Skip to main content

Posts

Showing posts with the label pandit narender sharma

स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल-26

भूली-बिसरी यादें  भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष श्रृंखला, ‘स्मृतियों के झरोखे से’ के एक नये अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ आपके बीच उपस्थित हूँ और आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज मास का पहला गुरुवार है और इस दिन हम आपके लिए मूक और सवाक फिल्मों की कुछ रोचक दास्तान लेकर आते हैं। आज के अंक में हम आपसे 1918 में बनी कुछ मूक फिल्मों तथा सवाक फिल्मों के अन्तर्गत 1943 में बनी फिल्म 'हमारी बात' पर चर्चा करेंगे।  यादें मूक फिल्मों की : चार भागों में बनी फिल्म ‘श्रीराम वनवास’   फिल्म 'श्रीकृष्ण जन्म' का दृश्य इ स श्रृंखला के पिछले अंक में हम आपसे मूक फिल्मों से जुड़े 1970 तक के कुछ प्रमुख प्रसंगों का जिक्र कर चुके हैं। आज हम उससे आगे के कुछ प्रसंगों पर चर्चा करेंगे। 1917 में जहाँ पाँच मूक फिल्मों का निर्माण और प्रदर्शन हुआ था वहीं 1918 में आठ फिल्में प्रदर्शित की गई। इन आठ फिल्मों में से ‘दाता कर्ण’, ‘प्रोफेसर राममूर्ति ऑन स्क्रीन’ और ‘नल दमयन्ती’ का निर्माण तत्क...

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 47 "मेरे पास मेरा प्रेम है"

पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री लावण्या शाह से लम्बी बातचीत भाग १ भाग २ अब आगे... 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का इस 'शनिवार विशेषांक' में। पिछले दो सप्ताह से आप इसमें आनंद ले रहे हैं सुप्रसिद्ध कवि, साहित्यकार और गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह से की गई हमारी बातचीत का। पहले भाग में पंडित जी के पारिवारिक पार्श्व और शुरुआती दिनों का हाल आपनें जाना। और दूसरी कड़ी में लावण्या जी नें बताया कि किस तरह से उनके पिता का बम्बई आना हुआ और फ़िल्म-जगत में किस तरह से उनका पदार्पण हुआ। आइए बातचीत आगे बढ़ाते हैं। प्रस्तुत है लघु शृंखला 'मेरे पास मेरा प्रेम है' की तीसरी कड़ी। सुजॉय - लावण्या जी, 'हिंद-युग्म आवाज़' पर आपका हम स्वागत करते हैं, नमस्कार! लावण्या जी - नमस्ते! सुजॉय - लावण्या जी, फ़िल्म जगत के किन किन कलाकारों के साथ आपके परिवार का पारिवारिक सम्बंध रहा है? इसमें एक नाम लता मंगेशकर जी का अवश्य है । लता जी के साथ आपके पारिवारिक संबम्ध के बारे में हम विस्तार से जानना चाहे...

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 46 - "मेरे पास मेरा प्रेम है"

पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री लावण्या शाह से लम्बी बातचीत - भाग-2 पहले पढ़ें भाग १ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का 'शनिवार विशेषांक' में। पिछले शनिवार से हमनें इसमें शुरु की है शृंखला 'मेरे पास मेरा प्रेम है', जो कि केन्द्रित है सुप्रसिद्ध कवि, साहित्यकार और गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह से की गई हमारी बातचीत पर। आइए आज प्रस्तुत है इस शृंखला की दूसरी कड़ी। सुजॉय - लावण्या जी, एक बार फिर हम आपका स्वागत करते है 'आवाज़' पर, नमस्कार! लावण्या जी - नमस्ते! सुजॉय - लावण्या जी, पिछले हफ़्ते हमारी बातचीत आकर रुकी थी पंडित जी के आयुर्वेद ज्ञान की चर्चा पर। साथ ही आपनें पंडित जी के शुरुआती दिनों के बारे में बताया था। आज बातचीत हम शुरु करते हैं उस मोड़ से जहाँ पंडित जी मुंबई आ पहुँचते हैं। हमने सुना है कि पंडित जी ३० वर्ष की आयु में बम्बई आये थे भगवती चरण वर्मा के साथ। यह बताइए कि इससे पहले उनकी क्या क्या उपलब्धियाँ थी बतौर कवि और साहित्यिक। बम्बई आकर फ़िल्म जगत से जुड़ना क्यों ज़रूरी हो गया? लावण्या जी -...

