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मेरे जीवन साथी, प्यार किये जा.....एक अनूठा गीत जिसे लिखना वाकई बेहद मुश्किल रहा होगा आनंद बख्शी साहब के लिए भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 658/2011/98 लि फ़्ट के अंदर का सीन है। नायक और नायिका अंदर हैं। बीच राह पर ही नायक लिफ़्ट की बटन दबा कर लिफ़्ट रोक देता है। नायिका कहती है कि उसे हिंदी की कक्षा में जाना है, हिंदी की क्लास है। लेकिन नायक कहता है कि हिंदी की क्लास वो ख़ुद लेगा और वो ही उसे हिंदी सिखायेगा। लेकिन मज़े की बात तो यह है कि नायक दक्षिण भारतीय है जिसे हिंदी बिल्कुल भी नहीं आती। तो साहब यह था सीन और इसमे एक गीत लिखना था गीतकार आनंद बख्शी साहब को। अब आप ही बताइए कि इस सिचुएशन पर किस तरह का गीत लिखे कोई? नायक को हिंदी नही आती और उसे हिंदी में ही गीत गाना है। इस मज़ेदार सिचुएशन पर बख्शी साहब नें एक कमाल का गाना लिखा है जिसे सुनते हुए आप भी मुस्कुरा उठेंगे, और गीत में नायिका तो हँस हँस कर लोट पोट हो रही हैं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, आज 'गान और मुस्कान' की आठवीं कड़ी में प्रस्तुत है कमाल हासन और रति अग्निहोत्री पर फ़िल्माये १९८१ की फ़िल्म 'एक दूजे के लिए' से एस. पी. बालसुब्रह्मण्यम और अनुराधा पौडवाल का गाया "मेरे जीवन साथी प्यार किये जा"। जी हाँ, बक्शी साहब नें केव

हम बने तुम बनें एक दूजे के लिए....और एक दूजे के लिए ही तो हैं आवाज़ और उसके संगीत प्रेमी श्रोता

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 559/2010/259 फ़ि ल्म संगीत के सुनहरे दौर के चुने हुए युगल गीतों को सुनते हुए आज हम क़दम रख रहे हैं ८० के दशक में। कल के गीत से ही आप ने अंदाज़ा लगाया होगा कि ७० के दशक के मध्य भाग के आते आते युगल गीतों का मिज़ाज किस तरह से बदलने लगा था। उससे पहले फ़िल्म के नायक नायिका की उम्र थोड़ी ज़्यादा दिखाई जाती थी, लेकिन धीरे धीरे फ़िल्मी कहानियाँ स्कूल-कालेजों में भी समाने लगी और इस तरह से कॊलेज स्टुडेण्ट्स के चरित्रों के लिए गीत लिखना ज़रूरी हो गया। नतीजा, वज़नदार शायराना अंदाज़ को छोड़ कर फ़िल्मी गीतकार ज़्यादा से ज़्यादा हल्के फुल्के और आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करने लगे। कुछ लोगों ने इस पर फ़िल्मी गीतों के स्तर के गिरने का आरोप भी लगाया, लेकिन क्या किया जाए, जैसा समाज, जैसा दौर, फ़िल्म और फ़िल्म संगीत भी उसी मिज़ाज के बनेंगे। ख़ैर, आज हम बात करते हैं ८० के दशक की। इस दशक के शुरुआती दो तीन सालों तक तो अच्छे गानें बनते रहे और लता और आशा सक्रीय रहीं। ८० के इस शुरुआती दौर में जो सब से चर्चित प्रेम कहानी पर बनी फ़िल्म आई, वह थी 'एक दूजे के लिए'। यह फ़िल्म तो जैसे