स्वरगोष्ठी – 304 में आज     राग और गाने-बजाने का समय – 4 : दिन के चौथे प्रहर के राग     राग मारवा की बन्दिश - ‘गुरु बिन ज्ञान नाहीं पावे...’            ‘रेडियो  प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी  श्रृंखला- “राग और गाने-बजाने का समय” की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र  आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। है। उत्तर भारतीय  रागदारी संगीत की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि संगीत के  प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं या प्रहर प्रधान। अर्थात  संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत  किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु  में मल्हार अंग के रागों के गाने-बजाने की परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर  रागों को गाने-बजाने की एक निर्धारित समयावधि होती है। उस विशेष समय पर ही  राग को सुनने पर आनन्द प्राप्त होता है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का  प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ  प्रहर में बाँटा है। सूर्योदय से लेकर सूर्...