मनमोर हुआ मतवाला किसने जादू डाला....सुर्रैया के लिए प्रेम वो जादू था जो मन से कभी नहीं उतरा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 586/2010/286 न मस्कार! रविवार की शाम और 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर एक नई सप्ताह का आग़ाज़। दोस्तों नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है इस महफ़िल में। इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल रोशन है उस गायिका-अभिनेत्री के गाये हुए गीतों से जिन्हें हम जानते हैं सुरैया के नाम से। इस शृंखला के पहले हिस्से में पाँच गानें ४० के दशक के सुनने के बाद, आइए आज क़दम रखते हैं ५० के दशक में। सुरैया की ज़िंदगी का एक अध्याय रहे हैं अभिनेता देव आनंद। सुरैया और देव साहब का प्रेम-संबंध इण्डस्ट्री में चर्चा का विषय बन गया था। सुरैया पर केन्द्रित कोई भी चर्चा देव साहब के ज़िक्र के बिना समाप्त नहीं हो सकती। क्या हुआ था कि वे दोनों मिल ना सके, एक दूजे का हमसफ़र बन ना सके। आइए आज देव साहब की किताब 'रोमांसिंग् विद् लाइफ़' से कुछ अंश यहाँ पेश करें। देव साहब कहते हैं, "मैं सातवें आसमान पर उड़ रहा था क्योंकि हम दोनों अब एन्गेज हो चुके थे। मैं उसे पाना चाहता था, ज़्यादा, और भी ज़्यादा, लेकिन फिर मुझे उसकी तरफ़ से कोई आवाज़ नहीं आई। हमारी फ़िल्मों की शूटिंग् भी ख़त्म हो गई, और ...

तुम्हे बांधने के लिए मेरे पास और क्या है मेरा प्रेम है....पंडित नरेद्र शर्मा की साहित्यिक उपलब्धियों से कुछ कम नहीं उनका फ़िल्मी योगदान भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 521/2010/221 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के इस नये सप्ताह में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। हिंदी साहित्य की अगर हम बात करें तो हमारे देश ने एक से एक महान साहित्यकारों को जन्म दिया है। ये वो साहित्यकार हैं जिनकी कलम ने समूचे जगत को बेशकीमती साहित्य प्रदान किया हैं। इन साहित्यकारों में से कई साहित्यकार ऐसे हैं जिन्होंने ना केवल अपने कलम से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है, बल्कि अपने कलम के जादू से हिंदी फ़िल्म संगीत जगत को कुछ ऐसे नायाब गीत भी दिए हैं कि जिन्हें पा कर यह फ़िल्मी जगत धन्य हो गया है। ऐसे स्तरीय प्रतिभावान साहित्यकारों के लिखे गीतों ने फ़िल्म संगीत को कम ही सही, लेकिन एक बहुत ऊँचे स्तर तक पहुँचाया है। आज से हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर शुरु कर रहे हैं कुछ ऐसे ही हिंदी भाषा के साहित्यकारों के फ़िल्मों के लिए लिखे हुए गीतों से सजी हमारी नई लघु शृंखला 'दिल की कलम से'। इस शृंखला में हम ना केवल इन साहित्यकारों के लिखे गीत आपको सुनवाएँगे, बल्कि इन महान प्रतिभाओं के जीवन से जुड़ी कुछ बातें भी बताएँगे जिन्हें फ़िल्मी गीतकार के रूप में पाना...

ई मेल के बहाने यादों के खजाने - जब माँ दुर्गा के विविध रूपों से मिलवाया लावण्या जी ने

'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष - ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' के साथ हम हाज़िर हैं। जैसा कि नवरात्री और दुर्गा पूजा की धूम मची हुई है चारों तरफ़, और आज है महानवमी। यानी कि नवरात्री की अंतिम रात्री और दुर्गा पूजा का भी अंतिम दिन। कल विजयादशमी के दिन दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन से यह उत्सव सम्पन्न होता है। तो क्यों ना आज इस अंक में हम माता रानी की आराधना करें। दोस्तों, हमने महान कवि, दार्शनिक और गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह जी से सम्पर्क किया कि वो अपने पिताजी के बारे में हमें कुछ बताएँ जिन्हें हम अपने पाठकों के साथ बाँट सकें। तब लावण्या जी ने ही यह सुझाव दिया कि क्यों ना नवरात्री के पावन उपलक्ष्य पर पंडित जी द्वारा संयोजित देवी माँ के कुछ भजन प्रस्तुत किए जाएँ। लावण्या जी के हम आभारी हैं कि उन्होंने हमारे इस निवेदन को स्वीकारा और ईमेल के माध्यम से हमें माँ दुर्गा के विविध रूपों के बारे में लिख भेजा और साथ ही पंडित जी के भजनों के बारे में बताया। तो आइए अब पढ़ते हैं लावण्या जी का ईमेल। ********************** ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिक...

