Skip to main content

जिन्दा हूँ इस तरह...राज कपूर के पहले संगीत निर्देशक राम गांगुली ने रचा था ये दर्द भरा नग्मा


राज कपूर के फिल्म-निर्माण की लालसा का आरम्भ फिल्म ‘आग’ से हुआ था, जिसके संगीतकार राम गांगुली थे। दरअसल यह पहली फिल्म राज कपूर के भावी फिल्मी जीवन का एक घोषणा-पत्र था। ठीक उसी प्रकार, जैसे लोकतन्त्र में चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी अपने दल का घोषणा-पत्र जनता के सामने प्रस्तुत करता है। ‘आग’ में जो मुद्दे लिये गए थे, बाद की फिल्मों में उन्हीं मुद्दों का विस्तार था, और ‘आग’ की चरम परिणति ‘मेरा नाम जोकर’ में हम देखते हैं।

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 801/2011/241

मस्कार! 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों का मैं, सुजॉय चटर्जी, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' स्तंभ में हार्दिक स्वागत करता हूँ। यूं तो मैं और आप एक दूसरे से अंजान नहीं, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में पिछले ढाई सालों से लगातार हमारी-आपकी मुलाक़ातें होती आई हैं, पर 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के इस मंच पर यह हमारी पहली मुलाक़ात है। आशा है हमारे सभी पुराने साथी इस नए मंच पर आ चुके होंगे और बहुत से नए श्रोता-पाठक भी हमसे जुड़ेंगे। इसी उम्मीद के साथ आइए 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के कारवाँ को आगे बढ़ाया जाए। आज से जो शृंखला शुरु होने जा रही है, उसे प्रस्तुत कर रहे हैं हमारे साथी श्री कृष्णमोहन मिश्र। उन्ही से जानिए इस शृंखला के बारे में....


‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ के सभी संगीत-प्रेमियों का, मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से आरम्भ हो रही श्रृंखला “आधी हकीकत आधा फसाना” के माध्यम से हम भारतीय सिनेमा के एक ऐसे स्वप्नदर्शी व्यक्तित्व पर चर्चा करेंगे, जिसने देश की स्वतन्त्रता के पश्चात कई दशकों तक भारतीय जनमानस को प्रभावित किया। सिनेमा के माध्यम से समाज को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले भारतीय सिनेमा के पाँच स्तम्भों- वी. शान्ताराम, विमल राय, महबूब खाँ और गुरुदत्त के साथ राज कपूर का नाम भी एक कल्पनाशील फ़िल्मकार के रूप में इतिहास में दर्ज़ हो चुका है। १४ दिसम्बर को इस महान फ़िल्मकार के ८७वीं जयन्ती है। इस अवसर के लिए श्रृंखला प्रस्तुत करने की जब योजना बन रही थी तब ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ के सम्पादक सजीव सारथी और मेजवान सुजोय चटर्जी की इच्छा थी कि इस श्रृंखला में राज कपूर की फिल्मों के गीतों को एक नये कोण से टटोला जाए। आज से आरम्भ हो रही श्रृंखला “आधी हकीकत आधा फसाना” में हमने दस ऐसे संगीतकारों के गीतों को चुना है, जिन्होने राज कपूर के आरम्भिक दशक की फिल्मों में उत्कृष्ट स्तर का संगीत दिया था। ये संगीतकार राज कपूर के व्यक्तित्व से और राज कपूर इनके संगीत से अत्यन्त प्रभावित हुए थे।

राज कपूर के फिल्म-निर्माण की लालसा का आरम्भ फिल्म ‘आग’ से हुआ था, जिसके संगीतकार राम गांगुली थे। दरअसल यह पहली फिल्म राज कपूर के भावी फिल्मी जीवन का एक घोषणा-पत्र था। ठीक उसी प्रकार, जैसे लोकतन्त्र में चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी अपने दल का घोषणा-पत्र जनता के सामने प्रस्तुत करता है। ‘आग’ में जो मुद्दे लिये गए थे, बाद की फिल्मों में उन्हीं मुद्दों का विस्तार था, और ‘आग’ की चरम परिणति ‘मेरा नाम जोकर’ में हम देखते हैं। ‘आग’ का नायक नाटक और रंगमंच के प्रति दीवाना है। फिल्म में राज कपूर का एक संवाद है- ‘मैं थियेटर को उस ऊँचाई पर ले जाऊँगा, जहाँ लोग उसे सम्मान की दृष्टि से देखते हैं...’। राज कपूर अपने पिता के ‘पृथ्वी थियेटर’ मे एक सामान्य कर्मचारी के रूप में कार्य करते थे। ‘आग’ का कथ्य यहीं से उपजा था। केवल कथ्य ही नहीं, पहली फिल्म के संगीतकार भी राज कपूर को ‘पृथ्वी थियेटर’ से ही मिले थे- राम गांगुली के रूप में। पृथ्वीराज कपूर की नाट्य-प्रस्तुतियों के संगीतकार राम गांगुली ही हुआ करते थे।

