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पतझर सावन बसंत बहार...अनुराग शर्मा के काव्य संग्रह पर पंकज सुबीर की समीक्षा

पॉडकास्ट पुस्तक समीक्षा पुस्तक - पतझर सावन बसंत बहार (काव्य संग्रह) लेखक - अनुराग शर्मा और साथी (वैशाली सरल, विभा दत्‍त, अतुल शर्मा, पंकज गुप्‍ता, प्रदीप मनोरिया) समीक्षक - पंकज सुबीर पिट्सबर्ग अमेरिका में रहने वाले भारतीय कवि श्री अनुराग शर्मा का नाम वैसे तो साहित्‍य जगत और नेट जगत में किसी परिचय का मोहताज नहीं है । किन्‍तु फिर भी यदि उनकी कविताओं के माध्‍यम से उनको और जानना हो तो उनके काव्‍य संग्रह पतझड़, सावन, वसंत, बहार को पढ़ना होगा । ये काव्‍य संग्रह छ: कवियों वैशाली सरल, विभा दत्‍त, अतुल शर्मा, पंकज गुप्‍ता, प्रदीप मनोरिया और अनुराग शर्मा की कविताओं का संकलन है । यदि अनुराग जी की कविताओं की बात की जाये तो उन कविताओं में एक स्‍थायी स्‍वर है और वो स्‍वर है सेडनेस का उदासी का । वैसे भी उदासी को कविता का स्‍थायी भाव माना जाता है । अनुराग जी की सारी कविताओं में एक टीस है, ये टीस अलग अलग जगहों पर अलग अलग चेहरे लगा कर कविताओं में से झांकती दिखाई देती है । टीस नाम की उनकी एक कविता भी इस संग्रह में है ’’एक टीस सी उठती है, रात भर नींद मुझसे आंख मिचौली करती है ।‘’ अनुराग जी की कविताओ

"अमृता - इमरोज़"- रंजना भाटिया की नज़र में

पॉडकास्ट पुस्तक समीक्षा (अंक २) अमृता इमरोज लेखिका – उमा त्रिलोक मूल्य – 120 प्रकाशक – पेंगुइन बुक्स इंडिया प्रा. लि. भारत आईएसबीएन नं. – 0-14-309993-0 उमा त्रिलोक की किताब को पढ़ना मुझे सिर्फ़ इस लिए अच्छा नही लगा कि यह मेरी सबसे मनपसंद और रुह में बसने वाली अमृता के बारे में लिखी हुई है ..बल्कि या मेरे इस लिए भी ख़ास है कि इसको इमरोज़ ने ख़ुद अपने हाथो से हस्ताक्षर करके मुझे दिया है ...उमा जी ने इस किताब में उन पलों को तो जीवंत किया ही है जो इमरोज़ और अमृता की जिंदगी से जुड़े हुए बहुत ख़ास लम्हे हैं साथ ही साथ उन्होंने इस में उन पलों को समेट लिया है जो अमृता जी की जीवन के आखरी लम्हे थे. और उन्होंने हर पल उस रूहानी मोहब्बत के जज्बे को अपनी कलम में समेट लिया है फ़िर सुबह सवेरे हम कागज के फटे हुए टुकडों की तरह मिले मैंने अपने हाथ में उसका हाथ लिया उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और फ़िर हम दोनों एक सेंसर की तरह हँसे और फ़िर कागज को एक ठंडी मेज पर रख कर उस सारी नज़्म पर लकीर फेर दी ! मैंने इस किताब को पढ़ते हुए इसके हर लफ्जे को रुह से महसूस किया एक तो मैं उनके घर हो कर आई थी यदि कोई न भी गया

नए राग से बांधे अक्सर बिछडे स्वर टूटी सरगम के...

हिन्दी ब्लॉग जगत पर पहली बार - पॉडकास्ट पुस्तक समीक्षा पुस्तक - साया (काव्य संग्रह) लेखिका - रंजना भाटिया "रंजू" समीक्षक - दिलीप कवठेकर युगों पहले जिस दिन क्रौंच पक्षी के वध के बाद वाल्मिकी के मन में करुणा उपजी थी, तो उनके मन की संवेदनायें छंदों के रूप में उनकी जुबान पर आयी, और संभवतः मानवी सभ्यता की पहली कविता नें जन्म लिया.तब से लेकर आज तक यह बात शाश्वत सी है, कि कविता में करुणा का भाव स्थाई है. अगर किसी भी रस में बनी हुई कविता होगी तो भी उसके अंतरंग में कहीं कोई भावुकता का या करुणा का अंश ज़रूर होगा. रंजना (रंजू) भाटिया की काव्य रचनायें "साया" में कविमन नें भी यही मानस व्यक्त किया है,कहीं ज़ाहिर तो कहीं संकेतों के माध्यम से. इस काव्यसंग्रह "साया" का मूल तत्व है - ज़िंदगी एक साया ही तो है, कभी छांव तो कभी धूप ... मुझे जब इस कविता के पुष्पगुच्छ को समीक्षा हेतु भेजा गया, तो मुझे मेरे एहसासात की सीमा का पता नहीं था. मगर जैसे जैसे मैं पन्ने पलटता गया, अलग अलग रंगों की छटा लिये कविताओं की संवेदनशीलता से रु-ब-रु होने लगा, और एक पुरुष होने की वास्तविकता का और उन