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रविवार सुबह की कॉफी और फीचर्ड एल्बम "जूनून" पर बात, दीपाली दिशा के साथ (१८)

कहते हैं कि संगीत एक नशा है, जादू है, जो सर चढ़ के बोलता है. यही नहीं संगीत आत्मा की आवाज है जो इंसान में जोश और जूनून पैदा कर देता है और लोगों तक शान्ति तथा सदभाव पहुँचाने का जरिया भी है. शायद कुछ इसी मकसद से पाकिस्तानी गायकों ने अपने बैंड का नाम ’जूनून’ रखा होगा. खैर उनका मकसद जो भी रहा हो लेकिन उनके संगीत में जूनून नजर आता है जो लोगों में भी एक भाव पैदा कर देता है. ’जूनून’ पाकिस्तान का एक प्रसिद्ध बैंड है. यूं तो पाकिस्तान के कई बैंड यहाँ हिन्दुस्तान में आये हैं लेकिन ’जूनून’ ने काफी ख्याति पायी है. पिछले दस सालों में जूनून बैंड की पाँच एल्बम आयीं हैं जिनमें से सभी ने धूम मचायी है. यह पाकिस्तान के इतिहास का सबसे प्रसिद्ध बैंड है. ’जूनून’ बैंड के सदस्यों में सलमान अहमद, अली अज़मत और ब्रायन ओ शामिल हैं. ’तलाश’, ’इंकलाब’, आज़ादी, ’परवाज़’ और ’दीवार’ इनकी अब तक की एल्बमें है. जूनून ग्रुप की ’आज़ादी’ एल्बम ने सबसे ज्यादा धूम मचायी थी. इसके प्रसिद्ध होने का मुख्य कारण जूनून बैंड का सूफी के साथ रॉक का संगम होना है. ’आजादी’ का संगीत व गानों को सुनकर लगता है कि जूनून बैंड पूर्वी संगीत से प्र

रविवार सुबह की कॉफी और एक फीचर्ड एल्बम पर बात, दीपाली दिशा के साथ (१६)

"क्या लिखूं क्या छोडूं, सवाल कई उठते हैं, उस व्यक्तित्व के आगे मैं स्वयं को बौना पाती हूँ" लताजी का व्यक्तित्व ऐसा है कि उनके बारे में लिखने-कहने से पहले यही लगता है कि क्या लिखें और क्या छोडें. वो शब्द ही नहीं मिलते जो उनके व्यक्तित्व की गरिमा और उनके होने के महत्त्व को जता सकें. 'सुर सम्राज्ञी' कहें, 'भारत कोकिला' कहें या फिर संगीत की आत्मा, सब कम ही लगता है. लेकिन मुझे इस बात पर गर्व है कि लता जी जैसा रत्न भारत में उत्पन्न हुआ है. लता जी को 'भारत रत्न' पुरूस्कार का मिलना इस पुरूस्कार के नाम को सत्य सिद्ध करता है. उनकी प्रतिभा के आगे उम्र ने भी अपने हथियार डाल दिए हैं. लता जी की उम्र का बढ़ना ऐसा लगता है जैसे कि उनके गायन क्षमता की बेल दिन-प्रतिदिन बढती ही जा रही है. और हम सब भी यही चाहते हैं कि यह अमरबेल कभी समाप्त न हो, इसी तरह पीढी दर पीढी बढती ही रहे-चलती ही रहे. वर्षों से लताजी फिल्म संगीत को अपनी मधुर व जादुई आवाज से सजाती आ रही हैं. कोई फिल्म चली हो या न चली हो परन्तु ऐसा कोई गीत न होगा जिसमें लताजी कि आवाज हो और लोगों ने उसे न सराहा हो. लत

