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हम कलाकार भी फ्रन्ट लाइन सेवा कर्मी हैं || Kavita Seth || Ek Mulakaat Zaroori hai || Sajeev Sarathie

  एक रूहानी आवाज जिसकी महक बरेली से उठी तो मुंबई फिल्म जगत पर ऐसी छाई कि देश विदेश के संगीत प्रेमियों के लिए सूफी संगीत की पहचान बन गई। #एकतारा का सूफी अंदाज हो, या फिर #तुम्ही_हो_बंधु  जैसा क्लब नंबर हो, शास्त्रीय रंग का #मोरा_पिया हो फिर लोक शैली का #प्रेम_में_तोहरे, #महफ़िल_बर्खास्त_हुई में ग़ज़ल की रूमानियत हो फिर उम्मीद और प्रेरणा से भरने वाली #जीते_हैं_चल की सशक्त अदायगी हो, गायिका कविता सेठ की आवाज में हर् गीत को उसका अलहदा मुकाम हासिल हुआ है, मिलिये आज कविता सेठ से, एक मुलाकात जरूरी है में सजीव सारथी के साथ. तकनीकी सहायता प्रदान की है इस एपिसोड के लिए संज्ञा टंडन ने   सुनिए  YouTube  पर  Spotify Amazon music   Google Podcasts Apple Podcasts Gaana JioSaavn हम से जुड़ सकते हैं - facebook  instagram  YouTube  To Join the Ek Mulkaat Zaroori Hai  team, please write to sajeevsarathie@gmail.com  Hope you like this initiative, give us your feedback on radioplaybackdotin@gmail.com

"इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत...”, बटालवी के इस कविता की क्यों ज़रूरत आन पड़ी ’उड़ता पंजाब’ में?

एक गीत सौ कहानियाँ - 99   ' इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत... '   रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों,  हम  रोज़ाना  रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'|  इसकी 99-वीं कड़ी में आज जानिए 2016 की फ़िल्म ’उड़ता पंजाब’ के मशहूर गीत "इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत ग़ुम है

जुगनी उडी गुलाबी पंख लेकर इस होली पर

ताज़ा सुर ताल - 2014 - 10 दोस्तों इस रविवार को दुनिया भर में मनाया गया महिला दिवस. आज जो दो गीत हम आपके लिए चुनकर लेकर आये हैं वो भी नारी शक्ति के दो मुक्तलिफ़ रूप दर्शाने वाले हैं. पहला गीत है गुलाब गैंग  का... कलगी हरी है, चोंच गुलाबी, पूँछ है उसकी पीली हाय, रंग से हुई रंगीली रे चिड़िया, रंग से हुई रंगीली  ... नेहा सरफ के लिखे इस खूबसूरत गीत में गौर कीजिये कि उन्होंने इस चिड़िया की चोंच गुलाबी  रंगी है, यही बदलते समय में नारी की हुंकार को दर्शाता है. वो अब दबी कुचली अबला बन कर नहीं बल्कि एक सबल और निर्भय पहचान के साथ अपनी जिंदगी संवारना चाहती है. शौमिक सेन के स्वरबद्ध इस गीत को आवाज़ दी है कौशकी चक्रवर्ति ने. गुलाब गैंग  में ९० के दशक की दो सुंदरियाँ, माधुरी दीक्षित और जूही चावला पहली बार एक साथ नज़र आयेगीं. फिल्म कैसी है ये आप देखकर बताएं, फिलहाल सुनिए ये गीत जो इस साल होली को एक नए रंग में रंगने वाली है.  ) कितने काफिले समय के/  धूल फांकते गुजरे हैं/  मेरी छाती से होकर/  मटमैली चुनर सी  / बिछी रही आसमां पे मैं... कोख में ही दबा दी गयी/  कितनी किलकारियां मेरी/  नरक का द्वार,

