जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं वह हृदय नहीं है पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं साहित्य, कला और संगीत ऐसे तीन स्तम्भ हैं जो हमारे देश की आन, बान और शान का प्रतीक हैं. इन तीनों ही के योगदान ने देश को सफलता के उच्च शिखर पर पहुँचाया है. इतिहास गवाह है कि साहित्य और संगीत के द्वारा हमारे साहित्यकारों ने देश के लोगों को जागरूक करने का काम किया है. चाहें गुलामी की जंजीरों से आजाद होने की प्रेरणा हो या फिर टुकडों में बँटे देश को जोड़ने का प्रयास, इन साहित्यकारों ने अपना योगदान बखूबी दिया है. इनकी कलम से निकले शब्दों ने पत्थर हृदयों में भी स्वाभिमान और देशप्रेम का जज़्बा पैदा कर दिया. कहते है कि "जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुचे कवि". अर्थात कवियों की कल्पना से कोइ भी अछूता नहीं है. जो काम अन्य लोगों को असंभव दिखा वो कार्य इन कवियों ने अपनी कलम की ताकत के द्वारा कर दिखाया. भारतीय रचनाकार बंकिमचंद्र चटर्जी को कौन नहीं जानता. उनके द्वारा लिखे "वन्दे मातरम" गीत ने करोड़ों भारतीयों के सीने में अपनी जन्मभूमि के प्रति कर्तव्य और प्रेम के भाव को जागृत कर दिया. यही...