रविवार सुबह की कॉफी और एक फीचर्ड एल्बम पर बात दीपाली "दिशा" के साथ

सफलता और शोहरत किसी उम्र की मोहताज नहीं होती. अगर हमारी मेहनत और प्रयास सच्चे व सही दिशा में हों तो व्यक्ति किसी भी उम्र में सफलता और शोहरत की बुलंदियों को छू सकता है. सोनू निगम एक ऐसी शख्सियत है जिन्होंने सफलता के कई पायदान पार किये हैं. उन्होंने अपने बहुमुखी व्यक्तित्व को प्रर्दशित किया है. गायन के साथ-साथ सोनू निगम ने अभिनय व माडलिंग भी की है. यद्यपि अभिनय में उन्हें अधिक सफलता नहीं मिली, किन्तु गायन के क्षेत्र में वह शिखर पर विराजित हैं. उन्होंने गायकी छोड़ी नहीं है. वो आज भी संगीतकारों की पहली पसंद हैं. उनकी आवाज में कशिश व गहराई है. वह कई बार गाने के मूड के हिसाब से अपनी आवाज में बदलाव भी लाते हैं जो उनके हरफनमौला गायक होने का परिचय देता है. अपनी पहली एल्बम 'तू' के जरिये वो युवा दिलों के सरताज बन गए थे. उसके बाद उनकी एल्बम 'दीवाना' और 'यादें' आयीं, जिनके गीतों और गायकी की छाप आज भी हमारे जहन में है. अगर सोनू निगम द्वारा गाये गीतों की सूची बनाएं तो पायेंगे कि उन्होंने अपने बेहतरीन अंदाज से सभी गीतों में जान डाल दी है. ऐसा लगता है कि वो गीत सोनू की आवाज के

रूप कुमार राठोड और साधना सरगम के युगल स्वरों का है ये -"वादा"

बात एक एल्बम की (10) फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - वादा फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - उस्ताद अमजद अली खान, गुलज़ार, रूप कुमार राठोड, साधना सरगम. बात एक एल्बम की में इस माह हम चर्चा कर रहे हैं चार बड़े फनकारों से सजी एल्बम "वादा' के बारे में. गीतकार गुलज़ार और संगीतकार उस्ताद अमजद अली खान साहब के बारे में हम बात कर चुके हैं, आज जिक्र करते हैं इस एल्बम के दो गायक कलाकारों का. इनमें से एक हैं शास्त्रीय संगीत के अहम् स्तम्भ माने जाने वाले पंडित चतुर्भुज राठोड के सुपुत्र और श्रवण राठोड (नदीम श्रवण वाले) और विनोद राठोड के भाई, जी हाँ हम बात कर रहे हैं गायक और संगीतकार रूप कुमार राठोड की. अपने पिता (जिन्हें इंडस्ट्री में कल्याणजी आनंदजी और गायक अनवर के गुरु भी कहा जाता है) के पदचिन्हों पर चलते हुए रूप ने तबला वादन सीखने से अपना संगीत सफ़र शुरू किया. पंकज उधास और अनूप जलोटा के साथ उन्होंने संगत की. श्याम बेनेगल की "भारत एक खोज" में भी उन्होंने तबला वादन किया. १९८४ में अपने इस जूनून को एक तरफ रख उन्होंने गायन की दुनिया में खुद को परखने का अहम् निर्णय लिया ये एक बड़ा "यु-टर

रोज़-ए-अव्वल ही से आवारा हूँ, आवारा रहूंगा...गुलज़ार साहब का ऐलान उस्ताद अमजद अली खान के संगीत में.

बात एक एल्बम की (9) फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - वादा फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - उस्ताद अमजद अली खान, गुलज़ार, रूप कुमार राठोड, साधना सरगम. एल्बम "वादा" से अब तक आप तीन रचनायें सुन चुके हैं. आज आपको सुनवाते हैं दो और नायाब गीत इसी एल्बम से. गुलज़ार साहब पर हम आवाज़ पर पहले भी काफी विस्तार से चर्चा कर चुके हैं- मैं इस जमीन पर भटकता रहा हूँ सदियों तक और गुलज़ार - एक परिचय जैसे आलेखों में. महफ़िल-ए-ग़ज़ल में जब भी उनका जिक्र छिड़ा, तख्लीक-ए-गुलज़ार और परवाज़-ए-गुलज़ार से फिजा गुलज़ार नुमा हो गयी. फिल्मों में उनके लिखे ढेरों गीत हमेशा हमेशा संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज़ करेंगें पर ये भी एक सच है कि उन्होंने ढेरों गैर फिल्म संगीत एल्बम को अपनी कलम से प्रेरणा दी. उनके साथ काम कर चुके ढेरों कलाकारों ने जब भी कभी फिल्मों से इतर अपनी कला का मुजाहरा करने का मन बनाया गुलज़ार साहब की कविताओं/ ग़ज़लों ने उन्हें अपने प्रेम पाश में बाँध लिया. फिर चाहे वो भूपेंद्र सिंह हो, सुरेश वाडेकर, भूपेन हजारिका, विशाल भारद्वाज हो या फिर जगजीत सिंह, कोई भी उनकी कविताओं के नर्मो-नाज़ुक जादू से ब