श्याम मुरली मनोहर बजाओ....लता के स्वरों में पंडित नरेंद्र शर्मा का लिखा ये भजन आज लगभग भुला सा दिया गया है

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 489/2010/189 ल ता मंगेशकर के गाए दुर्लभ गीतों की इस शृंखला में आज के लिए हमने जिस गीत को चुना है, वह है १९५१ की फ़िल्म 'नंदकिशोर' का। यह एक धार्मिक फ़िल्म थी और धार्मिक फ़िल्मों के गानें अगर भूले बिसरे बन जाएँ तो उसमें बहुत ज़्यादा हैरत की बात नहीं है। कुछ गिने चुने धार्मिक फ़िल्मों को अगर अलग रखें तो ज़्यादातर इस जौनर की फ़िल्में ही बॊक्स ऒफ़िस पर ठण्डी ही रही और इन फ़िल्मों के गानें भी ज़्यादा सुनाई नहीं दिए। 'नंद किशोर' भी एक ऐसी ही फ़िल्म है जिसमें युं तो बेहद सुरीली मीठे गानें थे, लेकिन अफ़सोस कि ये गानें सही तरीक़े से लोगों तक पहुँच ना सके। नलिनी जयवन्त, दुर्गा खोटे और सुमती गुप्ते अभिनीत इस फ़िल्म में संगीत था स्नेहल भाटकर का तथा शुद्ध हिंदी में ये गानें लिखे पंडित नरेन्द्र शर्मा ने। इस फ़िल्म से जो कृष्ण भजन आपको आज हम सुनवा रहे हैं, उसके बोल हैं "श्याम मुरली मनोहर बजाओ"। युं तो ४० के दशक में स्नेहल भाटकर को सामाजिक फ़िल्मों में संगीत देने का अवसर मिला था, लेकिन ५० के दशक के शुरुआत से ही माइथोलॊजिकल फ़िल्मों के लिए वो अनुबन्धित ...

मेरी प्यास हो न हो जग को...मैं प्यासा निर्झर हूँ...- कवि गीतकार पंडित नरेंद्र शर्मा जी की याद में

महान कवि और गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा जी को उनकी पुण्यतिथि पर याद कर रही है सुपुत्री लावण्य शाह - काव्य सँग्रह "प्यासा ~ निर्झर" की शीर्ष कविता मेँ कवि नरेँद्र कहते हैँ- "मेरे सिवा और भी कुछ है, जिस पर मैँ निर्भर हूँ मेरी प्यास हो ना हो जग को, मैँ,प्यासा निर्झर हूँ" हमारे परिवार के "ज्योति -कलश" मेरे पापा और फिल्म "भाभी की चूडीयाँ " फिल्म के गीत मेँ,"ज्योति कलश छलके" शब्द भी उन्हीँ के लिखे हुए हैँ जिसे स्वर साम्राज्ञी लता दीदी ने भूपाली राग मेँ गा कर फिल्मोँ के सँगीत मेँ साहित्य का,सुवर्ण सा चमकता पृष्ठ जोड दिया !"यही हैँ मेरे लिये पापा"! हमारे परिवार के सूर्य ! जिनसे हमेँ ज्ञान, भारतीय वाँग्मय, साहित्य,कला,संगीत,कविता तथा शिष्टाचार के साथ इन्सानियत का बोध पाठ भी सहजता से मिला- ये उन के व्यक्तित्त्व का सूर्य ही था जिसका प्रभामँडल "ज्योति कलश" की भाँति, उर्जा स्त्रोत बना हमेँ सीँचता रहा - मेरे पापा उत्तर भारत, खुर्जा ,जिल्ला बुलँद शहर के जहाँगीरपुर गाँव के पटवारी घराने मेँ जन्मे थे.प्राँरभिक शिक्षा खुर्जा मेँ हुई...