, मैं हूँ सजीव और मेरे साथ है, आवाज़ के हमकदम सुजॉय... सुजॉय - सभी दोस्तों को मेरा नमस्कार... सजीव - सुजॉय लगता है ताज़ा सुर ताल धीरे धीरे अपने उद्देश्य में कामियाब हो रहा है. बिलकुल वैसे ही जैसे ओल्ड इस गोल्ड का उद्देश्य आज की पीढी को पुराने गीतों से जोड़ना था, ताज़ा सुर ताल का लक्ष्य संगीत की दुनिया में उभरते नये नामों से बीती पीढी को मिलवाना है और देखिये पिछले अंक में शरद जी ने हमें लिखा कि उन्होंने मोहित चौहान का नाम उस दिन पहली बार सुना था हमें यकीं है शरद जी अब कभी इस नाम को नहीं भूलेंगे... सुजॉय - हाँ सजीव, ये स्वाभाविक ही है. जैसा कि उन्होंने खुद भी लिखा कि जिन दिग्गजों को वो सुनते आ रहे हैं उनके समक्ष उन्हें इन गायकों में वो दम नज़र नहीं आता. पर ये भी सच है कि आज की पीढी इन्हीं नए कलाकारों की मुरीद है तो संगीत तो बहता ही रहेगा...फनकार आते जाते रहेंगें... सजीव - बिलकुल सही....इसलिए ये भी ज़रूरी है कि हम समझें आज के इस नए दौर के युवाओं के दिलों पर राज़ कर रहे फनकारों को भी. तो सुजॉय जैसा कि हमने वादा किया था कि हम मोहित के दो गीत एक के बा

एक दिल से दोस्ती थी ये हुज़ूर भी कमीने...विशाल भारद्वाज का इकरारनामा

ताजा सुर ताल (12) आ त्मावलोकन यानी खुद के रूबरू होकर बीती जिंदगी का हिसाब किताब करना, हम सभी करते हैं ये कभी न कभी अपने जीवन में और जब हमारे फ़िल्मी किरदार भी किसी ऐसी अवस्था से दोचार होते हैं तो उनके ज़ज्बात बयां करते कुछ गीत भी बने हैं हमारी फिल्मों में, अक्सर नतीजा ये निकलता है कि कभी किस्मत को दगाबाज़ कहा जाता है तो कभी हालतों पर दोष मढ़ दिया जाता है कभी दूसरों को कटघरे में खडा किया जाता है तो कभी खुद को ही जिम्मेदार मान कर इमानदारी बरती जाती है. रेट्रोस्पेक्शन या कन्फेशन का ही एक ताजा उदाहरण है फिल्म "कमीने" का शीर्षक गीत. फर्क सिर्फ इतना है कि यहाँ जिंदगी को तो बा-इज्ज़त बरी कर दिया है और दोष सारा बेचारे दिल पर डाल दिया गया है, देखिये इन शब्दों को - क्या करें जिंदगी, इसको हम जो मिले, इसकी जाँ खा गए रात दिन के गिले.... रात दिन गिले.... मेरी आरजू कामिनी, मेरे ख्वाब भी कमीने, एक दिल से दोस्ती थी, ये हुज़ूर भी कमीने... शुरू में ये इजहार सुनकर लगता है कि नहीं ये हमारी दास्तान नहीं हो सकती, पर जैसे जैसे गीत आगे बढता है सच आइना लिए सामने आ खडा हो जाता है और कहीं न कहीं हम सब इ

आजा आजा दिल निचोड़े....लौट आई है गुलज़ार और विशाल की जोड़ी इस जबरदस्त गीत के साथ

ताजा सुर ताल (9) ब रसों पहले मनोज कुमार की फिल्म आई थी- "रोटी कपडा और मकान", यदि आपको ये फिल्म याद हो तो यकीनन वो गीत भी याद होगा जो जीनत अमान पर फिल्माया गया था- "हाय हाय ये मजबूरी...". लक्ष्मीकांत प्यारेलाल थे संगीतकार और इस गीत की खासियत थी वो सेक्सोफोन का हौन्टिंग पीस जो गीत की मादकता को और बढा देता है. उसी पीस को आवाज़ के माध्यम से इस्तेमाल किया है विशाल भारद्वाज ने फिल्म "कमीने" के 'धन ताना न" गीत में जो बज रहा है हमारे ताजा सुर ताल के आज के अंक में. पर जो भी समानता है उपरोक्त गीत के साथ वो बस यहीं तक खत्म हो जाती है. जैसे ही बीट्स शुरू होती है एक नए गीत का सृजन हो जाता है. गीत थीम और मूड के हिसाब से भी उस पुराने गीत के बेहद अलग है. दरअसल ये धुन हम सब के लिए जानी पहचानी यूं भी है कि आम जीवन में भी जब हमें किसी को हैरत में डालना हो या फिर किसी बड़े राज़ से पर्दा हटाना हो, या किसी को कोई सरप्राईस रुपी तोहफा देना हो, तो हम भी इस धुन का इस्तेमाल करते है, हमारी हिंदी फिल्मों में ये पार्श्व संगीत की तरह खूब इस्तेमाल हुआ है, शायद यही वजह है कि इस ध