स्वरगोष्ठी – ९२ में आज   मन्ना डे ने गाया उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ का दादरा  ‘बनाओ बतियाँ चलो काहे को झूठी...’            ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक  ठुमरी’ के एक नए अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का  हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला में हम कुछ ऐसी ठुमरियों पर चर्चा  कर रहे हैं, जिन्हें स्वयं मूल गायक-गायिका ने अथवा किसी फिल्मी  पार्श्वगायक-गायिका ने फिल्म में भी गाया है। पिछले दो अंकों में हमने आपसे  क्रमशः उस्ताद अब्दुल करीम खाँ और बेगम अख्तर की गायी ठुमरियों के फिल्मी  प्रयोग पर चर्चा की थी। आज के अंक में हम ‘आफ़ताब-ए-मौसिकी’ के खिताब से  नवाज़े गए उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ के व्यक्तित्व पर चर्चा करेंगे। साथ ही उनके  गाये एक दादरा- “बनाओ बतियाँ चलो काहे को झूठी...”  और उसके फिल्मी प्रयोग  का भी उल्लेख करेंगे।      उ न्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशक से लेकर पिछली शताब्दी के मध्यकाल तक के  जिन संगीतज्ञों की गणना हम शिखर-पुरुष के रूप में करते हैं, उस्ताद फ़ैयाज़  खाँ उन्ही में से एक थे। ध्रुवपद-धमार, खयाल-तराना, ठुमर...