Skip to main content

Posts

Showing posts with the label kavitakosh

महफ़िल-ए-ग़ज़ल की १००वीं कड़ी में जगजीत सिंह लेकर आए हैं राजेन्द्रनाथ रहबर की "तेरे खुशबू में बसे खत"

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #१०० हं स ले 'रहबर` वो आये हैं, रोने को तो उम्र पड़ी है राजेन्द्रनाथ ’रहबर’ साहब के इस शेर की हीं तरह हम भी आपको खुश होने और खुशियाँ मनाने का न्यौता दे रहे हैं। जी हाँ, आज बात हीं कुछ ऐसी है। दर-असल आज महफ़िल-ए-ग़ज़ल उस मुकाम पर पहुँच गई है, जिसके बारे में हमने कभी भी सोचा नहीं था। जब हमने अपनी इस महफ़िल की नींव डाली थी, तब हमारा लक्ष्य बस यही था कि "आवाज़" पर "गीतों" के साथ-साथ "ग़ज़लों" को भी पेश किया जाए.. ग़ज़लों को भी एक मंच मुहैया कराया जाए.. यह मंच कितने दिनों तक बना रहेगा, वह हमारी मेहनत और आप सभी पाठकों/श्रोताओं के प्रोत्साहन पर निर्भर होना था। हमें आप पर पूरा भरोसा था, लेकिन अपनी मेहनत पर? शायद नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि महफ़िल की शुरूआत करने से पहले मैं ग़ज़लों का उतना बड़ा मुरीद नहीं था, जैसा अब हो चुका हूँ। हाँ, मैं ग़ज़लें सुनता जरूर था, लेकिन कभी भी ग़ज़लगो या शायर के बारे में पता करने की कोशिश नहीं की थी। इसलिए जब शुरूआत में सजीव जी ने मुझे यह जिम्मेवारी सौंपी तो मैंने उनसे कहा भी था कि मुझे इन सबके बारे में कुछ भी जानकारी न...