सरहदों की दूरियां संगीत से पाटते अली ज़फर और अमित त्रिवेदी

ताज़ा सुर ताल - 09 -2014 ताज़ा सुर ताल के एक और नए एपिसोड में आप सब का स्वागत है. आज हम आपको मिलवा रहे हैं सरहद पार से आये एक जबरदस्त फनकार से जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. पाकिस्तान के पॉप संशेशन अली ज़फर न सिर्फ एक बहतरीन गायक हैं बल्कि एक अच्छे अभिनेता, संगीतकार, और गीतकार भी हैं. आने वाली फिल्म टोटल सयापा  में अली इन सभी भूमिकाओं में नज़र आयेगें. बतौर गीतकार इस फिल्म में उन्होंने आशा  नाम का गीत लिखा है, फिल्म का काम पूरी तरह खत्म होने के बाद फिल्म के अपने साथी किरदार को जेहन में रख कर लिखा गया ये गीत, फिल्म का हिस्सा नहीं है पर एल्बम में अवश्य शामिल है. वैसे इस एल्बम में जिसे पूरी तरह से अली का ही एल्बम कहा जायेगा, मात्र एक ही युगल गीत है, जिसे आज हमने चुना है आपके लिए. अकील रूबी का लिखा ये गीत सदा लुभावन अरेबिक मिजाज़ का है, जिसमें रुबाब का सुन्दर इस्तेमाल हुआ है. फरिहा परवेज हैं अली के साथ इस गीत में. नहीं मालूम  निश्चित ही एक ऐसा गीत है जिसे आप बार बार सुनना चाहेगें.  आज के एपिसोड का दूसरा गीत है, मेरे बेहद पसंदीदा संगीतकार अमित त्रिवेदी का. दोस्तों अक्सर हम लोगों

सुरीला जादू चला कर दिल लूट गया "लुटेरा"

अ पने पूरे शबाब पर चल रहे संगीतकार अमित त्रिवेदी एक बार फिर हाज़िर हैं, एक के बाद एक अपने स्वाभाविक और विशिष्ट शैली के संगीत की बहार लेकर. पिछले सप्ताह हमने जिक्र किया घनचक्कर  का, आज भी अमित हैं अपनी नई एल्बम लूटेरा  के साथ, इस बार उनके जोडीदार हैं उनके सबसे पुराने साथ अमिताभ भट्टाचार्य. अमिताभ बेशक इन दिनों सभी बड़े संगीतकारों के साथ सफल जुगलबंदी कर रहे हैं पर जब भी उनका साथ अमित के साथ जुड़ता है तो उनमें भी एक नया जोश, एक नई रवानगी आ जाती है.  लूटेरा  की कहानी ५० के दशक की है, और यहाँ संगीत में भी वही पुराने दिनों की महक आपको मिलेगी. पहले गीत संवार लूँ  को ही लें. गीत के शब्द, धुन और गायिकी सभी सुनहरे पुराने दिनों की तरह श्रोताओं के बहा ले जाते हैं. गीत के संयोजन को भी पुराने दिनों की तरह लाईव ओर्केस्ट्रा के साथ हुआ है. मोनाली की आवाज़ का सुरीलापन भी गीत को और निखार देता है. आपको याद होगा मोनाली इंडियन आईडल में एक जबरदस्त प्रतिभागी बनकर उभरी थी, वो जीत तो नहीं पायी थी मगर प्रीतम के लिए ख्वाब देखे (रेस) गाकर उन्होंने पार्श्वगायन की दुनिया में कदम रखा. अमित ने इससे पहले उन्हें अगा

रिचा शर्मा के 'लेजी लेड' ताने से बिदके 'घनचक्कर'

