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बेदर्द मैंने तुझको भुलाया नहीं हनोज़... कुछ इस तरह जोश की जिंदादिली को स्वर दिया मेहदी हसन ने

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #८६ दै निक जीवन में आपका ऐसे इंसानों से ज़रूर पाला पड़ा होगा जिनके बारे में लोग दो तरह के ख्यालात रखते हैं, मतलब कि कुछ लोग उन्हें नितांत हीं शरीफ़ और वफ़ादार मानते हैं तो वहीं दूसरे लोगों की नज़र में उनसे बड़ा अवसरवादी कोई नहीं। हमारे आज के शायर की हालत भी कुछ ऐसी हीं है। कहीं कुछ लोग उन्हें राष्ट्रवादी मानते हैं तो कुछ उन्हें "छिपकली की तरह रंग बदलने वाला" छद्म-राष्ट्रवादी। उनका चरित्र-चित्रण करने के लिए जहाँ एक और "अली सरदार जाफरी" का "कहकशां"(धारावाहिक) है तो वहीं "प्रकाश पंडित" की "जोश और उनकी शायरी"(पुस्तक)। जी हाँ हम जोश की हीं बात कर रहे हैं। जोश अकेले ऐसे शायर हैं जिनकी अच्छाईयाँ और बुराईयाँ बराबर-मात्रा में अंतर्जाल पर उपलब्ध है, इसलिए समझ नहीं आ रहा कि मैं किसका पक्ष लूँ। अगर "कहकशां" देखकर कोई धारणा निर्धारित करनी हो तब तो जोश ने जो भी किया वह समय की माँग थी। उनके "पाकिस्तान-पलायन" के पीछे उनकी मजबूरी के अलावा कुछ और न था। जान से प्यारा "देश" उन्हें बस इसलिए छोड़ना पड़ा क्योंकि उन

ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, वहशत-ए-दिल क्या करूँ...मजाज़ के मिजाज को समझने की कोशिश की तलत महमूद ने

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #८५ कु छ शायर ऐसे होते है, जो पहली मर्तबा में हीं आपके दिल-औ-दिमाग को झंकझोर कर रख देते हैं। इन्हें पढना या सुनना किसी रोमांच से कम नहीं होता। आज हम जिन शायर की नज़्म लेकर इस महफ़िल में दाखिल हुए है, उनका असर भी कुछ ऐसा हीं है। मैंने जब इनको पहली बार सुना, तब हीं समझ गया था कि ये मेरे दिमाग से जल्द नहीं उतरने वाले। दर-असल हुआ यूँ कि एक-दिन मैं यू-ट्युब पर ऐसे हीं घूमते-घूमते अली सरदार ज़ाफ़री साहब के "कहकशां" तक पहुँच गया। वहाँ पर कुछ नामीगिरामी शायरों की गज़लें "जगजीत सिंह" जी की आवाज़ में सुनने को मिलीं। फिर मालूम चला कि "कहकशां" बस गज़लों का एक एलबम या जमावड़ा नहीं है, बल्कि यह तो एक धारावाहिक है जिसमें छह जानेमाने शायरों की ज़िंदगियाँ समेटी गई हैं। इन शायरों में से जिनपर मेरी सबसे पहले नज़र गई, वो थे "मजाज़ लखनवी"। इनपर सात या आठ कड़ियाँ मौजूद थीं(हैं)..मैं एक हीं बार में सब के सब देख गया.. और फिर आगे जो हुआ.... आज का आलेख, आज की महफ़िल-ए-गज़ल उसी का एक प्रमाण-मात्र है। मजाज़ के बारे में मैं खुद कुछ कहूँ, इससे अच्छा मैं यह समझत