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SWARGOSHTHI – 162 / लोक-रस से पगे चैती गीतों के प्रकार

स्वरगोष्ठी – 162 में आज ग्रीष्म ऋतु के आगमन की अनुभूति कराते लोकगीत चैती, चैता और घाटो ‘नाहीं आवे पिया के खबरिया हो रामा, भावे ना सेजरिया...’      अन्ततः शीत ऋतु का अवसान हुआ और ग्रीष्म ऋतु ने दस्तक भी दे दी है। ऐसे ही सुहाने परिवेश में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज फिर एक बार मौसम के अनुकूल लोकगीतों के स्वर गूँजेंगे। इस नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, पिछले अंक में आपने चैत्र मास में गाये जाने वाले चैती गीतों के उपशास्त्रीय और फिल्मी रूप का रसास्वादन किया था। आज के अंक में हम आपसे चैती के लोक स्वरूप की चर्चा करेंगे। दरअसल चैती मूलतः ऋतु प्रधान लोक संगीत की शैली है। लोकजीवन में इस ऋतु प्रधान गीत शैली के तीन रूप, चैती, चैता और घाटो प्रचलित है। पिछले अंक में हम यह उल्लेख कर चुके हैं कि चैत्र मास की नौमी तिथि को रामजन्म का पर्व मनाया जाता है। इसके साथ ही बासन्ती नवरात्र के पहले दिन भारतीय पंचांग के नये वर्ष का आरम्भ भी होता है। इसलिए चैती गीतों में रामजन