आ मिर  और नो वन किल्ल्ड जस्सिका  के बाद एक बार फिर निर्देशक राजकुमार गुप्ता ने अपनी नई फिल्म के संगीत का जिम्मा भी जबरदस्त प्रतिभा के धनी अमित त्रिवेदी को सौंपा है. इमरान हाश्मी और विद्या बालन के अभिनय से सजी ये फिल्म है -घनचक्कर . फिल्म तो दिलचस्प लग रही है, आईये आज तफ्तीश करें कि इस फिल्म के संगीत एल्बम में श्रोताओं के लिए क्या कुछ नया है.  पहला गीत लेजी लेड अपने आरंभिक नोट से ही श्रोताओं को अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है. संगीत संयोजन उत्कृष्ट है, खासकर बीच बीच में जो पंजाबी शब्दों के लाजवाब तडके दिए गए हैं वो तो कमाल ही हैं. बीट्स भी परफेक्ट है. अमिताभ के बोलों में नयापन भी है और पर्याप्त चुलबुलापन भी. पर तुरुप का इक्का है रिचा शर्मा की आवाज़. उनकी आवाज़ और गायकी ने गीत को एक अलग ही मुकाम दे दिया है. एक तो उनका ये नटखट अंदाज़ अब तक लगभग अनसुना ही था, उस पर एक लंबे अंतराल से उन्हें न सुनकर अचानक इस रूप में उनकी इस अदा से रूबरू होना श्रोताओं को खूब भाएगा. निश्चित ही ये गीत न सिर्फ चार्ट्स पर तेज़ी से चढेगा वरन एक लंबे समय तक हम सब को याद रहने वाला है. बधाई पूरी टीम को.  आगे बढ़

सिनेमा के शानदार 100 बरस को अमित, स्वानंद और अमिताभ का संगीतमय सलाम

प्लेबैक वाणी -4 4 - संगीत समीक्षा - बॉम्बे टा'कीस सि नेमा के १०० साल पूरे हुए, सभी सिने प्रेमियों के लिए ये हर्ष का समय है. फिल्म इंडस्ट्री भी इस बड़े मौके को अपने ही अंदाज़ में मना या भुना रही है. १०० सालों के इस अद्भुत सफर को एक अनूठी फिल्म के माध्यम से भी दर्शाया जा रहा है. बोम्बे  टा'कीस  नाम की इस फिल्म को एक नहीं दो नहीं, पूरे चार निर्देशक मिलकर संभाल रहे हैं, जाहिर है चारों निर्देशकों की चार मुक्तलिफ़ कहानियों का संकलन होगी ये फिल्म. ये चार निर्देशक हैं ज़ोया अख्तर, करण जोहर, अनुराग कश्यप और दिबाकर बैनर्जी. अमित त्रिवेदी का है संगीत तथा गीतकार हैं स्वानंद किरकिरे और अमिताभ भट्टाचार्य. चलिए देखते हैं फिल्म की एल्बम में बॉलीवुड के कितने रंग समाये हैं.  पहला  गीत बच्चन  हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े सुपर स्टार अमिताभ बच्चन को समर्पित है...जी हाँ सही पहचाना वही जो रिश्ते में सबके बाप  हैं. शब्दों में अमिताभ भट्टाचार्य ने सरल सीधे मगर असरदार शब्दों में हिंदी फिल्मों पर बच्चन साहब के जबरदस्त प्रभाव को बखूबी बयाँ किया है. अमित की तो बात ही निराली है, गीत का संगीत संयोजन कम

दोस्ती के तागों में पिरोये नाज़ुक से ज़ज्बात -"काई पो छे"

