Skip to main content

Posts

Showing posts with the label new music

उन सगीत प्रेमियों के लिए जिन्हें आज का संगीत शोर शराबा लगता है उनके लिए है "रोड टू संगम" का संगीत

ताज़ा सुर ताल ०७/ 2010 सुजॊय - सजीव, बहुत ही अफ़सोस की यह बात है कि आजकल कला को लेकर भी हमरे देश में राजनीति और साम्प्रदायिक मनमुटाव हो रही है। मेरा इशारा मुंबई में 'माइ नेम इज़ ख़ान' के प्रदर्शन के ख़िलाफ़ हो रहे विरोध की तरफ़ है। क्या आपको नहीं लगता कि फ़िल्म निर्माण एक कला है और किसी भी कला को इस तरफ़ की चीज़ों से दूर रखी जानी चाहिए? सजीव - बिल्कुल! अगर किसी को किसी के ख़िलाफ़ जाना हो तो न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया जा सकता है, ना कि उसके फ़िल्म के प्रदर्शन को रोक कर अपनी शक्ति का परिचय देनी चाहिए। ख़ैर, यह सब तो चलता ही रहेगा। अच्छा सुजॊय, हम अफ़सोस की बात कर रहे हैं तो एक अफ़सोस यह भी रहा है कि बहुत सी फ़िल्में हैं जो बेहद उत्कृष्ट होते हुए भी आम जनता तक सही रूप से नहीं पहुँच पाती है, क्योंकि फ़िल्म के निर्माता के पास उतना आर्थिक ज़ोर नहीं होता है कि अपनी फ़िल्म का ढोल पीट पीट कर प्रचार करें। कई फ़िल्में तो किसी थिएटर पर भी नहीं लगती, बल्कि सिर्फ़ फ़िल्म महोत्सवों में ही दिखाई जाती है। ऐसे में फ़िल्म लोगों तक नहीं पहुँचती है और उनका संगीत भी गुमनामी के अंधेरे में खो जाता