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उत्पत्ति से स्वराज के विहान तक - भारतीय सिने संगीत का सफर

पुस्तक परिचय  कारवाँ सिने-संगीत का : एक परिचय भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के स्तम्भ कार सुजॉय चटर्जी ने अपने आठ वर्षों के प्रयास से स्वतंत्रता-पूर्व अवधि (1931 से 1947 तक) की फ़िल्म - संगीत की यात्रा को एक पुस्तक के  रूप में प्रकाशित किया है। प्रस्तुत है इसी पुस्तक की भूमिका।   फ़ि ल्म-संगीत का सुनहरा दौर 40 के दशक के आख़िर भाग से लेकर 70 के दशक के अन्तिम भाग तक को माना जाता है। और आज आम जनता से उनके मनपसन्द गीतों के बारे में अगर पूछा जाये तो वो भी इन्हीं दशकों के गीतों की तरफ़ ही ज़्यादातर इशारा करते हुए पाए जाते हैं। लेकिन इस सुनहरे दौर से पहले भी तो एक दौर था जिसे आज हम लगभग भुला चुके हैं। नई पीढ़ी के पास उस दौर के फ़िल्मों, गीतों और कलाकारों के बारे में बहुत कम ही जानकारी उपलब्ध हैं। अफ़सोस की बात है कि जिन लोगों ने फ़िल्म-संगीत की नीव रखी, जिनकी उँगलियाँ थामे फ़िल्म-संगीत ने चलना सीखा और अपनी अलग पहचान बनाई, उन्हें हम आज भूलते जा रहे हैं, जब कि सच्चाई यह है कि हमें अपनी जड़ों, अपने पूर्वजों के कार्य...