प्लेबैक वाणी -35 - संगीत समीक्षा - काई पो छे रूठे ख्वाबों को मना लेंगें, कटी पतंगों को थामेगें, सुलझा लेंगें उलझे रिश्तों का मांजा... गिटार के पेचों से खुलता है ये गीत, सारंगी के मांजे में परवाज़ चढ़ाता है, और अमित के सुरों से जब उन्हीं के स्वर मिलते हैं तो एक सकारात्मक उर्जा का संचार होता है. स्वानंद के शब्दों में बात है रिश्तों की, दोस्ती की और जिंदगी को जीत की दहलीज तक पहुंचा देने वाले ज़ज्बे के. अमित त्रिवेदी ने दिया है श्रोताओं को एक बेशकीमती तोहफा इस गीत के माध्यम से, मुझे जो सबसे अधिक प्रभावित करती है वो है वाध्यों का उनका चुनाव, हर गीत को किन किन गहनों से सजाना है ये अमित बखूबी जानते हैं. मुझे यकीन है कि मेरी ही तरह बहुत से श्रोताओं को उनकी हर नई पेशकश का बेसब्री से इन्तेज़ार रहता है.  आज हम जिक्र कर रहे हैं  ‘ काई पो छे ’  के संगीत की. उलझे रिश्तों को सुलझाते हुए आईये आगे बढते हैं अमित के संगीतबद्ध इस एल्बम में सजे अगले गीत की तरफ. अगला गीत भी दोस्ती के इर्द गिर्द है, मिली नायर की आवाज़ में गजब की ताजगी है, जैसे शबनम के मोती हों सुनहरी धूप में लि

प्लेबैक इंडिया वाणी (२०) आइय्या , और आपकी बात-- बोल्ड थीम के अनुरूप ही बोल्ड है "आइय्या" का संगीत

संगीत समीक्षा -    आइय्या दोस्तों पिछले सप्ताह हमने बात की थी अमित त्रिवेदी के “इंग्लिश विन्गलिश” की और हमने अमित को आज का पंचम कहा था. अमित दरअसल वो कर सकते हैं जो एक श्रोता के लिहाज से शायद हम उनसे उम्मीद भी न करें. उन्होंने हमें कई बार चौंकाया है. लीजिए तैयार हो जाईये एक बार फिर हैरान होने के लिए. जी हाँ आज हम चर्चा कर रहे उनकी एक और नयी फिल्म “आइय्या” का, जिसमें वो लौटे हैं अपने प्रिय गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य के साथ. मुझे लगता है कि अमिताभ भी अमित के साथ जब मिलते हैं तो अपने श्रेष्ठ दे पाते हैं. आईये जानें की क्या है आइय्या के संगीत में आपके लिए. हाँ वैधानिक चेतावनी एक जरूरी है. दोस्तों ये संगीत ऐसा नहीं है कि आप पूरे परिवार के साथ बैठ कर सुन सकें. हाँ मगर अकेले में आप इसका भरपूर आनंद ले सकते हैं. वैसे बताना हमारा फ़र्ज़ था बाकी आप बेहतर जानते हैं. खैर बढते हैं अल्बम के पहले गीत की तरफ. ८० के डिस्को साउंड के साथ शुरू होता है “ड्रीमम वेकपम” गीत, जो जल्दी ही दक्षिण के रिदम में ढल जाता है. पारंपरिक नागास्वरम और मृदंग मिलकर एक पूरा माहौल ही रच डालते हैं. ये गीत आपको ह

अमित और स्वानंद ने रचा कुछ अलग "इंग्लिश विन्गलिश" के लिए

प्लेबैक वाणी - संगीत समीक्षा : इंग्लिश विन्गलिश  १५ वर्षों के लंबे अंतराल के बाद खूबसूरती की जिन्दा मिसाल और अभिनय के आकाश का माहताब, श्रीदेवी एक बार फिर लौट रहीं है फ़िल्मी परदे पर एक ऐसे किरदार को लेकर जो अपनी अंग्रेजी को बेहतर करने के लिए संघर्षरत है. फिल्म है  “ इंग्लिश विन्गलिश ” . आईये चर्चा करें फिल्म के संगीत की. अल्बम के संगीतकार हैं आज के दौर के पंचम अमित त्रिवेदी और गीतकार हैं स्वानंद किरकिरे. पहला गीत जो फिल्म का शीर्षक गीत भी है पूरी तरह इंग्लिश विन्गलिश अंदाज़ में ही लिखा गया है. गीत के शुरूआती नोट्स को सुनते ही आप को अंदाजा लग जाता है अमित त्रिवेदी ट्रेडमार्क का. कोरस और वोइलन के माध्यम से किसी कोल्लेज का माहौल रचा गया है. स्वानंद ने गीत में बेहद सुंदरता से हिंदी और अंग्रेजी के शब्दों के साथ खेला है. गीत की सबसे बड़ी खासियत है शिल्पा राव की आवाज़,जिसमें किरदार की सहमी सहमी खुशी और कुछ नया जानने का आश्चर्य बहुत खूब झलकता है. पुरुष गायक के लिए अमित स्वयं की जगह किसी और गायक की आवाज़ का इस्तेमाल करते तो शायद और बेहतर हो पाता.     अगले गीत में अमित की आवाज़ ला