"ऐसा कोई जिंदगी से वादा तो नहीं था..."- उस्ताद अमजद अली खान के संगीत का सतरंगी वादा

बात एक एल्बम की (८) फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - वादा फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - उस्ताद अमजद अली खान, गुलज़ार, रूप कुमार राठोड, साधना सरगम. "बात एक एल्बम की" का एक नया महीना है और हम हाज़िर हैं एक नयी एल्बम के साथ. इस माह की एल्बम में हैं चार दिग्गज फनकार, जो सभी के सभी अपने अपने क्षेत्र में महारत रखते हैं. जहाँ संगीतकार हों उस्ताद अमजद अली खान जैसे, गीतकार हों गुलज़ार साहब जैसे, गायक हों रूप कुमार राठोड और गायिका हों साधना सरगम जैसी तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि एल्बम किस स्तर की होगी. जी हाँ ये एल्बम है -"वादा". सच्चे और अच्छे संगीत का वादा ही तो है ये नायाब एल्बम जिसका एक एक गीत हमारा दावा है, आपके अन्तर्मन में कुछ यूं उतर जायेगा कि उसका खुमार उम्र भर नहीं उतरेगा. दरअसल इस पूरी टीम में जो नाम सबसे ज्यादा चौंकाता है वो निसंदेह उस्ताद अमजद अली खान साहब का ही है. अपने सरोद वादन से लगभग ४० सालों से भी अधिक समय से दुनिया भर के संगीत के कद्रदानों को मंत्रमुग्ध करने वाला ये महान फनकार एक व्यावसायिक एल्बम का हिस्सा बने, जरा विचित्र लगता है. पर खान साहब के क्या कहने, इतने

शहर के दुकानदारों को जावेद अख्तर की सलाह - एल्बम संगम से नुसरत साहब की आवाज़ में

बात एक एल्बम की # 07 फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - नुसरत फतह अली खान और जावेद अख्तर. फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - "संगम" - नुसरत फतह अली खान और जावेद अख्तर आलेख प्रस्तुतीकरण - सजीव सारथी जैसा कि आप जानते हैं हमारे इस महीने के फीचर्ड एल्बम में दो फनकारों ने अपना योगदान दिया है. नुसरत साहब के बारे में हम पिछले दो अंकों में बात कर ही चुके हैं. आज कुछ चर्चा करते हैं अल्बम "संगम" के गीतकार जावेद अख्तर साहब की. जावेद अख्तर एक बेहद कामियाब पठकथा लेखक और गीतकार होने के साथ साथ साहित्य जगत में भी बतौर एक कवि और शायर अच्छा खासा रुतबा रखते हैं. और क्यों न हों, शायरी तो कई पीढियों से उनके खून में दौड़ रही है. वे गीतकार/ शायर जानिसार अख्तर और साफिया अख्तर के बेटे हैं, और अपने दौर के रससिद्ध शायर मुज़्तर खैराबादी जावेद के दादा हैं. उनकी परदादी सयिदुन निसा "हिरमां" उन्नीसवी सदी की जानी मानी उर्दू कवियित्री रही हैं और उन्हीं के खानदान में और पीछे लौटें तो अल्लामा फजले हक का भी नाम आता है, अल्लामा ग़ालिब के करीबी दोस्त थे और "दीवाने ग़ालिब" का संपादन उन्हीं के ह

वाइस ऑफ़ हेवन - कोई बोले राम-राम, कोई खुदाए........नुसरत फ़तेह अली खान.

बात एक एल्बम की # 06 फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - नुसरत फतह अली खान और जावेद अख्तर. फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - "संगम" - नुसरत फतह अली खान और जावेद अख्तर आलेख प्रस्तुतीकरण - नीरज गुरु "बादल" आज फिर नुसरत जी पर लिखने बैठा हूँ, समझ नहीं आता है कि क्या करूँ जो इस शख्स का नशा मुझ पर से उतर जाए. इनका हर सुर खुमारी का वो आलम लेकर आता है कि बस आँखें बंद हो जाती हैं, शरीर के कस-बल ढीले पड़ जाते हैं और एक गहरी ध्यान-मुद्रा में चला जाता हूँ. फिर लगता है कि कोई भी मुझे छेड़े नहीं. पर यह दुनिया है बाबा.....वो मुझे नहीं छोड़ती और यह नुसरत साहब मुझसे नहीं छूटते हैं. आज यही कशमकश मैं आपके साथ बाँटने निकला हूँ. आज जिस नुसरत साहब को हम जानते हैं, उन्हें पाकिस्तानी मौसिकी का रत्न कहा जाता है, बात बड़ी लगती है-सही भी लगती है, पर मेरी नज़र में उन्हें विश्व-संगीत की अमूल्य धरोहर कहा जाए तो कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी. सूफियाना गायन ऐसा है कि कोई भी उसका दीवाना हो जाए, पर यह दीवानगी पैदा करने के लिए ही उस खुदा ने नुसरत जी को हमारे बीच भेजा था. उन्होंने क़व्वाली के ज़रिये, इस सूफियाना अंदा

