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वो सुबह कभी तो आएगी...उम्मीद के दीयों को जला के रखें, खय्याम के सुरों में

लता मंगेशकर ने एक बार राज कपूर को एक तानपूरा भेंट किया था। ख़ैयाम के साथ हुई बैठक में राज कपूर ने वही तानपूरा ख़ैयाम की ओर बढ़ाते हुए कुछ सुनाने का आग्रह किया। ख़ैयाम ने उस नये तानपूरा के तारों को छेड़ते हुए राग पूरिया धनाश्री की एक बन्दिश सुनाई। राज कपूर ख़ैयाम की गायकी से प्रभावित हुए और उन्हें फिल्म के शीर्षक गीत की धुन बनाने को कहा। ख़ैयाम इस फिल्म का संगीत तैयार करने के लिए अत्यन्त उत्सुक थे। राज कपूर की सहमति मिल जाने के बाद उन्होने फिल्म के शीर्षक गीत की पाँच अलग- अलग धुनें बनाईं।

ये चमन हमारा अपना है....राज कपूर की जयंती पर सुनें शैलेन्द्र -दत्ताराम रचित ये गीत

इस कथानक पर फिल्म बनवाने के पीछे नेहरू जी के दो उद्देश्य थे। मात्र एक दशक पहले स्वतंत्र देश के सरकार की न्याय व्यवस्था पर विश्वास जगाना और नेहरू जी का बच्चों के प्रति अनुराग को अभव्यक्ति देना। फिल्म के अन्तिम दृश्यों में नेहरू जी ने स्वयं काम करने की सहमति भी राज कपूर को दी थी। पूरी फिल्म बन जाने के बाद जब नेहरू जी की बारी आई तो मोरार जी देसाई ने उन्हें फिल्म में काम करने से रोका। नेहरू जी की राजनैतिक छवि के कारण अन्य लोगों ने भी उन्हें मना किया।

चाहे ज़िन्दगी से कितना भी भाग रे...सी रामचंद्र ने रचा ये गीत राज कपूर के लिए

आज हम आपको राज कपूर द्वारा अभिनीत, सी. रामचन्द्र का संगीतबद्ध और मन्ना डे का गाया यही गीत सुनवाएँगे। सी. रामचन्द्र, मुकेश की गायकी को पसन्द नहीं करते थे, इसके बावजूद राज कपूर के कारण उन्होने मुकेश को फिल्म में शामिल किया। परन्तु उन्होने मुकेश से फिल्म के हल्के-फुल्के गीत गवाये और गम्भीर गीत मन्ना डे के हिस्से में आए।

ते की मैं झूठ बोलेया...पूछा राज कपूर ने समाज से, सलिल चौधरी की धुन में

पूरी फिल्म में नायक कुछ नहीं बोलता। केवल अन्त में वह कहता है- ‘मैं थका-हारा-प्यासा पानी पीने यहाँ चला आया, और सब लोग मुझे चोर समझ कर मेरे पीछे भागे, जैसे मैं कोई पागल कुत्ता हूँ। मैंने यहाँ हर तरह के लोग और चेहरे देखे। मुझ गँवार को तुमसे यही शिक्षा दी कि चोरी किये बिना कोई बड़ा आदमी नहीं बन सकता... क्या सचमुच चोरी किये बिना कोई बड़ा आदमी नहीं बन सकता?’

हम प्यार करेंगे....कहा राज कपूर के लिए साथ आये हेमंत कुमार और मदन मोहन साहब ने

यह एकमात्र गीत है, जिसमें हेमन्त कुमार ने राज कपूर के लिए स्वर दिया और ‘धुन’ राज कपूर द्वारा अभिनीत एकमात्र वह फिल्म है जिसका संगीत मदनमोहन ने दिया। इस फिल्म के बाद फिल्म संगीत के इन दोनों दिग्गजों ने राज कपूर के साथ कभी कार्य नहीं किया।

दिल को तेरी तस्वीर से...जब नौशाद ने रफ़ी साहब का पार्श्वगायन करवाया राज कपूर के लिए

