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एक गीत सौ अफ़साने || एपिसोड 01 || घूँघट की आड़ से दिलबर का

एक गीत सौ अफ़साने की पहली कड़ी में आज चर्चा फिल्म "हम हैं राही प्यार के" से सुपर हिट गीत "घूँघट की आड़ से दिलबर का" की  Ek Geet Sau Afsane explores the interesting unknown and unheard back stories of a Song. Every song has its own journey, and every new episode of this program is an attempt to understand the process behind making a song. with program head Sangya Tandon, her dedicated team of podcasters are here to tell these insightful stories that went behind in the process of making a song, enjoy. आप हमारे इस पॉडकास्ट को इन पॉडकास्ट साईटस पर भी सुन सकते हैं  Spotify Amazon music   Google Podcasts Apple Podcasts Gaana JioSaavn हम से जुड़ सकते हैं - facebook  instagram  YouTube  Hope you like this initiative, give us your feedback on radioplaybackdotin@gmail.com

चित्रकथा - 11: 1997 की तीन फ़िल्मों में तीसरे लिंग का सकारात्मक चित्रण

अंक - 11 1997 की तीन फ़िल्मों में तीसरे लिंग का सकारात्मक चित्रण “ अपने देस में हम हैं परदेसी कोई ना पहचाने... ” ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं। बीसवीं सदी के चौथे दशक से सवाक् फ़िल्मों की जो परम्परा शुरु हुई थी, वह आज तक जारी है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती ही चली जा रही है। और हमारे यहाँ सिनेमा के साथ-साथ सिने-संगीत भी ताल से ताल मिला कर फलती-फूलती चली आई है। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें बातें होंगी चित्रपट की और चित्रपट-संगीत की। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विषयों से सुसज्जित इस पाठ्य स्तंभ में आपका हार्दिक स्वागत है।  हिन्दी फ़िल्मों में तीसरे लिंग का चित्रण दशकों से होता आया है। अफ़सोस की बात है कि ऐसे चरित्रों को सस्ती कॉमेडी के लिए प्रयोग में लाये जाते हैं या फिर घृणा की नज़रों से देखा जाता है। बार-बार वही घिसा-पिटा रूढ़ीबद्ध

'मेरी आशिक़ी अब तुम ही हो...' - क्यों फ़िल्म से हटने वाला था यह ब्लॉकबस्टर गीत?

एक गीत सौ कहानियाँ - 64   'मेरी आशिक़ी अब तुम ही हो...'   रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 64-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म ’आशिक़ी 2’ के ब्लॉकबस्टर गीत "तुम ही हो, अब तुम ही हो" के बारे में जिसे अरिजीत सिंह ने गाया था।

रब्बा लक़ बरसा.... अपनी फ़िल्म "कजरारे" के लिए इसी किस्मत की माँग कर रहे हैं हिमेश भाई

ताज़ा सुर ताल २१/२०१० सुजॊय - 'ताज़ा सुर ताल' की एक और ताज़े अंक के साथ हम हाज़िर हैं। विश्व दीपक जी, इस शुक्रवार को 'राजनीति' प्रदर्शित हो चुकी हैं, और फ़िल्म की ओपनिंग अच्छी रही है ऐसा सुनने में आया है, हालाँकि मैंने यह फ़िल्म अभी तक देखी नहीं है। 'काइट्स' को आशानुरूप सफलता ना मिलने के बाद अब देखना है कि 'राजनीति' को दर्शक किस तरह से ग्रहण करते हैं। ख़ैर, यह बताइए आज हम किस फ़िल्म के संगीत की चर्चा करने जा रहे हैं। विश्व दीपक - आज हम सुनेंगे आने वाली फ़िल्म 'कजरारे' के गानें। सुजॊय - यानी कि हिमेश इज़ बैक! विश्व दीपक - बिल्कुल! पिछले साल 'रेडियो - लव ऑन एयर' के बाद इस साल का उनका यह पहला क़दम है। 'रेडियो' के गानें भले ही पसंद किए गए हों, लेकिन फ़िल्म को कुछ ख़ास सफलता नहीं मिली थी। देखते हैं कि क्या हिमेश फिर एक बार कमर कस कर मैदान में उतरे हैं! सुजॊय - 'कजरारे' को पूजा भट्ट ने निर्देशित किया है, जिसके निर्माता हैं भूषण कुमार और जॉनी बक्शी। फ़िल्म के नायक हैं, जी हाँ, हिमेश रेशम्मिया, और उनके साथ हैं मोना लायज़ा, अमृ

