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मासिक पत्रिका ‘आहा! ज़िंदगी’ का संगीत विशेषांक है बेहद खास

मासिक पत्रिका ‘आहा! ज़िंदगी’ का दिसम्बर, 2012 अंक : एक टिप्पणी मा सिक पत्रिका ‘आहा! ज़िंदगी’ का दिसम्बर, 2012 अंक पढ़ा, संगीतमय हो गया। वास्तव में भास्कर को आलोकजी और प्रकाशमान कर रहे हैं। ‘एक धुन ज़िंदगी की’ एवं ‘जीवन संगीत सुनें’ शीर्षक मोहक बन पड़े हैं। इस अंक ने मुझे दो-तीन लेखों की ओर आकर्षित किया। ‘धरा-मेरु सब डोलिहैं, तानसेन की तान’ और ‘बहती रही है सुर सरिता’ – दोनों लेख के लेखक बधाई के पात्र हैं। पढ़ने पर लगा कि उन्हें तथ्य जुटाने में कितना अध्ययन और परिश्रम करना पड़ा होगा। भाई विनोद पाठक के लेख द्वारा मालूम हुआ कि प्रचलित (कुछ परिवर्तन के उपरान्त) गणेश वन्दना के मूल रचयिता संगीत सम्राट तानसेन थे। परन्तु यह पढ़कर आश्चर्य हुआ कि राग मेघ मल्हार एक धोबन ने गाया था। कुछ पुस्तकों में मैंने यह पढ़ा है कि तानी नामक महिला ने यह राग गाया था। ये तथ्य किंवदंतियों पर आधारित है, अतः इनमे धारणाएँ भिन्न हो सकती हैं। तानसेन के बारे में इस लेख के माध्यम से मेरी जानकारी में वृद्धि हुई है। भाई कृष्णमोहन मिश्र के लेख ‘बहती रही है सुर सरिता’ में संगीत की यात्रा को ए

प्लेबैक वाणी (3) -शंघाई, टोला और आपकी बात

संगीत समीक्षा - शंघाई खोंसला का घोंसला हो या ओए लकी लकी ओए हो, दिबाकर की फिल्मों में संगीत हटकर अवश्य होता है. उनका अधिक रुझान लोक संगीत और कम लोकप्रिय देसिया गीतों को प्रमुख धारा में लाने का होता है. इस मामले में ओए लकी का संगीत शानदार था,  “ तू राजा की राजदुलारी ’  और  “ जुगनी ”  संगीत प्रेमियों के जेहन में हमेशा ताज़े रहेंगें जाहिर है उनकी नयी फिल्म शंघाई से भी श्रोताओं को उम्मीद अवश्य रहेगी. अल्बम की शुरुआत ही बेहद विवादस्पद मगर दिलचस्प गीत से होती है जिसे खुद दिबाकर ने लिखा है.  “ भारत माता की जय ”  एक सटायर है जिसमें भारत के आज के सन्दर्भों पर तीखी टिपण्णी की गयी है. सोने की चिड़िया कब और कैसे डेंगू मलेरिया में तब्दील हो गयी ये एक सवाल है जिसका जवाब कहीं न कहीं फिल्म की कहानी में छुपा हो सकता है, विशाल शेखर का संगीत और पार्श्व संयोजन काफी लाउड है जो टपोरी किस्म के डांस को सप्पोर्ट करती है. विशाल ददलानी ने मायिक के पीछे जम कर अपनी कुंठा निकाली है. अल्बम का दूसरा गीत एक आइटम नंबर है मगर जरा हटके. यहाँ इशारों इशारों में एक बार फिर व्यंगात्मक टिप्पणियाँ की गयी है, जिसे समझ कर

प्लेबैक इंडिया वाणी (1) -इश्क्जादे और बंद कमरा

संगीत समीक्षा  अल्बम - इश्क्जादे  संगीत - अमित त्रिवेदी पुस्तक चर्चा  पुस्तक - बंद कमरा  मूल लेखिका - सरोजिनी साहू अनुवाद - दिनेश माली  आपकी बात - अमित तिवारी के साथ