आ बदल डाले रस्में सभी इसी बात पे.....कुछ तो बात है अमित त्रिवेदी के "आई एम्" में

Taaza Sur Taal (TST) - 12/2011 - I AM आज सोमवार की इस सुबह मुझे यानी सजीव सारथी को यहाँ देख कर हैरान न होईये, दरअसल कई कारणों से पिछले कुछ दिनों से हम ताज़ा सुर ताल नहीं पेश कर पाए और इस बीच बहुत सा संगीत ऐसा आ गया जिस पर चर्चा जरूरी थी, तो कुछ बैक लोग निकालने के इरादे से मैं आज यहाँ हूँ, आज हम बात करेंगें ओनिर की नयी फिल्म "आई ऍम" के संगीत की. दरअसल फिल्म संगीत में एक जबरदस्त बदलाव आया है. अब फिल्मों में अधिक वास्तविकता आ गयी है, तो संगीत का इस्तेमाल आम तौर पर पार्श्व संगीत के रूप में हो रहा है. यानी लिपसिंग अब लगभग खतम सी हो गयी है. और एक ट्रेंड चल पड़ा है रोक् शैली का. व्यक्तिगत तौर पर मुझे रोक् जेनर बेहद पसंद है पर अति सबकी बुरी है. खैर आई ऍम का संगीत भी यही उपरोक्त दोनों गुण मौजूद हैं. पहला गाना "बांगुर", बेहद सुन्दर विचार, समाज के बदलते आयामों का चित्रण है, एक तुलनात्मक अध्ययन है बोलों में इस गीत के और इस कारुण अवस्था से बाहर आने की दुआ भी है. आवाजें है मामे खान और कविता सेठ की. अमित त्रिवेदी के चिर परिचित अंदाज़ का है गीत जिसे सुनते हुए भीड़ भाड भरे शहर उलझनो

है जिसकी रंगत शज़र-शज़र में, खुदा वही है.. कविता सेठ ने सूफ़ियाना कलाम की रंगत हीं बदल दी है

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #१०५ इ ससे पहले कि हम आज की महफ़िल की शुरूआत करें, मैं अश्विनी जी (अश्विनी कुमार रॉय) का शुक्रिया अदा करना चाहूँगा। आपने हमें पूरी की पूरी नज़्म समझा दी। नज़्म समझकर हीं यह पता चला कि "और" कितना दर्द छुपा है "छल्ला" में जो हम भाषा न जानने के कारण महसूस नहीं कर पा रहे थे। आभार प्रकट करने के साथ-साथ हम आपसे दरख्वास्त करना चाहेंगे कि महफ़िल को अपना समझें और नियमित हो जाएँ यानि कि ग़ज़ल और शेर लेकर महफ़िल की शामों (एवं सुबहों) को रौशन करने आ जाएँ। आपसे हमें और भी बहुत कुछ सीखना है, जानना है, इसलिए उम्मीद है कि आप हमारी अपील पर गौर करेंगे। धन्यवाद! आज हम अपनी महफ़िल को उस गायिका की नज़र करने वाले हैं, जो यूँ तो अपनी सूफ़ियाना गायकी के लिए मक़बूल है, लेकिन लोगों ने उन्हें तब जाना, तब पहचाना जब उनका "इकतारा" सिद्दार्थ (सिड) को जगाने के लिए फिल्मी गानों के गलियारे में गूंज उठा। एकबारगी "इकतारा" क्या बजा, फिल्मी गानों और "पुरस्कारों" का रूख हीं मुड़ गया इनकी ओर। २००९ का ऐसा कौन-सा पुरस्कार है, ऐसा कौन-सा सम्मान है, जो इन्हें न मिल

