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तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले...मिर्जा ग़ालिब / शिशिर पारखी

एहतराम - अजीम शायरों को सलाम ( अंक -06 ) आज शिशिर परखी साहब एहतराम कर रहे है उस्तादों के उस्ताद शायर मिर्जा ग़ालिब का, पेश है ग़ालिब का कलाम शिशिर जी की जादूभरी आवाज़ में - तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले हूराँ-ए-ख़ुल्द में तेरी सूरत मगर मिले अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यों तेरा घर मिले साक़ी गरी की शर्म करो आज वर्ना हम हर शब पिया ही करते हैं मेय जिस क़दर मिले तुम को भी हम दिखाये के मजनूँ ने क्या किया फ़ुर्सत कशाकश-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ से गर मिले लाज़िम नहीं के ख़िज्र की हम पैरवी करें माना के एक बुज़ुर्ग हमें हम सफ़र मिले आए साकनान-ए-कुचा-ए-दिलदार देखना तुम को कहीं जो ग़लिब-ए-आशुफ़्ता सर मिले तस्कीं : Consolation, ज़ौक़ _ Taste, हूराँ - Fairy, ख़ुल्द - Paradise ख़ल्क़ - People, पिन्हाँ - Secret, साकनान - Inhabitants, Steady कुचा - Narrow lane, आशुफ़्ता सर - Uneasy, Restless. सदी के सबसे महान शायर का एक संक्षिप्त परिचय - पूछते हैं वो कि ‘ग़ालिब’ कौन है, कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या मिर्जा असद्दुल्लाह खान जिन्हें सारी दुनिया मिर्जा 'ग़ाल