स्वरगोष्ठी – 158 में आज फाल्गुनी परिवेश में राग काफी के विविध रंग ‘लला तुमसे को खेले होली, तुम तो करत बरजोरी...’ फाल्गुनी परिवेश में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, पिछली पाँच कड़ियों से हम बसन्त ऋतु के मदमाते रागों पर चर्चा कर रहे हैं और फाल्गुनी परिवेश के अनुकूल गायन-वादन का आनन्द ले रहे हैं। फाल्गुन मास में शीत ऋतु का क्रमशः अवसान और ग्रीष्म ऋतु की आगमन होता है। यह परिवेश उल्लास और श्रृंगार भाव से परिपूर्ण होता है। प्रकृति में भी परिवर्तन परिलक्षित होने लगता है। रस-रंग से परिपूर्ण फाल्गुनी परिवेश का एक प्रमुख राग काफी होता है। स्वरों के माध्यम से फाल्गुनी परिवेश, विशेष रूप से श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति के लिए राग काफी सबसे उपयुक्त राग है। पिछले अंकों में हमने इस राग में ठुमरी, टप्पा, खयाल, तराना और भजन प्रस्तुत किया था। राग, रस और रगों का पर्व होली अब मात्र एक सप्ताह की दूरी पर है, अतः आज के अंक में हम आपसे राग...