आफ़रीन आफ़रीन...कौन न कह उठे नुसरत साहब की आवाज़ और जावेद साहब को बोलों को सुन...

बात एक एल्बम की # 05 फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - नुसरत फतह अली खान और जावेद अख्तर. फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - "संगम" - नुसरत फतह अली खान और जावेद अख्तर उन दिनों मैं राजस्थान की यात्रा पर था, जहाँ एक बस में मैंने उसके घटिया ऑडियो सिस्टम में खड़खड़ के बीच, "आफरीन-आफरीन.." सुना था. ज़्यादा समझ में नहीं आया पर धुन कहीं अन्दर जाकर समां गई- वहीँ गूँजती रही. फिर जब उदयपुर की एक म्यूजिक शाप पर फिर उसी धुन को सुना जो अबकी बार कहीं ज़्यादा बेहतर थी तो एक नशा-सा छा गया. यह आवाज़ थी जनाब नुसरत फतह अली भुट्टो साहब की. क्या शख्सियत, आवाज़ में क्या रवानगी, क्या खनकपन, क्या लहरिया, क्या सुरूर और क्या अंदाज़ गायकी का, जैसे खुदा खुद ज़मी पर उतर आया हो. मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि जब नुसरत साहब गाते होगें, खुदा भी वहीँ-कहीं आस-पास ही रहता होगा, उन्हें सुनता हुआ मदहोश-सा. धन्य हैं वो लोग, जो उस समय वहां मौजूद रहें होगें. उनकी आवाज़-उनका अंदाज़, उनका वो हाथों को हिलाना, चेहरे पर संजीदगी, संगीत का उम्दा प्रयोग, यह सब जैसे आध्यात्म की नुमाइंदगी करते मालूम देते हैं. दुनिया ने उन्हें देर

आलसी सावन बदरी उडाये...भूपेन दा के स्वरों में

बात एक एल्बम की # 04 फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - भूपेन हजारिका. फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - मैं और मेरा साया, - भूपेन हजारिका (गीत अनुवादन - गुलज़ार) बतौर संगीतकार अपनी पहली हिन्दी फ़िल्म 'आरोप' (1974) साईन में उन्होंने लता से 'नैनों में दर्पण है' गवाया. इस गाने के बारे में भूपेन दा बताते है "एक दिन जब मैं रास्ते से गुजर रहा था तब एक पहाड़ी लडके को गाय चराते हुए इस धुन को गाते सुना इस गाने से मै इतना प्रभावित हुआ कि मैंने उसी समय इस गाने की टियून को लिख लिया. हालांकि मैंने उसकी हू -बहू नक़ल नही किया मगर उसका प्लाट वही रखा ताकि उसकी आत्मा जिन्दा रहे. और एक लम्बे अंतराल के बाद हिंदी में आई उनकी फिल्म "रुदाली" में एक बार फिर लता ने स्वर दिया उस अमर गीत को. 'दिल हूँ हूँ करे..." इस फिल्म में आशा ने अपनी आवाज़ से एक सजाया था बोल थे ...."समय धीरे चलो...". १९९२ में उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वापस आते हैं हमारे फीचर्ड एल्बम की तरफ. "मैं और मेरा साया" में मूल असामी बोलों को हिंदी में तर्जुमा किया गुलज़ार साह