५ अगस्त, १९२८ को जन्में राम गांगुली को सितार-वादन की शिक्षा उस्ताद अलाउद्दीन खाँ से प्राप्त हुई थी। मात्र १७वर्ष की आयु से ही उन्होने मंच-प्रदर्शन करना आरम्भ कर दिया था। संगीतकार आर.सी. बोराल ने उन्हें न्यू थिएटर्स में वादक के रूप मे स्थान दिया। बाद में पृथ्वीराज कपूर ने अपने नाटकों में संगीत निर्देशन के लिए उन्हें ‘पृथ्वी थियेटर’ में बुला लिया। ‘पृथ्वी थियेटर’ के ही अत्यन्त लोकप्रिय नाटक ‘पठान’ में अभिनय करते हुए राज कपूर ने राम गांगुली का संगीतबद्ध किया गीत- ‘हम बाबू नये निराले हैं...’ गाया था। अपने इन्हीं प्रगाढ़ सम्बन्धों के कारण राज कपूर ने अपनी पहली निर्मित, अभिनीत और निर्देशित फिल्म ‘आग’ के संगीतकार के रूप में राम गांगुली को चुना। फिल्म ‘आग’ के गीत ‘काहे कोयल शोर मचाए...’, ‘कहीं का दीपक कहीं की बाती...’, ‘रात को जो चमके तारे...’ आदि अपने समय में लोकप्रिय हुए थे, किन्तु जो लोकप्रियता ‘ज़िंदा हूँ इस तरह कि ग़म-ए-ज़िंदगी नहीं...’ गीत को मिली वह आज तक कायम है। आज भी यह गीत सुनने वालों को रोमांचित कर देता है। बाद में वी. शान्ताराम की फिल्म ‘सेहरा’ में संगीतकार के रूप में चर्चित सुप्रसिद्ध शहनाई और बांसुरी वादक रामलाल ने इस गीत में अत्यंत संवेदनशील बांसुरी वादन किया था। इसके गीतकार बहजाद लखनवी और गायक थे, राज कपूर के सबसे प्रिय गायक मुकेश। स्वप्नदर्शी सिने-पुरुष राज कपूर को उनकी जयन्ती के उपलक्ष्य में आयोजित इस श्रृंखला का प्रारम्भ करते हुए आइए, सुनते हैं, निर्माता, निर्देशक और अभिनेता के रूप में बनाई गई उनकी पहली फिल्म ‘आग’ का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत-



क्या आप जानते हैंराज कपूर की सर्वाधिक २० फिल्मों में संगीत निर्देशन करने वाले शंकर-जयकिशन फिल्म ‘आग’ में राम गांगुली के संगीत दल में क्रमशः तबला और हारमोनियम वादक थे।

पहचानें अगला गीत - एक स्वर मीना कपूर का है, मुखड़े में शब्द है "राधिका"...हमें बताएं -
१. राज कपूर अभिनीत इस फिल्म का नाम - २ अंक
२. संगीतकार का नाम - ३ अंक


खोज व आलेख-

कृष्णमोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें admin@radioplaybackindia.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें +91-9871123997 (सजीव सारथी) या +91-9878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

sujoy chatterjee said…
bahut badhiya krishnamohan ji. sajeev ji, 'Khoj va aalekh' mein Krishnamohan ji ka naam hona chahiye.

Sujoy
AVADH said…
किसी का उत्तर न देख कर मैं अब कोशिश कर रहा हूँ.
संगीतकार: अनिल बिस्वास
अवध लाल

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की