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जुदा हो गयी सदा के लिए "लंबी जुदाई" देकर गायिका रेशमा

गायिका रेशमा को श्रद्धांजली "जो फूल यहाँ पर खिल न सके, वो फूल वहाँ खिल जायेंगे, हम इस दुनिया में मिल न सके तो उस दुनिया में मिल जायेंगे" - दोस्तों, कल सुबह जैसे ही गायिका रेशमा के निधन की ख़बर रेडियो पर सुनी तो उनके गाये इस गीत की पंक्ति जैसे कानों में बजने लगी। कहते हैं कि आवाज़ें सरहदों से आज़ाद हुआ करती हैं, रेशमा की आवाज़ भी एक ऐसी आवाज़ रही जिसने कभी भी सरहदों को नहीं माना। चाहे वो कहीं भी रहीं, उनकी आवाज़ ने दुनिया भर की फ़िज़ाओं में ख़ुशबू बिखेरी। उनकी आवाज़ मिट्टी की आवाज़ थी, जिसमें से मिट्टी की भीनी-भीनी सौंधी ख़ुशबू उड़ा करती।  रेशमा का जन्म यहीं भारत में, राजस्थान में हुआ था और उनका बचपन भी राजस्थान में ही बीता। राजस्थान, जिसकी सीमा पाक़िस्तान के सरहद के बहुत करीब है; आज़ादी के बाद देश के बटवारे के बाद रेशमा सरहद के उस पार चली गईं। रेशमा का ताल्लुख़ बंजारा समुदाय से था जो कभी एक जगह नहीं ठहरता। बंजारे यायावर की तरह भटकते रहते हैं, कभी घर नहीं बनाते, और हर बार नई मंज़िल की तलाश में निकल पड़ते हैं। रेशमा को गायिकी की प्रतिभा अपने समुदाय से विरासत में...

छल्ला कालियां मर्चां, छल्ला होया बैरी.. छल्ला से अपने दिल का दर्द बताती विरहणी को आवाज़ दी शौकत अली ने

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #१०४ यूँ तो हमारी महफ़िल का नाम है "महफ़िल-ए-ग़ज़ल", लेकिन कभी-कभार हम ग़ज़लों के अलावा गैर-फिल्मी नगमों और लोक-गीतों की भी बात कर लिया करते हैं। लीक से हटने की अपनी इसी आदत को ज़ारी रखते हुए आज हम लेकर आए हैं एक पंजाबी गीत.. या यूँ कहिए पंजाबी लोकगीतों का एक खास रूप, एक खास ज़ौनर जिसे "छल्ला" के नाम से जाना जाता है। इस "छल्ला" को कई गुलुकारों ने गाया है और अपने-अपने तरीके से गाया है। तरीकों के बदलाव में कई बार बोल भी बदले हैं, लेकिन इस "छल्ला" का असर नहीं बदला है। असर वही है, दर्द वही है... एक "विरहणी" के दिल की पीर, जो सुनने वालों के दिलों को चीर जाती है। आखिर ये "छल्ला" होता क्या है, इसके बारे में "एक शाम मेरे नाम" के मनीष जी लिखते हैं (साभार): जैसा कि नाम से स्पष्ट है "छल्ला लोकगीत" के केंद्र में वो अंगूठी होती है, जो प्रेमिका को अपने प्रियतम से मिलती है। पर जब उसका प्रेमी दूर देश चला जाता है तो वो अपने दिल का हाल किससे बताए? और किससे? उसी छल्ले से जो उसके साजन की दी हुई एकमात्र निशानी है...

घायल जो करने आए वही चोट खा गए........"गुमनाम" के शब्द और "रेशमा" आपा का दर्द

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #४९ ब ड़े दिनों के बाद ऐसा हुआ कि महफ़िल में हाज़िरी लगाने के मामले में सीमा जी पिछड़ गईं और महफ़िल का मज़ा कोई और लूट गया। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं पिछली महफ़िल की प्रश्न-पहेली की। वैसे अगर शरद जी के लिए कुछ कहना हो तो हम यही कहेंगे कि "बड़े दिनों के बाद उन बेवतनों को याद वतन की मिट्टी आई है।" यूँ तो आप महफ़िल से कभी भी गायब नहीं हुए लेकिन ऐसा आना भी क्या आना कि आने की खबर न हो। वैसे तो हम सीधे-सादे गणित में अंकों का हिसाब लगाया करते हैं, लेकिन इस बार हमने सोचा कि क्यों न अंकों के मायाजाल में थोड़ा उलझा जाए। तो अगर हम ४७वीं कड़ी की प्रश्न-पहेली के अंकों को देखें तो हिसाब कुछ यूँ था: सीमा जी: ४ अंक, शरद जी: २ अंक और शामिख जी: १ अंक। अब हम इन अंकों को एक चक्रीय क्रम में आगे की ओर सरका देते हैं। फिर जो हिसाब बनता है, वही पिछली कड़ी की अंक-तालिका है यानि कि सीमा जी: १ अंक, शरद जी: ४ अंक और शामिख जी: २ अंक। अब बारी है आज के प्रश्नों की| तो ये रहे प्रतियोगिता के नियम और उसके आगे दो प्रश्न: ५० वें अंक तक हम हर बार आपसे दो सवाल पूछेंगे जिसके जवाब उस दिन के या फिर पि...