स्वरगोष्ठी – 131 में आज कजरी गीतों पर एक चर्चा ‘घिर के आई बदरिया राम, श्याम बिन सूनी सेजरिया हमार...’ ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत प्रेमियों का मनभावन वर्षा ऋतु के परिवेश में हार्दिक स्वागत करता हूँ। बसन्त और पावस, दो ऐसी ऋतुएँ हैं, जो मानव जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करतीं हैं। इन दिनों आप पावस ऋतु का भरपूर आनन्द ले रहे हैं। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के अनेक पाठको / श्रोताओं ने वर्षा ऋतु के गीत सुनवाने के लिए हमसे अनुरोध किया है। आप सब संगीत प्रेमियों की फरमाइश पर हम दो अंकों की एक लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के रंग : कजरी के संग’ प्रस्तुत कर रहे हैं। भारतीय संगीत की प्रत्येक विधाओं में वर्षा ऋतु के गीत उपस्थित हैं। इस प्रकार के गीत मानव-मन को लुभाते हैं और संवेदनशील भी बनाते हैं। लोक संगीत के क्षेत्र में कजरी एक सशक्त विधा है। आज के इस अंक और अगले अंक के माध्यम से हम आपके साथ कजरी गीतों पर चर्चा करेंगे और कजरी के उपशास्त्रीय तथा लोक स्वरूप में गूँथे कुछ कजरी गीत भी प्रस्तुत करेंगे।