मुकेश, राज कपूर के लिए पहले भी अपनी आवाज़ दे चुके थे, परन्तु फिल्म ‘अन्दाज़’ में नौशाद का प्रयोग- दिलीप कुमार के लिए मुकेश के आवाज़, की असफलता के बाद वह स्थायी रूप राज कपूर की आवाज़ बन गए। इस फिल्म में नौशाद ने राज कपूर और नरगिस के लिए एकमात्र गीत- ‘यूँ तो आपस में बिगड़ते हैं खफा होते हैं...’ रिकार्ड किया था। दुर्भाग्य से राज कपूर के हिस्से का यह एकमात्र गीत असफल रहा, जबकि दिलीप कुमार के लिए मुकेश द्वारा गाये सभी गीत हिट हुए।

ख्यालों में किसी के....रोशन और राज कपूर एक साथ आये इस मशहूर गीत में

मुम्बई में रोशन को पहला अवसर देने वाले फिल्मकार थे केदार शर्मा, जिन्होंने अपनी फिल्म 'नेकी और बदी' में उन्हें संगीत निर्देशन के लिए अनुबन्धित किया। दुर्भाग्य से यह फिल्म चली नहीं और रोशन का बेहतर संगीत भी अनसुना रह गया। रोशन स्वभाव से अन्तर्मुखी थे। पहली फिल्म 'नेकी और बदी' की असफलता से रोशन चिन्तित रहा करते थे, तभी केदार शर्मा ने अपनी अगली फिल्म 'बावरे नैन' के संगीत का दायित्व उन्हें सौंपा। इस फिल्म के नायक राज कपूर थे। रोशन ने राज कपूर की अभिनय शैली और फिल्म में उनके चरित्र का सूक्ष्म अध्ययन किया और उसी के अनुकूल गीतों की धुनें बनाई। इस बार फिल्म भी हिट हुई और रोशन का संगीत भी। आज भी 'बावरे नैन' एक बड़ी संगीतमय फिल्म के रूप में याद की जाती है।

बहारों ने जिसे छेड़ा है....वही तराना ज्ञानदत्त का रचा साजे दिल बना राज कपूर का

१९४९ में प्रदर्शित फिल्म ‘सुनहरे दिन’ का निर्माण जगत पिक्चर्स ने किया था, जिसके निर्देशक सतीश निगम थे। फिल्म में राज कपूर की भूमिका एक रेडियो गायक की थी। अपने श्रोताओं के बीच यह गायक चरित्र बेहद लोकप्रिय है। इस फिल्म का संगीत वर्तमान में लगभग विस्मृत संगीतकार ज्ञानदत्त ने दिया था।

आई गोरी राधिका, ब्रज में बलखाती...नीनू मजूमदार की धुन और राज कपूर की स्मरण शक्ति

१९७८ में राज कपूर द्वारा निर्मित-निर्देशित फिल्म ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ प्रदर्शित हुई थी। इस फिल्म का एक गीत ‘यशोमति मैया से बोले नन्दलाला...’ बेहद लोकप्रिय पहले भी था और आज भी है। इसके गीतकार नरेन्द्र शर्मा और संगीतकार लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल थे। इस सुमधुर गीत की धुन के लिए लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल को भरपूर श्रेय दिया गया था। बहुत कम लोगों का ध्यान इस तथ्य की ओर गया होगा कि इस मोहक गीत की धुन के कारक स्वयं राज कपूर ही थे।

जिन्दा हूँ इस तरह...राज कपूर के पहले संगीत निर्देशक राम गांगुली ने रचा था ये दर्द भरा नग्मा

राज कपूर के फिल्म-निर्माण की लालसा का आरम्भ फिल्म ‘आग’ से हुआ था, जिसके संगीतकार राम गांगुली थे। दरअसल यह पहली फिल्म राज कपूर के भावी फिल्मी जीवन का एक घोषणा-पत्र था। ठीक उसी प्रकार, जैसे लोकतन्त्र में चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी अपने दल का घोषणा-पत्र जनता के सामने प्रस्तुत करता है। ‘आग’ में जो मुद्दे लिये गए थे, बाद की फिल्मों में उन्हीं मुद्दों का विस्तार था, और ‘आग’ की चरम परिणति ‘मेरा नाम जोकर’ में हम देखते हैं।