जब मैं गीता दत्त के गाने सुनता हूँ तब दुविधा में पड़ जाता हूँ. "मैं तो गिरिधर के घर जाऊं" गानेवाली वो ही गायिका हैं क्या जिसने कहा था "ओह बाबू ओह लाला". जो एक छोटे बालक की आवाज़ में फल तथा सब्जी बेच रही थी "फल की बहार हैं केले अनार हैं" वो ही एक विरहन के बोल सुना रही थी "आओगे ना साजन आओगे ना"! शास्त्रीय संगीत की मधुर लय और तानपर "बाट चलत नयी चुनरी रंग डारी" की शिकायत हो रही थी और तभी जनम जन्मांतर का साथ निभाने वाला गीत "ना यह चाँद होगा ना तारे रहेंगे मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे" गाया जा रहा था. "कोई दूर से आवाज़ दे चले आओ" में सचमुच किसी दूर कोने से एक बिरहन की वाणी सुनाई आ रही थी और साथ ही "चंदा चांदनी में जब चमके क्या हो, आ मिले जो कोई छम से पूछते हो क्या हमसे?" यह सवाल किया जा रहा था. रेलगाडी की धक् धक् पर चलती हुई रेहाना गीता की आवाज़ पर थिरक कर गा रही थी" धक् धक् करती चली हम सब से कहती चली जीवन की रेल रे मुहब्बत का नाम हैं दिलों का मेल रे". अपने आप से सवाल किया जा रहा था "ए दिल मुझे बता द