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Showing posts with the label Nazim Naqvi

हम देखेंगे... लाज़िम है कि हम भी देखेंगे...

पाकिस्तान से कोई ताज़ा ख़बर है?... ज़रूर कोई बुरी ख़बर होगी। याद नहीं पिछली बार कब इस मुल्क से कोई अच्छी ख़बर सुनने को मिली थी। करेले जैसी ख़बरें वो भी नीम चढ़ी कि उनपर अफ़सोस करने के लिये न तो दिमाग़ के पास फ़ालतू-दिमाग़ रह गया है और न दिल के पास वो धड़कनें जो आंसू में ढल जाती हैं। नहीं दोस्त ये वाक़ई बुरी ख़बर है... और फिर जो कुछ मोबाइल पर कहा गया वो वाक़ई यक़ीन करने वाला नहीं था। इक़बाल बानों नहीं रहीं। हँसी कब ग़ायब हो गई, बेयक़ीनी कब यक़ीन में बदल गई, पता ही नहीं चला। एक ऐसे मुल्क में जहाँ ख़तरनाक ख़बरें रोज़मर्रा की हक़ीक़त बन चुकी हैं। जहां मौत तमाशा बन चुकी है वहां इक़बाल बानों की मौत ने उस आवाज़ को भी हमसे छीन लिया जो ज़ख़्म भरने का काम करती थी, जो रूह का इलाज थी। “दश्ते तंहाई में ऐ जाने जहां ज़िंदा हैं…” फ़ैज़ की ये नज़्म अगर सुननेवालों के दिलों में ज़िंदा है तो इसकी एक बड़ी वजह इक़बाल बानों की वो आवाज़ है जो इसका जिस्म बन गई। बहरहाल ये सच है कि 21 अप्रैल 2009 को इकबाल बानो अपने चाहने वालों को ख़ुदा हाफिज़ कहके हमेशा-हमेशा के लिये रुख़सत हो गईं। और इसी के साथ ठुमरी, दादरा,

सारी बस्ती निगल गया है (नई धुन, नई ग़ज़ल)

दूसरे सत्र के २५वें गीत के रूप में सुनिए एक ग़ज़ल कुमार आदित्य नाज़िम नक़वी हम वर्ष २००८ के समापन की ओर बढ़ रहे हैं। हिन्द-युग्म की बड़ी उपलब्धियों में से एक उपलब्धि यह भी रही कि ४ जुलाई से अब तक हमने हर शुक्रवार एक नया गाना रीलिज किया। अब तक १७ संगीतकारों से अपना तार जोड़ा। ऐसे ही एक संगीतकार हमें मिले जो फिल्मों में जाने की तमन्ना रखते हैं, जिनके द्वारा कम्पोज एक गीत हमने पिछले शुक्रवार इस सत्र के २४वें गीत के रूप में ज़ारी किया था। आप इनके ऊर्जावान होने का अंदाज़ा यहाँ से लगा सकते हैं कि यह शुक्रवार आया और इन्हें एक नया गीत तैयार कर लिया। जिसमें फिर से इन्हीं की आवाज़ है। जी हाँ, हम अपने २५ गीत के रूप में हिन्द-युग्म के कवि नाज़िम नक़वी की एक ग़ज़ल 'जिस्म कमाने निकल गया है' रीलिज कर रहे हैं, जिसे संगीतबद्ध किया है ग्वालियर के संगीतकार कुमार आदित्य विक्रम ने और आवाज़ है खुद संगीतकार की। तो चलिए सुनते हैं हिन्द-युग्म का २५वाँ गीत- value="transparent"> (सही उच्चारण के साथ) We are heading towards the end of present session. We have releasing released a fresh song on every

मेरे अल्लाह...बुराई से बचाना मुझको....इस दुआ के साथ ईद मुबारक

हिन्दयुग्म की हरदम ये कोशिश रही है कि हिन्दी को हौसला देने वाले नए चेहरे ढूंढें जाएँ.....नाज़िम नक़वी हिन्दयुग्म से जुड़ने वाली ऐसी ही हस्ती हैं...पिछले कुछ महीनों से वो हिन्दयुग्म की कोशिशों में अपना हाथ बंटाने को लेकर गंभीर थे......तो, हमने सोचा क्यूँ न ईद के मुबारक मौके पर उन्हें अपने पाठकों के सामने प्रस्तुत किया जाए... परिचय के नाम पर यही कहना मुनासिब है कि पत्रकारिता को दुकानदारी न समझने वाले चंद बचे-खुचे नामों में एक हैं... आप भी ईद के मौके पर उनके इस आलेख को दिल में उतारिये और हिन्दयुग्म पर इनका स्वागत कीजिये.....आपकी टिप्पणियों का भी इंतज़ार रहेगा.... आप सबको ईद की मुबारकबाद....मुन्नवर जी का ये शेर याद आ रहा है.. "बच्चे भी ग़रीबी को समझने लगे शायद, अब जाग भी जाते हैं तो सहरी नहीं खाते.... " "तुम गले से आ मिलो, सारा गिला जाता रहे" ईद हमारी गंगा-जमनी तहज़ीब के उन ख़ास त्योहारों में से है जिन्हें सदियों से हम साथ मनाते आ रहे हैं। लेकिन 21वीं सदी के इस माहौल में चाहे ईद हो या दीवाली, सिर्फ़ रस्में अदा हो रही हैं। किसी शायर का ये शेर ऐसे ही हालात का आइना है – मि