सुर्खियों से बुनती है मकड़ी की जाली रे.. "नो वन किल्ड जेसिका" के संगीत की कमान संभाली अमित-अमिताभ ने

सुजॉय जी की अनुपस्थिति में एक बार फिर ताज़ा-सुर-ताल की बागडोर संभालने हम आ पहुँचे हैं। जैसा कि मैंने दो हफ़्ते पहले कहा था कि गानों की समीक्षा कभी मैं करूँगा तो कभी सजीव जी। मुझे "बैंड बाजा बारात" के गाने पसंद आए थे तो मैंने उनकी समीक्षा कर दी, वहीं सजीव जी को "तीस मार खां" ने अपने माया-जाल में फांस लिया तो सजीव जी उधर हो लिए। अब प्रश्न था कि इस बार किस फिल्म के गानों को अपने श्रोताओं को सुनाया जाए और ये सुनने-सुनाने का जिम्मा किसे सौंपा जाए। अच्छी बात थी कि मेरी और सजीव जी.. दोनों की राय एक हीं फिल्म के बारे में बनी और सजीव जी ने "बैटन" मुझे थमा दिया। वैसे भी क्रम के हिसाब से बारी मेरी हीं थी और "मन" के हिसाब से मैं हीं इस पर लिखना चाहता था। अब जहाँ "देव-डी" और "उड़ान" की संगीतकार-गीतकार-जोड़ी मैदान में हो, तो उन्हें निहारने और उनका सान्निध्य पाने की किसकी लालसा न होगी। आज के दौर में "अमित त्रिवेदी" एक ऐसा नाम, एक ऐसा ब्रांड बन चुके हैं, जिन्हें परिचय की कोई आवश्यकता नहीं। अगर यह कहा जाए कि इनकी सफ़लता का दर (सक्सेस

बाई दि वे, ऑन दे वे, "आयशा" से हीं कुछ सुनते-सुनाते चले जा रहे हैं जावेद साहब.. साथ में हैं अमित भी

ताज़ा सुर ताल २७/२०१० विश्व दीपक - नमस्कार दोस्तों! 'ताज़ा सुर ताल' में आज हम जिस फ़िल्म के गीतों को लेकर आए हैं, उसके बारे में तो हमने पिछली कड़ी में ही आपको बता दिया था, इसलिए बिना कोई भूमिका बाँधे आपको याद दिला दें कि आज की फ़िल्म है 'आयशा'। सुजॊय - अमित त्रिवेदी के संगीत से सजे फ़िल्म 'उड़ान' के गानें पिछले हफ़्ते हमने सुने थे, और आज की फ़िल्म 'आयशा' में भी फिर एक बार उन्ही का संगीत है। शायद अब तक हम 'उड़ान' के गीतों को सुनते नहीं थके थे कि एक और ज़बरदस्त ऐल्बम के साथ अमित हाज़िर हैं। मैं कल जब 'आयशा' के गीतों को सुन रहा था विश्व दीपक जी, मुझे ऐसा लगा कि 'देव-डी' और 'उड़ान' से ज़्यादा वरायटी 'आयशा' में अमित ने पैदा की है। इससे पहले कि वो ख़ुद को टाइप-कास्ट कर लेते और उनकी तरफ़ भी उंगलियाँ उठनी शुरु हो जाती, उससे पहले ही वे अपने स्टाइल में नयापन ले आए। विश्व दीपक - 'आयशा' के गानें लिखे हैं जावेद अख़्तर साहब ने। पार्श्वगायक की हैसियत से में इस ऐल्बम में नाम शामिल हैं अमित त्रिवेदी, अनुष्का मनचन्दा, नोमा