जेहन को सोच का सामान भी देते हैं भूपेन दा अपने शब्दों और गीतों से

बात एक एल्बम की # 03 फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - भूपेन हजारिका. फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - मैं और मेरा साया, - भूपेन हजारिका (गीत अनुवादन - गुलज़ार) असम का बिहू, बन गीत और बागानों के लोकगीत को राष्ट्रीय फ़लक पे स्थपित करने का श्रेय हजारिका को ही जाता है. उनके शब्द आवाम की आवाज़ को सुन कर उन्ही के मनोभावों और एहसासों को गीत का रूप दे देते हैं और बहुत ही मासूमियत से फिर दादा पूछते हैं - 'ये किसकी सदा है'. भूपेन दा ने बतौर संगीतकार पहली असमिया फ़िल्म 'सती बेहुला' (१९५४) से अपना सफ़र शुरू क्या. भूपेन दा असमिया फ़िल्म में काम करने के बाद अपना रुख मुंबई की ओर किया वहाँ इनकी मुलाकात सलिल चौधरी और बलराज सहानी से हुई। इनलोगों के संपर्क में आ कर भूपेन दा इंडियन पीपल थियेटर मोवमेंट से जुड़े. हेमंत दा भी इस थियेटर में आया करते थे. हेमंत दा और भूपेन दा की कैमेस्ट्री ऐसी जमी कि भूपेन दा उनके घर में हीं रहने लगे. एक दिन अचानक हेमंत दा हजारिका को लता जी से मुलाकात करवाने ले गए. लता से उनकी ये पहली मुलाकात थी भूपेनदा खासा उत्साहित थे.जब लता जी से मुलाकात हुई तब आश्चर्य से बोली कि &#

बहता हूँ बहता रहा हूँ...एक निश्छल सी यायावरी है भूपेन दा के स्वर में

बात एक एल्बम की # 02 फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - भूपेन हजारिका. फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - मैं और मेरा साया, - भूपेन हजारिका (गीत अनुवादन - गुलज़ार) भूपेन दा का जन्म १ मार्च १९२६ को नेफा के पास सदिया में हुआ.अपनी स्कूली शिक्षा गुवाहाटी से पूरी कर वे बनरस चले आए और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में राजनीती शास्त्र से स्नातक और स्नातकोत्तर किया. साथ में अपना संगीत के सफर को भी जारी रखा और चार वर्षों तक 'संगीत भवन' से शास्त्रीय संगीत की तालीम भी लेते रहे। वहां से अध्यापन कार्य से जुड़े रहे इन्ही दिनों ही गुवाहाटी और शिलांग रेडियो से भी जुड़ गए. जब इनका तबादला दिल्ली आकाशवाणी में हो गया तब अध्यापन कार्य छोड़ दिल्ली आ गए । भूपेन दा के दिल में एक ख्वाहिश थी की वे एक जर्नलिस्ट बने. इन्ही दिनों इनकी मुलाकात संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष नारायण मेनन से हुई. भूपेन दा की कला और आशावादिता से वे खासा प्रभावित हुए और उन्हें सलाह दी के वे विदेश जा कर पी.एच.डी. करें भूपेन दा ने उनकी सलाह मान ली और कोलंबिया विश्वविद्यालय में मॉस कम्युनिकेशंस से पी.एच डी करने चले गए. मेनन साहब ने स्कालरशिप दिलाने

मैं और मेरा साया - भूपेन दा का एक नायाब एल्बम.

बात एक एल्बम की # ०१ फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - भूपेन हजारिका. फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - मैं और मेरा साया, - भूपेन हजारिका (गीत अनुवादन - गुलज़ार) दोस्तों आज बात एक ऐसी शख्सियत की हो रही है जिनके बारे में कुछ कहने में ढेरों मुश्किलों से साक्षत्कार होना पड़ता है. इस एक शख्स में कई शख्सियत समायी हुई है ।बुद्धिजीवी संगीतकार, उत्कृष्ट गायक, सवेदनशील कवि, अभिनेता, लेखक, निर्देशक, समाज सेवक और न जाने कितने रूप. दोस्तों मै दादा साहेब फाल्के सम्मान से सम्मानित डॉक्टर भूपेन हजारिका के बारे में बात कर रहा हूँ .जब भी हिन्दी सिने जगत में लोकसंगीत की बात आएगी तो भूपेन दा के का नाम शीर्ष पर रहेगा. उन्होंने अपने संगीत के जरिये आसाम की मिट्टी की सोंधी खुश्बू कायनात में घोल दी है. बचपन में पिता शंकर देव का उपदेश ज्यादातर गेय रूप में प्राप्त होता था. उन्ही दिनों उनके मन में संगीत ने अपना घर बना लिया और वे ज्योति प्रसाद अग्रवाल, विष्णु प्रसाद शर्मा और फणी शर्मा जैसे संगीतविदों के संपर्क में आकर लोकगीत की तालीम लेने लगे। भूपेन दा के आवाज़ में वह बंजारापन है जो उस्तादों से लेकर आम जन -जन को अपने गिर