खुदाया तूने कैसे ये जहां सारा बना डाला.....गुलाम अली की मार्फ़त पूछ रहे हैं आनंद बख्शी

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #३७ दि शा जी की पसंद की दूसरी गज़ल लेकर आज हाज़िर हैं हम। आज के अंक में जो गज़ल हम आप सबको सुनवाने जा रहे हैं वह वास्तव में तो एक फिल्म से ली हुई है लेकिन हमारे आज के फ़नकार ने इस गज़ल को मंच से इतनी बार पेश किया है कि लोग अब इसे गैर-फ़िल्मी गज़ल मानने लगे हैं। इस गज़ल की गुत्थी इतनी उलझी हुई है कि एकबारगी तो हमें भरोसा हीं नहीं हुआ कि इसे माननीय अनु मलिक साहब ने संगीतबद्ध किया होगा। फिर हमने अंतर्जाल की खाक छान दी ताकि हमें वास्तविक संगीतकार की जानकारी मिल जाए। ज्यादातर जगहों पर अनु मलिक का हीं नाम था ,लेकिन कुछ लोग अब भी यह दावा करते हैं कि इसे गुलाम अली(हमारे आज के फ़नकार) ने खुद हीं संगीतबद्ध किया है। वैसे हमारी खोज को तब विराम मिला जब गुलाम अली साहब का एक साक्षात्कार हमारे हाथ लगा। उन्होंने उस साक्षात्कार में स्वीकार किया है कि इस गज़ल में संगीत अनु मलिक का हीं है। स्क्रीन इंडिया के एक इंटरव्यू में उनसे जब यह पूछा गया कि अनु मलिक का कहना है कि महेश भट्ट की फ़िल्म "आवारगी" की एक गज़ल "चमकते चाँद को टूटा हुआ तारा बना बैठा" को उन्होंने हीं कम्पोज़

मछलियाँ पकड़ने का शौकीन भी था वो सुरों का चितेरा

( पिछले अंक से आगे ...) चाहें कोई पिछली पीढ़ी का श्रोता हो या आज की पीढ़ी का युवा वर्ग हर कोई नौशाद के संगीत पर झूमता है। ज़रा कुछ गीतों पर नजर डालिये... मधुबाला का 'प्यार किया तो डरना क्या' जिस पर आज के दौर में रीमिक्स बनाया जाता है... और जब दिलीप कुमार का "नैन लड़ जई हैं तो मनवा मा.." सुन ले तो कदम अपने आप थिरकने लगते हैं। आज ज्यादातर लोग उस दौर से ताल्लुक नहीं रखते पर फिर भी लगता है कि नौशाद फिल्मों में संगीत नहीं देते थे...बल्कि जादू बिखेरते थे। उनके संगीत में लोक संगीत की झलक मिलती है। लखनऊ में जन्में १८ वर्षीय बालक से जब उसके पिता ने घर और संगीत में से एक को चुनने को कहा तब उसने संगीत को चुना और खूबसूरत सपने और कड़वी सच्चाइयों वाले मुम्बई शहर जा पहुँचा। आँखों में हजारों सपने लिये फुटपाथ को घर बनाये इस शानदार संगीतकार ने सैकड़ों धुनें तैयार कर दी। यदि फिल्मों पर गौर करें तो महल, बैजू बावरा, मदर इंडिया, मुगल-ए-आज़म, दर्द, मेला, संघर्ष, राम और श्याम, मेरे महबूब-जैसी न जाने कितनी ही फिल्में हैं। नौशाद की बात करें और लता व रफी की बात न हो तो क्या फायदा। मुगल-ए-आज़म